आपको ‘थोड़ा रूमानी हो जायें’ की बिन्नी याद है? हां वही बिन्नी, जो बिन्नी होने से पहले ‘बुनियाद’ की लाजो जी यानी लाजवंती थी. दरअसल, अलग-अलग कहानियों के तमाम किरदारों के बीच कुछ एक किरदार अपनी अलहदा छवि के साथ हमारे बीच रह जाते हैं. इन किरदारों को निभानेवाले कलाकार के विस्मृत हो जाने के बाद भी, उनकी निभाई भूमिका का उजाला जिक्र में ही सही, बचा रहता है.
अनीता कंवर अब लगभग विस्मृत हैं, लेकिन उनकी विलक्षण अभिनय प्रतिभा की बानगी बन कर उनके द्वारा निभायी गयी लाजो जी की भूमिका ‘बुनियाद’ में गहराई से पैठी हुई है. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से निकली इस अभिनय प्रतिभा को 1990 में अमोल पालेकर निर्देशित कवितामय ‘थोड़ा रूमानी हो जायें’ में भी देखा जा सकता है.
बहुत पहले दूरदर्शन पर मैंने यह फिल्म देखी थी. इसकी बिंदास बिन्नी,‘आओ तुम और हम दर्द को बांसुरी बनाएं’ गाती हुई आज भी मुङो याद है. दिल्ली के रंगमंच से अभिनय की शुरुआत करनेवाली अनीता कंवर ने नसीरुद्दीन शाह अभिनीत ‘आधारशिला’ फिल्म में काम किया. इस फिल्म को फिल्मफेयर का बेस्ट क्रिटिक अवॉर्ड मिला, लेकिन अनीता कंवर के अभिनय को यह सिनेमाई दुनिया उतनी तवज्जो नहीं दे सकी, जितने की वो हकदार थीं. उन्हें ज्यादातर छोटी-छोटी चरित्र भूमिकाएं मिलीं. लेकिन ‘मंडी’ की परवीना हों या ‘त्रिकाल’ की सिल्विया फिर ‘सलाम बॉम्बे’ की रेखा, उन्होंने इन भूमिकाओं में अपनी गहरी छाप छोड़ी.
हालांकि, दूरदर्शन के सुनहरे दिनों के धारावाहिक ‘बुनियाद’ से उन्होंने खूब लोकप्रियता हासिल की थी. बाद में ‘इंस्पेक्टर केसी’ और ‘शांति’ जैसे धारावाहिकों में भी उन्होंने काम किया. जीटीवी के शुरुआती डेली सोप ‘बनेगी अपनी बात’ का भी वह हिस्सा रहीं. उनके पास प्रस्ताव तो बहुत आये, लेकिन मूर्खतापूर्ण भूमिकाएं स्वीकारने के बजाय, उन्होंने अभिनय से दूर रहना ही बेहतर समझा और दिल्ली के गुड़गांव आ बसीं. 2011 में प्रकाश झा की ‘आरक्षण’ में उनकी छोटी सी झलक दिखायी दी थी. दूरदर्शन में ‘बुनियाद’ के पुनप्र्रसारण में वह दिखती हैं, तो लगता है, कुछ लोगों के लिए अभिनय दिल से जीने की चीज है, जिसमें समझौते के लिए जगह नहीं होती और अनीता कंवर जैसे कलाकार ही इस सोच को जी पाते हैं.
प्रीति सिंह