।।मनीषा प्रियम सहाय।।
(राजनीतिक विश्लेषक)
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहला वाकया है, जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री को किसी पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है. राज्य के किसी नेता का केंद्रीय पटल पर उभार का नमूना है मोदी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनना. यह राजनीति के प्रांतीकरण का भी उदाहरण है. मोदी के उभार का मतलब है राजनीति में व्यक्ति और चेहरे पर निर्भरता का बढ़ना. मोदी तीसरी बार गुजरात में पार्टी को जीत दिलाने में सफल रहे. गुजरात में कांग्रेस और भाजपा के बीच दो दलीय मुकाबला रहा है, जिसमें मोदी विश्वासपूर्वक कांग्रेस को पराजित कर चुके हैं.
केंद्र में कांग्रेस की सत्ता आने पर पार्टी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तंत्र के सहारे मोदी की छवि को दागदार बताने की कोशिश करती रही, लेकिन मोदी ने कांग्रेस की इस चाल को भी पूरी शिद्दत से नाकाम कर दिया. गुजरात दंगों को लेकर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने उनकी भूमिका को लेकर लगातार सवाल उठाया, उन्हें घेरने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाया गया, लेकिन मोदी सभी को दरकिनार करते हुए आगे बढ़ते गये. इससे साफ जाहिर होता है कि उनमें कुछ तो दम है. यही नहीं, देश का पूरा बुद्धिजीवी उनके खिलाफ लगा रहा. मानवाधिकार हनन का आरोप लगा कर मोदी की तुलना फासीवाद और नाजीवाद से भी की गयी, लेकिन गुजरात में मोदी का विजय रथ नहीं रुका.
लगातार तीसरी बार गुजरात में जीत के कुछ महीनों बाद ही भाजपा ने उन्हें चुनाव अभियान समिति की कमान सौंप दी. उनके बढ़ते कद को लेकर भाजपा में अंतर्विरोध के स्वर सुनायी देने लगे. उनकी दावेदारी को लेकर पार्टी के कुछ बड़े नेताओं ने दबे स्वर विरोध करना शुरू कर दिया. लेकिन किसी ने खुल कर विरोध नहीं किया. हालांकि आडवाणी ने मोदी को अभियान समिति का अध्यक्ष बनाये जाने के कुछ ही घंटों के भीतर पार्टी के अहम पदों से इस्तीफा देकर अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर दी. बाद में आडवाणी को झुकना पड़ा. हालांकि जैसे ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की चरचा जोर पकड़ने लगी तो एक बार फिर विरोध सतह पर आ गया. लेकिन आडवाणी की बात दूसरे नेताओं के जरिये कही जाने लगी.
इन अंतर्विरोध को दरकिनार कर पार्टी ने आखिरकार मोदी को उम्मीदवार बना ही दिया. इससे जाहिर होता है कि मोदी दमखम वाले मुख्यमंत्री हैं. वैसे भाजपा का ढांचा विकेंद्रीकृत है. भाजपा के मामले में संघ भी दखल देता है. भाजपा के कई मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री पद के दावेदार है. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और गोवा में मनोहर पार्रिकर कम लोकप्रिय नहीं हैं. उसी तरह बिहार में भी शुशील मोदी दमखम वाले नेता हैं. राज्यों में भाजपा के पास जनाधार वाले नेता हैं. भाजपा में विकेंद्रीकृत व्यवस्था होने के कारण मोदी को लेकर अंतर्विरोध दिख रहा है, लेकिन कई दमखम वाले नताओं के बीख मोदी सबसे आगे निकल चुके हैं. मोदी देश स्तर पर लोकप्रिय हैं. आज भाजपा में मोदी के कद का कोई दूसरा नेता मौजूद नहीं है.
जहां तक लालकृष्ण आडवाणी का मोदी को लेकर जो विरोध है, उसका अब खास महत्व नहीं रह गया है. अब आडवाणी जो भी कहेंगे, उसे राजनीतिक और धार्मिक उपदेश ही माना जायेगा. ऐसा लगता है कि आडवाणी जनमत की भावना को नहीं समझ पाये. आज मध्यवर्ग ही नहीं, बल्कि पूरा उद्योग जगत मोदी के साथ खड़ा है. पूंजीपति भी मोदी को देश का अगला प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं. भाजपा की राज्य इकाइयों का भी पूरा समर्थन मोदी के साथ है. मोदी का अपना व्यक्तित्व है, छवि है. वे वाद-संवाद में भी कुशल हैं. लोगों के नब्ज को पकड़ने में माहिर हैं. अपने भाषणों में लोगों के सीधे संवाद स्थापित करने में सक्षम हैं. आज शायद ही कोई नेता उनके इतना लोकप्रिय हो. भाजपा के अन्य नेताओं की तुलना में कांग्रेस पर सबसे करारा प्रहार वही कर रहे हैं.
मोदी के पक्ष में सबसे बड़ी बात है मुख्यमंत्री के तौर पर काम का शानदार रिकार्ड. उनकी राजनीति में दमखम दिखता है. आज भारत के किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री उनके कद का नहीं है. आज देश में कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार, कुशासन को लेकर लोगों में भारी आक्रोश है. घोटालों, महंगाई, औद्योगिक उत्पादन में गिरावट से देश में आर्थिक हालात खराब हैं. मध्यवर्ग और ग्रामीण क्षेत्र सभी लोगों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ा है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने शहरी क्षेत्रों में अच्छी सफलता हासिल की थी. इस बार कांग्रेस के लिए इसे दोहराना आसान नहीं है. ऐसे में मोदी के लिए राजनीतिक तौर पर यह माकूल समय है. मोदी की रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ को देख कर कहा जा सकता है कि 2014 का चुनाव परिणाम बेहद रोचक होगा. हालांकि मोदी के सामने चुनौतियां कम नहीं है, लेकिन उनमें चुनौतियों से पार पाने की क्षमता भी है.