अरमां खुले हैं, जिद्दी बुलबुले हैं..तेरे मेरे बीच में क्या है. इन दिनों शुद्ध देसी रोमांस का यह गीत हर युवा की जुबां पर चढ़ा है. हालांकि, बड़े-बुजुर्गो को यह गीत नीम की तरह कड़वा लग रहा है. वजह स्पष्ट है. फिल्म में एक लड़का है, एक लड़की है और दोनों के बीच वाकई केवल एक चादर की ही दूरी है. कहानी छोटे शहर की है. इसलिए, लोगों की भौंवें तन गयी हैं कि क्या छोटे शहर में..? यह संभव है. समाज का एक हिस्सा फिल्म मेकर्स को कोसने में लगा कि आजकल की फिल्में ही लड़के-लड़कियों को बिगाड़ रही है. उन्हें सीखा रही हैं कि देखो बेशरम बन जाओ.
हिंदी सिनेमा में ‘शुद्ध देसी रोमांस’ नया नहीं है. हिंदी सिनेमा के पुराने दौर में भी यह चलन जारी रहा है. हां, फर्क इतना जरूर था कि उस दौर में एक घर में रहते हुए भी नायक-नायिका एक दूसरे के बीच सीमा रखते थे. फिल्म अनामिका की नायिका नायक को सड़क पर मिलती है और उसे वह घर लेकर आता है. दोनों अलग-अलग कमरों में रहते हैं, लेकिन दोनों के बीच प्यार हो जाता है.
फिल्म याराना में नायिका अपने घर से भाग जाती है और नायक ही उसे अपने घर में शरण देता है. फिल्म सदमा में अपनी याददाश्त खो चुकीं नायिका नायक के साथ आराम से रहती है. फिल्म प्रतिघात में जूही चावला चिरंजीवी के घर में रहने लगती है. फिल्म जंजीर की नायिका भी नायक के घर पर इसलिए आ कर रहने लगती है ताकि नायक बदमाशों से उसकी रक्षा कर सके.