पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ अमेरिकी खोजी पत्रकार सेमोर हर्ष ने सबसे खतरनाक आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना रहे ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के अमेरिकी अभियान के संबंध में ओबामा प्रशासन के दावों को झूठा करार दिया है. अमेरिकी कमांडो की छापामारी के चार साल पूरे होने के मौके पर ‘लंदन रिव्यू ऑफ बुक्स’ के लिए लिखे लंबे लेख में उन्होंने दावा किया है कि न केवल पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख जनरल कियानी और गुप्तचर प्रमुख जनरल शुजा पाशा को अमेरिका के इस अभियान की जानकारी थी, बल्कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए की मदद भी की थी. हर्ष के मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने लादेन को 2006 से एबोटाबाद में कैद रख रखा था.
इसके बाद एक पाकिस्तानी खुफिया अधिकारी ने मोटी रकम के बदले लादेन को अमेरिका के हवाले कर दिया था. सेमोर हर्ष के इस लेख के जरिये पहली बार मोस्ट वांटेड आतंकी सरगना को मार गिराने की पूरी कहानी विस्तार से दुनिया के सामने आयी है, जो पाठकों को कई नये तथ्यों के बीच ले जाती है. लेख का हिंदी अनुवाद हम अपने पाठकों के लिए किस्तों में प्रस्तुत कर रहे हैं. कल आपने पढ़ा कि हर्ष को ओबामा प्रशासन की कहानी पर क्यों संदेह हुआ था, तहकीकात के दौरान उन्हें अमेरिकी खुफिया अधिकारियों से क्या जानकारियां मिलीं और अमेरिकी अधिकारियों ने लादेन को मार गिराने के लिए सैन्य अभियान की तैयारियां कैसे शुरू कीं. आज पढ़ें इस लेख का दूसरा भाग
इस अहम जानकारी के प्रारंभिक चरण में ओबामा प्रशासन के लिए ऊंची जोखिम थी, खासकर इसलिए कि पहले भी इस तरह की घटनाओं में अमेरिका अपने हाथ जला चुका था, जब 1980 में तेहरान में अमेरिकी बंधकों को छुड़ाने के अमेरिकी प्रयास विफल हो गये थे. इस विफलता ने राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव में जिमी कार्टर के विरुद्ध रोनाल्ड रीगन की जीत तय कर दी थी. ओबामा की चिंताएं जायज थीं. क्या वास्तव में उस कैंपस में बिन लादेन ही है? क्या यह पूरी कहानी पाकिस्तानी धोखे की उपज नहीं है? इस हमले में विफलता की राजनीतिक प्रतिक्रिया क्या होगी? आखिरकार, जैसा उस पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘यदि यह अभियान विफल होता, तो ओबामा का भी जिमी कार्टर जैसा ही हश्र हुआ होता और उनके पुनर्निर्वाचन की सारी संभावनाएं समाप्त हो जातीं.’
जनवरी, 2011 के अंत तक सौदा पक्का हो चुका था. संयुक्त विशिष्ट ऑपरेशंस कमांड ने एक प्रश्नावली तैयार की, जिसका जवाब पाकिस्तानियों को देना था. कुछ प्रश्न इस प्रकार थे- इस संदर्भ में हम किस तरह कन्फर्म हो सकते हैं कि हमले के वक्त बाहर से कोई हस्तक्षेप नहीं होगा? उस कैंपस में सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं और उनकी स्थिति कैसी है? कैंपस में बिन लादेन के कमरे कहां हैं और वे कितने बड़े हैं? कितनी सीढ़ियां हैं? उसके कमरे के दरवाजे किधर हैं और क्या उन्हें इस्पात के इस्तेमाल से मजबूती भी दी गयी है? ये दरवाजे कितने मोटे हैं?’ पाकिस्तानी अधिकारी इस बात के लिए राजी हुए कि वे चार सदस्यीय एक अमेरिकी दल को तरबेला गाजी में एक संपर्क कार्यालय स्थापित करने की अनुमति देंगे, जिनमें एक नेवी सील, एक सीआइए अधिकारी और दो संप्रेषण विशेषज्ञ होंगे.
इधर, इस वक्त तक नेवादा में परमाणु परीक्षण के गुप्त स्थल के निकट अमेरिकी सेना ने एबटाबाद के उस कैंपस की एक प्रतिकृति तैयार कर ली थी, जिसमें एक उच्चस्तरीय सील टीम ने हमले के पूर्वाभ्यास आरंभ कर दिये थे. इस बीच अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जानेवाली सहायता में कटौती आरंभ कर दी. 18 नये एफ-16 लड़ाकू युद्धक विमानों की पाकिस्तान को दी जानेवाली अगली खेप में देर करने के आदेश दिये गये और पाकिस्तान के वरीय नेताओं को गुपचुप दी जानेवाली रकम रोक दी गयी.
अप्रैल, 2011 में पाशा ने सीआइए निदेशक, लियोन पेनेटा से एजेंसी के मुख्यालय में मुलाकात की. ‘पाशा को यह वचन दिया गया कि अमेरिका ये भुगतान फिर से शुरू कर देगा और बदले में अमेरिका को यह वचन मिला कि बिन लादेन मिशन के कार्यान्वयन के वक्त पाकिस्तान की ओर से कोई प्रतिरोध नहीं होगा,’ पूर्व अधिकारी ने मुझे बताया. ‘पाशा ने इस पर जोर दिया कि अमेरिका की ओर से बार-बार यह शिकायत न की जाए कि आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिकी युद्ध में पाकिस्तान उचित सहयोग नहीं कर रहा है.’ उस अवधि में एक वक्त तो पाशा ने साफ शब्दों में यह बताया कि क्यों पाकिस्तान ने बिन लादेन के कब्जे को गुप्त रखा था और क्यों इसमें आइएसआइ की भूमिका का गुप्त रहना जरूरी था. पाशा ने कहा था, ‘अलकायदा तथा तालिबान पर नियंत्रण के लिए हमें एक बंधक चाहिए था.’ आइएसआइ को अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में अल कायदा और तालिबान की गतिविधियों पर नियंत्रण कर पाने के लिए एक साधन चाहिए था. आइएसआइ ने अल कायदा और तालिबान को यह बता दिया था कि यदि उन लोगों ने ऐसी किसी गतिविधि को अंजाम दिया, जो आइएसआइ के हितों के विरुद्ध जाती हो, तो वे बिन लादेन को अमेरिका को सौंप देंगे. इसलिए वे आशंकित थे कि यदि यह राज खुल गया कि बिन लादेन के खात्मे के लिए पाकिस्तानियों ने अमेरिकियों के साथ सहयोग किया था, तो पाकिस्तानियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.’
उस पूर्व अधिकारी के अनुसार, पनेटा के साथ पाशा की एक बैठक के दौरान सीआइए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पाशा से पूछा, ‘क्या आप मूल रूप से खुद को अल कायदा और तालिबान के एजेंट के तौर पर काम करते हुए देखते हैं?’ हालांकि, पाशा ने इससे इनकार किया, किंतु कहा कि उन दोनों पर आइएसआइ का नियंत्रण जरूरी है. सीआइए ने इस बातचीत से यह निष्कर्ष निकाला कि कयानी और पाशा बिन लादेन को एक साधन के रूप में देखते हैं और वे अमेरिका से ज्यादा अपने व्यक्तिगत फायदे में रुचि रखते हैं.’
प्रारंभिक योजना में यह तय किया गया कि इस हमले की खबर तुरंत सार्वजनिक नहीं की जायेगी. यह सोचा गया कि हमले के सात दिनों बाद अथवा जरूरत होने पर उससे भी अधिक दिनों बाद इसका खुलासा किया जायेगा. उसके बाद ओबामा एक सावधानीपूर्वक बुनी गयी कहानी अनावृत्त करेंगे कि डीएनए विेषणों से यह साबित हुआ है कि अफगानिस्तान की सीमा के अंदर हिंदूकुश के पहाड़ों पर हुए एक ड्रोन हमले में बिन लादेन की मौत हो गयी है. अमेरिकियों ने कयानी और पाशा को यह आश्वासन दिया कि इसमें उनके सहयोग को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया जायेगा, क्योंकि यह सबको मालूम था कि बिन लादेन बहुत-से लोगों के लिए एक नायक है और यह राज जाहिर होने से हिंसक विरोध तो हो ही सकते थे, साथ ही पाशा और कयानी समेत उनके परिजनों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती थी और पाकिस्तानी सेना भी कलंकित हो सकती थी.
उस पूर्व अधिकारी ने बताया कि अब तक सभी लोगों को यह साफ हो चुका था कि बिन लादेन अब बच नहीं सकेगा. अप्रैल, 2011 में पाशा ने एक बैठक के दौरान हमें यह बताया कि अब जबकि आप सब यह जानते हैं कि बिन लादेन उस कैंपस में रह रहा है, तो मैं उसे वहीं छोड़ देने का जोखिम नहीं ले सकता. सैनिक कमांड की श्रृंखला में इस मिशन की बाबत कई लोगों को मालूम हो चुका है. मुझे और कयानी को यह सारी कहानी वायुरक्षा कमांड तथा कुछ स्थानीय कमांडरों को बतानी ही होगी.’ उस पूर्व अधिकारी के मुताबिक,‘हमला करने वाले सील्स अब यह जान रहे थे कि निशाने पर बिन लादेन था और वह वहां पाकिस्तानी नियंत्रण में था. वरना वे वायुसेना के समर्थन के बगैर इस मिशन के लिए तैयार न होते.’ यह साफ था कि यह मिशन एक सोची-समझी हत्या करने के लिए ही था. एक पूर्व सील्स कमांडर ने, जो पिछले दशक के दौरान इस तरह के कई अभियानों में हिस्सा ले चुका था या फिर उनका नेतृत्व कर चुका था, बाद में इस पूर्व अधिकारी को बताया कि हम बिन लादेन को जिंदा नहीं छोड़ने जा रहे थे. हम यह जानते थे हम पाकिस्तान की सीमा के अंदर जो कुछ करने जा रहे थे, वह कानून के मुताबिक भी मानवहत्या ही थी. जब हम ऐसे मिशन पर जाते हैं, तो खुद से यही कहते हैं कि चलो, इस सच्चाई का सामना किया जाये कि हम एक हत्या करने जा रहे हैं.
व्हाइट हाउस की प्रारंभिक रिपोर्ट में यह बताया गया कि बिन लादेन एक हथियार थामे था. इस कहानी का उद्देश्य उन्हें संतुष्ट करना था, जो अमेरिकी शासन द्वारा इस तरह की हत्याओं के कार्यक्रमों की वैधानिकता पर उंगली उठाते हैं. इस मिशन में शामिल लोगों की टिप्पणियों के बावजूद, अमेरिकी लगातार यह दावा करते रहे कि यदि बिन लादेन ने तत्काल समर्पण कर दिया होता, तो हम उसे जिंदा पकड़ते.
सील्स जब अहाते में घुसे, तो उन्हें किसी संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ा. पूर्व अधिकारी ने कहा,‘पाकिस्तान में लगभग सबके पास बंदूकें होती हैं और एबटाबाद जैसे शहर में रहनेवाले बहुत-से धनीमानी लोगों के पास तो सशस्त्र सुरक्षा गार्ड भी हैं, पर उस अहाते में कोई भी हथियार न था. यदि कोई संघर्ष होता, तो हमला करनेवाले दल को जोखिम का सामना करना पड़ जाता. इसके बजाय, आइएसआइ के एक संपर्क अधिकारी ने, जो सील्स के साथ ही आया था, उस अंधेरे घर में रास्ता बताते हुए उन्हें एक सीढ़ी से होते हुए बिन लादेन के रिहायशी कमरों तक ले गया. सील्स को पाकिस्तानियों ने यह चेतावनी दी थी कि सीढ़ियों पर प्रथम और दूसरे तल्ले के प्रवेश पर इस्पात के भारी-भरकम दरवाजे लगे हैं. बिन लादेन के कमरे तीसरे तल्ले पर थे. सील्स ने बिना किसी को घायल किये इन दरवाजों को विस्फोटों से उड़ा दिया. बिन लादेन की पत्नियों में से एक दहशत से चीख रही थी. शायद एक भटकी हुई गोली उसके घुटने पर लग गयी थी, क्योंकि बिन लादेन पर चलायी गयी गोलियों के सिवा वहां और कोई गोली नहीं चली, जबकि ओबामा शासन द्वारा बतायी गयी तफसील में कुछ दूसरी ही बात कही गयी थी. उन्हें यह पता था कि बिन लादेन कहां था- तीसरा तल्ला, दाहिनी ओर दूसरा दरवाजा.’ उस पूर्व अधिकारी ने बताया, ‘वे सीधे वहां पहुंचे. ओसामा अपने कमरे में घबरा कर पीछे हटते हुए छिपने की कोशिश कर रहा था. दो शूटरों ने उसका पीछा करते हुए गोलियां चलायीं और और उसका काम तमाम हो गया.’
उस पूर्व अधिकारी के अनुसार,‘उन सील्स में से कुछ को व्हाइट हाउस के इस शुरुआती दावे से क्लेश भी हुआ, जिसमें यह कहा गया था कि उन्हें बिन लादेन पर आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी.’ सील्स के छह सबसे उत्कृष्ट, सबसे अनुभवी कमांडो, जिनका एक निहत्थे बुजुर्ग व्यक्ति से सामना था और उन्हें उस पर आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी? उन्होंने पाया कि वह घर गंदा-सा था और बिन लादेन एक सेल जैसे कमरे में रह रहा था, जिसकी खिड़कियों में लोहे की छड़ें लगी थीं और छत पर कंटीले तारों की घेराबंदी थी. संघर्ष के नियमों के अनुसार, यदि बिन लादेन उनका कोई प्रतिरोध करता, तो उन्हें हिंसक कार्रवाई करने का अधिकार था. किंतु उन्हें यह संदेह होने पर भी कि उसके चोगे में कहीं कोई विस्फोटक छिपा हो सकता है, वे उसे मार सकते थे. चूंकि बिन लादेन चोगे में था, सो उन्हें उसे मार गिराने का अधिकार था. किंतु वह हाथों में कोई हथियार लेने नहीं झपटा था.बाद में व्हाइट हाउस द्वारा किया गया यह दावा भी बकवास था कि उसके सिर में केवल एक या दो गोलियां मारी गयीं. सच तो यह था कि उस पर गोलियों की बौछार जैसी हुई.
उस पूर्व अधिकारी ने मुझे बताया,‘बिन लादेन की मौत के बाद सील्स वहीं दूसरा हेलीकॉप्टर आने का इंतजार करते रहे. उनमें से कुछ उस दुर्घटना में घायल थे.’ उस दौरान वहां गुजरे बीस तनावभरे मिनट के बारे में अधिकारी का कहना था,‘दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर अब भी जल रहा था. शहर में कहीं कोई रोशनी नहीं थी. कोई बिजली नहीं. कोई पुलिस वहां नहीं आयी. कोई दमकल नहीं आया. उन्होंने किसी को बंदी भी नहीं बनाया. बिन लादेन की पत्नियों तथा उसके बच्चों से पूछताछ करने तथा उन्हें कहीं दूसरी जगह ले जाने का काम आइएसआइ पर छोड़ दिया गया. जैसा घटना के बाद बताया गया, वहां से बड़े थैलों में भरकर कई सारे कंप्यूटर और डाटा-भंडारण के साधन नहीं लाये गये. सील्स ने बस उस कमरे में मिली कुछ पुस्तकें और कागजात अपने बैकपैक में रख कर साथ लाये. वे वहां इसलिए नहीं गये थे कि बिन लादेन वहां से अल कायदा का कोई कमांड सेंटर संचालित कर रहा था, जैसा व्हाइट हाउस ने बाद में मीडिया को बताया, न ही वे कोई खुफिया विशेषज्ञ थे, जिन्हें उस घर से सूचना संग्रहण करना था.’
पूर्व अधिकारी ने बताया कि एक सामान्य मिशन के दौरान यदि कोई हेलीकॉप्टर क्षतिग्रस्त हो जाता, तो उसके बदले किसी दूसरे का इंतजार नहीं किया जाता. सील्स अपन मिशन पूरा कर अपने हथियार और अन्य साजो-सामान वहीं फेंक देते और एक हीहेलीकॉप्टर में जैसे-तैसे भरकर वहां से निकल लेते. उन्होंने अपना हेलीकॉप्टर विस्फोट से उड़ाया भी नहीं होता. संवाद का कोई भी साजोसामान एक दर्जन जिंदगियों से ज्यादा कीमती नहीं होता है. इसके बदले वे वहां इंतजार करते रहे, क्योंकि वे जानते थे कि वे वहां सुरक्षित थे. पाशा और कयानी ने अपने सारे वचन पूरे कर दिये थे.
इसके पहले कि हमने यह बैठक समाप्त की और राष्ट्रपति ऊपरी तल्ले की ओर बढ़ें, ताकि वे अमेरिकी जनता को यह बता सकें कि कुछ ही देर पहले क्या कुछ हुआ है, मैंने वहां मौजूद सभी व्यक्तियों को यह बताया कि बिन लादेन ऑपरेशन में सील्स द्वारा इस्तेमाल किये गये तकनीक, कौशल और कार्यप्रणाली वही हैं, जिनका अफगानिस्तान में हर रात इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए यह जरूरी है कि हम इस कार्रवाई की तफसील न बतायें. हमें सिर्फ इतना ही कहने की जरूरत थी कि हमने उसे मार दिया. उस कमरे में मौजूद सभी लोगों ने विस्तृत विवरण के विषय में चुप रहना मंजूर किया. पर यह निश्चय केवल पांच घंटे तक ही टिका रहा. शुरुआती खुलासा व्हाइट हाउस तथा सीआइए की ओर से किया गया. शेखी बघारने और श्रेय लेने का लोभ वे संवरण न कर सके. बताये गये तथ्य प्राय: गलत ही थे, फिर भी सूचनाएं बाहर आती ही रहीं.