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पार्ट-2: आइएसआइ ने किया ओसामा की मौत का सौदा

पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ अमेरिकी खोजी पत्रकार सेमोर हर्ष ने सबसे खतरनाक आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना रहे ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के अमेरिकी अभियान के संबंध में ओबामा प्रशासन के दावों को झूठा करार दिया है. अमेरिकी कमांडो की छापामारी के चार साल पूरे होने के मौके पर ‘लंदन रिव्यू ऑफ […]

पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ अमेरिकी खोजी पत्रकार सेमोर हर्ष ने सबसे खतरनाक आतंकी संगठन अलकायदा के सरगना रहे ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के अमेरिकी अभियान के संबंध में ओबामा प्रशासन के दावों को झूठा करार दिया है. अमेरिकी कमांडो की छापामारी के चार साल पूरे होने के मौके पर ‘लंदन रिव्यू ऑफ बुक्स’ के लिए लिखे लंबे लेख में उन्होंने दावा किया है कि न केवल पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य प्रमुख जनरल कियानी और गुप्तचर प्रमुख जनरल शुजा पाशा को अमेरिका के इस अभियान की जानकारी थी, बल्कि पाकिस्तानी अधिकारियों ने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए की मदद भी की थी. हर्ष के मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ ने लादेन को 2006 से एबोटाबाद में कैद रख रखा था.

इसके बाद एक पाकिस्तानी खुफिया अधिकारी ने मोटी रकम के बदले लादेन को अमेरिका के हवाले कर दिया था. सेमोर हर्ष के इस लेख के जरिये पहली बार मोस्ट वांटेड आतंकी सरगना को मार गिराने की पूरी कहानी विस्तार से दुनिया के सामने आयी है, जो पाठकों को कई नये तथ्यों के बीच ले जाती है. लेख का हिंदी अनुवाद हम अपने पाठकों के लिए किस्तों में प्रस्तुत कर रहे हैं. कल आपने पढ़ा कि हर्ष को ओबामा प्रशासन की कहानी पर क्यों संदेह हुआ था, तहकीकात के दौरान उन्हें अमेरिकी खुफिया अधिकारियों से क्या जानकारियां मिलीं और अमेरिकी अधिकारियों ने लादेन को मार गिराने के लिए सैन्य अभियान की तैयारियां कैसे शुरू कीं. आज पढ़ें इस लेख का दूसरा भाग

।।सेमोर एम हर्ष।।
ओसामा बिन लादेन को जहां ठहराया गया था वह कैंपस पाकिस्तान की सैन्य अकादमी से दो मील से भी कम दूरी पर और एक पाकिस्तानी लड़ाकू बटालियन के मुख्यालय से करीब तीन मील की दूरी पर अवस्थित था. एबटाबाद शहर तरबेला गाजी से 15 मिनट की हेलीकॉप्टर उड़ान से भी कम दूरी पर स्थित है. उल्लेखनीय है कि तरबेला गाजी आइएसआइ की गुप्त गतिविधियों का अहम ठिकाना होने के साथ पाकिस्तान के परमाणु आयुधों की सुरक्षा करनेवाले बलों के प्रशिक्षण का केंद्र है. उस पूर्व अधिकारी ने मुङो बताया,‘गाजी से निकटता वह प्रमुख वजह थी कि आइएसआइ ने बिन लादेन को रखने के लिए एबटाबाद का चयन किया, ताकि उस पर लगातार निगरानी रखी जा सके.’

इस अहम जानकारी के प्रारंभिक चरण में ओबामा प्रशासन के लिए ऊंची जोखिम थी, खासकर इसलिए कि पहले भी इस तरह की घटनाओं में अमेरिका अपने हाथ जला चुका था, जब 1980 में तेहरान में अमेरिकी बंधकों को छुड़ाने के अमेरिकी प्रयास विफल हो गये थे. इस विफलता ने राष्ट्रपति पद के अगले चुनाव में जिमी कार्टर के विरुद्ध रोनाल्ड रीगन की जीत तय कर दी थी. ओबामा की चिंताएं जायज थीं. क्या वास्तव में उस कैंपस में बिन लादेन ही है? क्या यह पूरी कहानी पाकिस्तानी धोखे की उपज नहीं है? इस हमले में विफलता की राजनीतिक प्रतिक्रिया क्या होगी? आखिरकार, जैसा उस पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘यदि यह अभियान विफल होता, तो ओबामा का भी जिमी कार्टर जैसा ही हश्र हुआ होता और उनके पुनर्निर्वाचन की सारी संभावनाएं समाप्त हो जातीं.’

ओबामा यह सुनिश्चित करने पर जोर दे रहे थे कि अमेरिका सही व्यक्ति को ही निशाना बनाने जा रहा था और यह सबूत बिन लादेन के डीएनए से ही मिल सकता था. सो, हमले की योजना बनानेवालों ने इसके लिए कयानी और पाशा से मदद मांगी, जिन्होंने अजीज से इसके लिए जरूरी नमूने मुहैया कराने को कहा. हमले के तुरंत बाद अखबारों ने यह पता लगा लिया था कि अजीज उस कैंपस के निकट ही एक मकान में रह रहा था. यहां तक कि उसके दरवाजे पर उर्दू में उसका नेमप्लेट भी लगा था. पाकिस्तानी अधिकारियों ने इस बात से इनकार किया कि अजीज का बिन लादेन से कोई संबंध था, पर उस पूर्व अधिकारी ने मुङो यह बताया कि बिन लादेन के बारे में सूचना देने के लिए घोषित पुरस्कार का एक हिस्सा अजीज को भी मिला, क्योंकि उसके द्वारा दिये गये डीएनए नमूने से ही यह पूरी तरह साबित हो सका कि उस कैंपस में रह रहा वह व्यक्ति वाकई में बिन लादेन ही था. बाद में इस घटना की जांच कर रहे पाकिस्तानी आयोग को अपनी गवाही में अजीज ने यह बताया कि मैंने उस हमले को देखा था, पर मुङो यह जानकारी नहीं थी कि उस अहाते में कौन रह रहा था. मुझे मेरे वरीय अधिकारी का आदेश था कि मैं इस परिदृश्य से अलग रहूं.

हमले की तैयारी
इस मिशन को किस तरह अंजाम दिया जायेगा, इस पर मोलतोल चलता रहा. ‘कयानी ने अंतत: अपनी सहमति दी, पर उन्होंने यह कहा कि हम एक बड़े हमलावर दल का इस्तेमाल नहीं कर सकते. सबकुछ छोटे पैमाने पर ही करना था, और हमें उसकी मौत सुनिश्चित करनी थी, वरना यह सौदा समाप्त समझ लेना था,’ उस पूर्व अधिकारी ने बताया.

जनवरी, 2011 के अंत तक सौदा पक्का हो चुका था. संयुक्त विशिष्ट ऑपरेशंस कमांड ने एक प्रश्नावली तैयार की, जिसका जवाब पाकिस्तानियों को देना था. कुछ प्रश्न इस प्रकार थे- इस संदर्भ में हम किस तरह कन्फर्म हो सकते हैं कि हमले के वक्त बाहर से कोई हस्तक्षेप नहीं होगा? उस कैंपस में सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं और उनकी स्थिति कैसी है? कैंपस में बिन लादेन के कमरे कहां हैं और वे कितने बड़े हैं? कितनी सीढ़ियां हैं? उसके कमरे के दरवाजे किधर हैं और क्या उन्हें इस्पात के इस्तेमाल से मजबूती भी दी गयी है? ये दरवाजे कितने मोटे हैं?’ पाकिस्तानी अधिकारी इस बात के लिए राजी हुए कि वे चार सदस्यीय एक अमेरिकी दल को तरबेला गाजी में एक संपर्क कार्यालय स्थापित करने की अनुमति देंगे, जिनमें एक नेवी सील, एक सीआइए अधिकारी और दो संप्रेषण विशेषज्ञ होंगे.

इधर, इस वक्त तक नेवादा में परमाणु परीक्षण के गुप्त स्थल के निकट अमेरिकी सेना ने एबटाबाद के उस कैंपस की एक प्रतिकृति तैयार कर ली थी, जिसमें एक उच्चस्तरीय सील टीम ने हमले के पूर्वाभ्यास आरंभ कर दिये थे. इस बीच अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जानेवाली सहायता में कटौती आरंभ कर दी. 18 नये एफ-16 लड़ाकू युद्धक विमानों की पाकिस्तान को दी जानेवाली अगली खेप में देर करने के आदेश दिये गये और पाकिस्तान के वरीय नेताओं को गुपचुप दी जानेवाली रकम रोक दी गयी.


अप्रैल, 2011 में पाशा ने सीआइए निदेशक, लियोन पेनेटा से एजेंसी के मुख्यालय में मुलाकात की. ‘पाशा को यह वचन दिया गया कि अमेरिका ये भुगतान फिर से शुरू कर देगा और बदले में अमेरिका को यह वचन मिला कि बिन लादेन मिशन के कार्यान्वयन के वक्त पाकिस्तान की ओर से कोई प्रतिरोध नहीं होगा,’ पूर्व अधिकारी ने मुझे बताया. ‘पाशा ने इस पर जोर दिया कि अमेरिका की ओर से बार-बार यह शिकायत न की जाए कि आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिकी युद्ध में पाकिस्तान उचित सहयोग नहीं कर रहा है.’ उस अवधि में एक वक्त तो पाशा ने साफ शब्दों में यह बताया कि क्यों पाकिस्तान ने बिन लादेन के कब्जे को गुप्त रखा था और क्यों इसमें आइएसआइ की भूमिका का गुप्त रहना जरूरी था. पाशा ने कहा था, ‘अलकायदा तथा तालिबान पर नियंत्रण के लिए हमें एक बंधक चाहिए था.’ आइएसआइ को अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में अल कायदा और तालिबान की गतिविधियों पर नियंत्रण कर पाने के लिए एक साधन चाहिए था. आइएसआइ ने अल कायदा और तालिबान को यह बता दिया था कि यदि उन लोगों ने ऐसी किसी गतिविधि को अंजाम दिया, जो आइएसआइ के हितों के विरुद्ध जाती हो, तो वे बिन लादेन को अमेरिका को सौंप देंगे. इसलिए वे आशंकित थे कि यदि यह राज खुल गया कि बिन लादेन के खात्मे के लिए पाकिस्तानियों ने अमेरिकियों के साथ सहयोग किया था, तो पाकिस्तानियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.’

उस पूर्व अधिकारी के अनुसार, पनेटा के साथ पाशा की एक बैठक के दौरान सीआइए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पाशा से पूछा, ‘क्या आप मूल रूप से खुद को अल कायदा और तालिबान के एजेंट के तौर पर काम करते हुए देखते हैं?’ हालांकि, पाशा ने इससे इनकार किया, किंतु कहा कि उन दोनों पर आइएसआइ का नियंत्रण जरूरी है. सीआइए ने इस बातचीत से यह निष्कर्ष निकाला कि कयानी और पाशा बिन लादेन को एक साधन के रूप में देखते हैं और वे अमेरिका से ज्यादा अपने व्यक्तिगत फायदे में रुचि रखते हैं.’
अमेरिकी मदद बंद करने की धमकी
आइएसआइ के वरिष्ठ नेतृत्व से घने संबंध रखने वाले एक पाकिस्तानी ने मुङो बताया, ‘आपके वरिष्ठतम लोगों के साथ एक सौदा हुआ. हालांकि, हमलोग इसके लिए बहुत अनिच्छुक थे, मगर हमें राजी होना पड़ा, इसलिए नहीं कि इसमें कोई व्यक्तिगत लाभ की बात थी, बल्कि इसलिए कि पाकिस्तान को पूरी अमेरिकी सहायता ही बंद की जानेवाली थी. आपके लोगों ने हमें कहा कि हम आपको भूखों मार देंगे. दूसरी और यह बताया गया कि इसके लिए राजी होने पर हमारे लिए यह मदद और ज्यादा होगी. और पाशा की वाशिंगटन यात्र के दौरान ही यह सौदा पक्का हो गया.’ उसने आगे बताया कि अमेरिका ने पाशा को यह भी वचन दिया कि अब जबकि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी होनेवाली है, पाकिस्तान को वहां अपने हितों की रक्षा करने की पहले से ज्यादा आजादी दी जायेगी. और इस तरह हमारे शीर्ष लोगों ने इस सौदे को अपने देश के हित में उचित ठहराया.’
शुरू हुई हमले की तैयारी
पाशा और कयानी को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी दी गयी कि पाकिस्तानी थलसेना अथवा वायुरक्षा कमांड इस हमले के लिए इस्तेमाल किये जानेवाले अमेरिकी हेलीकॉप्टरों को रोकने-टोकने की कोई कोशिश नहीं करेंगे. तरबेला गाजी स्थित अमेरिकी यूनिट को यह जिम्मेवारी दी गयी कि वे आइएसआइ, अफगानिस्तान स्थित अपने कमांड अड्डे पर मौजूद वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों और दो ब्लैक हॉक हेलीकॉप्टरों के बीच संवाद का समन्वय करेंगे. उद्देश्य था कि अपनी नियमित गश्त पर उड़ रहे कोई भी पाकिस्तानी लड़ाकू विमान अथवा सीमा पर गश्त करनेवाले बल के लोग न तो इन दो घुसपैठियों की खोजबीन करेंगे और न ही उन्हें रोकने को कुछ करेंगे.

प्रारंभिक योजना में यह तय किया गया कि इस हमले की खबर तुरंत सार्वजनिक नहीं की जायेगी. यह सोचा गया कि हमले के सात दिनों बाद अथवा जरूरत होने पर उससे भी अधिक दिनों बाद इसका खुलासा किया जायेगा. उसके बाद ओबामा एक सावधानीपूर्वक बुनी गयी कहानी अनावृत्त करेंगे कि डीएनए विेषणों से यह साबित हुआ है कि अफगानिस्तान की सीमा के अंदर हिंदूकुश के पहाड़ों पर हुए एक ड्रोन हमले में बिन लादेन की मौत हो गयी है. अमेरिकियों ने कयानी और पाशा को यह आश्वासन दिया कि इसमें उनके सहयोग को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया जायेगा, क्योंकि यह सबको मालूम था कि बिन लादेन बहुत-से लोगों के लिए एक नायक है और यह राज जाहिर होने से हिंसक विरोध तो हो ही सकते थे, साथ ही पाशा और कयानी समेत उनके परिजनों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती थी और पाकिस्तानी सेना भी कलंकित हो सकती थी.

उस पूर्व अधिकारी ने बताया कि अब तक सभी लोगों को यह साफ हो चुका था कि बिन लादेन अब बच नहीं सकेगा. अप्रैल, 2011 में पाशा ने एक बैठक के दौरान हमें यह बताया कि अब जबकि आप सब यह जानते हैं कि बिन लादेन उस कैंपस में रह रहा है, तो मैं उसे वहीं छोड़ देने का जोखिम नहीं ले सकता. सैनिक कमांड की श्रृंखला में इस मिशन की बाबत कई लोगों को मालूम हो चुका है. मुझे और कयानी को यह सारी कहानी वायुरक्षा कमांड तथा कुछ स्थानीय कमांडरों को बतानी ही होगी.’ उस पूर्व अधिकारी के मुताबिक,‘हमला करने वाले सील्स अब यह जान रहे थे कि निशाने पर बिन लादेन था और वह वहां पाकिस्तानी नियंत्रण में था. वरना वे वायुसेना के समर्थन के बगैर इस मिशन के लिए तैयार न होते.’ यह साफ था कि यह मिशन एक सोची-समझी हत्या करने के लिए ही था. एक पूर्व सील्स कमांडर ने, जो पिछले दशक के दौरान इस तरह के कई अभियानों में हिस्सा ले चुका था या फिर उनका नेतृत्व कर चुका था, बाद में इस पूर्व अधिकारी को बताया कि हम बिन लादेन को जिंदा नहीं छोड़ने जा रहे थे. हम यह जानते थे हम पाकिस्तान की सीमा के अंदर जो कुछ करने जा रहे थे, वह कानून के मुताबिक भी मानवहत्या ही थी. जब हम ऐसे मिशन पर जाते हैं, तो खुद से यही कहते हैं कि चलो, इस सच्चाई का सामना किया जाये कि हम एक हत्या करने जा रहे हैं.

व्हाइट हाउस की प्रारंभिक रिपोर्ट में यह बताया गया कि बिन लादेन एक हथियार थामे था. इस कहानी का उद्देश्य उन्हें संतुष्ट करना था, जो अमेरिकी शासन द्वारा इस तरह की हत्याओं के कार्यक्रमों की वैधानिकता पर उंगली उठाते हैं. इस मिशन में शामिल लोगों की टिप्पणियों के बावजूद, अमेरिकी लगातार यह दावा करते रहे कि यदि बिन लादेन ने तत्काल समर्पण कर दिया होता, तो हम उसे जिंदा पकड़ते.
वास्तविक हमला
एबटाबाद के कैंपस में बिन लादेन, उसकी पत्नियों तथा बच्चों पर निगाहें रखने के लिए आइएसआइ के सुरक्षाकर्मी चौबीसों घंटे मौजूद रहते थे. उन्हें यह आदेश दिया गया कि वे जैसे ही अमेरिकी हेलीकॉप्टरों के पंखों की आवाज सुनें, कैंपस से हट जाएं. शहर अंधेरे में डूबा था. आइएसआइ के आदेश से हमले के घंटों पहले ही बिजली काट दी गयी थी. एक हेलीकॉप्टर कैंपस की दीवारों के अंदर ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें उस पर सवार कई लोग घायल हो गये. सील्स को यह पता था कि उन्हें हमले में कम से कम वक्त लगाना है, क्योंकि वे वहां पहुंचते हुए पूरे शहर को जगा देने वाले थे. दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर के कॉकपिट को विस्फोटों से नष्ट कर दिया जाना था, क्योंकि उसमें कई संवेदनशील नेवीगेशन तथा संवाद उपकरण लगे थे. यह तय था कि इन विस्फोटों की आवाज और ज्वालाएं मीलों दूर तक सुनी और देखी जा सकेंगी. दो चिनूक हेलीकॉप्टर अफगानिस्तान से आकर नजदीक के एक पाकिस्तानी खुफिया अड्डे पर मिशन की सहायता के लिए मौजूद थे. मगर चूंकि उनमें दोनों सीहॉक हेलीकॉप्टरों के लिए अतिरिक्त ईंधन लदा था, इसलिए उनमें से एक को सील्स को ढोने के लिए तुरंत खाली किया जाना था. यह सब चिंताजनक और वक्त लेनेवाली कार्रवाईयां थीं.

सील्स जब अहाते में घुसे, तो उन्हें किसी संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ा. पूर्व अधिकारी ने कहा,‘पाकिस्तान में लगभग सबके पास बंदूकें होती हैं और एबटाबाद जैसे शहर में रहनेवाले बहुत-से धनीमानी लोगों के पास तो सशस्त्र सुरक्षा गार्ड भी हैं, पर उस अहाते में कोई भी हथियार न था. यदि कोई संघर्ष होता, तो हमला करनेवाले दल को जोखिम का सामना करना पड़ जाता. इसके बजाय, आइएसआइ के एक संपर्क अधिकारी ने, जो सील्स के साथ ही आया था, उस अंधेरे घर में रास्ता बताते हुए उन्हें एक सीढ़ी से होते हुए बिन लादेन के रिहायशी कमरों तक ले गया. सील्स को पाकिस्तानियों ने यह चेतावनी दी थी कि सीढ़ियों पर प्रथम और दूसरे तल्ले के प्रवेश पर इस्पात के भारी-भरकम दरवाजे लगे हैं. बिन लादेन के कमरे तीसरे तल्ले पर थे. सील्स ने बिना किसी को घायल किये इन दरवाजों को विस्फोटों से उड़ा दिया. बिन लादेन की पत्नियों में से एक दहशत से चीख रही थी. शायद एक भटकी हुई गोली उसके घुटने पर लग गयी थी, क्योंकि बिन लादेन पर चलायी गयी गोलियों के सिवा वहां और कोई गोली नहीं चली, जबकि ओबामा शासन द्वारा बतायी गयी तफसील में कुछ दूसरी ही बात कही गयी थी. उन्हें यह पता था कि बिन लादेन कहां था- तीसरा तल्ला, दाहिनी ओर दूसरा दरवाजा.’ उस पूर्व अधिकारी ने बताया, ‘वे सीधे वहां पहुंचे. ओसामा अपने कमरे में घबरा कर पीछे हटते हुए छिपने की कोशिश कर रहा था. दो शूटरों ने उसका पीछा करते हुए गोलियां चलायीं और और उसका काम तमाम हो गया.’

उस पूर्व अधिकारी के अनुसार,‘उन सील्स में से कुछ को व्हाइट हाउस के इस शुरुआती दावे से क्लेश भी हुआ, जिसमें यह कहा गया था कि उन्हें बिन लादेन पर आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी.’ सील्स के छह सबसे उत्कृष्ट, सबसे अनुभवी कमांडो, जिनका एक निहत्थे बुजुर्ग व्यक्ति से सामना था और उन्हें उस पर आत्मरक्षा में गोली चलानी पड़ी? उन्होंने पाया कि वह घर गंदा-सा था और बिन लादेन एक सेल जैसे कमरे में रह रहा था, जिसकी खिड़कियों में लोहे की छड़ें लगी थीं और छत पर कंटीले तारों की घेराबंदी थी. संघर्ष के नियमों के अनुसार, यदि बिन लादेन उनका कोई प्रतिरोध करता, तो उन्हें हिंसक कार्रवाई करने का अधिकार था. किंतु उन्हें यह संदेह होने पर भी कि उसके चोगे में कहीं कोई विस्फोटक छिपा हो सकता है, वे उसे मार सकते थे. चूंकि बिन लादेन चोगे में था, सो उन्हें उसे मार गिराने का अधिकार था. किंतु वह हाथों में कोई हथियार लेने नहीं झपटा था.बाद में व्हाइट हाउस द्वारा किया गया यह दावा भी बकवास था कि उसके सिर में केवल एक या दो गोलियां मारी गयीं. सच तो यह था कि उस पर गोलियों की बौछार जैसी हुई.

उस पूर्व अधिकारी ने मुझे बताया,‘बिन लादेन की मौत के बाद सील्स वहीं दूसरा हेलीकॉप्टर आने का इंतजार करते रहे. उनमें से कुछ उस दुर्घटना में घायल थे.’ उस दौरान वहां गुजरे बीस तनावभरे मिनट के बारे में अधिकारी का कहना था,‘दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर अब भी जल रहा था. शहर में कहीं कोई रोशनी नहीं थी. कोई बिजली नहीं. कोई पुलिस वहां नहीं आयी. कोई दमकल नहीं आया. उन्होंने किसी को बंदी भी नहीं बनाया. बिन लादेन की पत्नियों तथा उसके बच्चों से पूछताछ करने तथा उन्हें कहीं दूसरी जगह ले जाने का काम आइएसआइ पर छोड़ दिया गया. जैसा घटना के बाद बताया गया, वहां से बड़े थैलों में भरकर कई सारे कंप्यूटर और डाटा-भंडारण के साधन नहीं लाये गये. सील्स ने बस उस कमरे में मिली कुछ पुस्तकें और कागजात अपने बैकपैक में रख कर साथ लाये. वे वहां इसलिए नहीं गये थे कि बिन लादेन वहां से अल कायदा का कोई कमांड सेंटर संचालित कर रहा था, जैसा व्हाइट हाउस ने बाद में मीडिया को बताया, न ही वे कोई खुफिया विशेषज्ञ थे, जिन्हें उस घर से सूचना संग्रहण करना था.’

पूर्व अधिकारी ने बताया कि एक सामान्य मिशन के दौरान यदि कोई हेलीकॉप्टर क्षतिग्रस्त हो जाता, तो उसके बदले किसी दूसरे का इंतजार नहीं किया जाता. सील्स अपन मिशन पूरा कर अपने हथियार और अन्य साजो-सामान वहीं फेंक देते और एक हीहेलीकॉप्टर में जैसे-तैसे भरकर वहां से निकल लेते. उन्होंने अपना हेलीकॉप्टर विस्फोट से उड़ाया भी नहीं होता. संवाद का कोई भी साजोसामान एक दर्जन जिंदगियों से ज्यादा कीमती नहीं होता है. इसके बदले वे वहां इंतजार करते रहे, क्योंकि वे जानते थे कि वे वहां सुरक्षित थे. पाशा और कयानी ने अपने सारे वचन पूरे कर दिये थे.
विवादास्पद बयानों की कड़ियां
जैसे ही इसकी पुष्टि हो गयी कि मिशन सफल रहा है, व्हाइट हाउस के अंदर तर्क-वितर्क आरंभ हो गये. बिन लादेन का शव अफगानिस्तान के रास्ते में था. क्या ओबामा को कयानी और पाशा को दिये अपने वचन पर कायम रहना चाहिए और एक सप्ताह बाद यह कहना चाहिए कि किसी ड्रोन हमले में उसकी मृत्यु हो गयी अथवा उन्हें तुरंत इस बात को सार्वजनिक कर देना चाहिए? क्षतिग्रस्त हेलीकॉप्टर ने ओबामा के सलाहकारों के लिए दूसरे विकल्प पर जोर देने का रास्ता साफ कर दिया. विस्फोट और वहां उठती ज्वालाओं को गुप्त रख पाना असंभव था और इस राज का जाहिर हो जाना तय था. इसके पहले कि पेंटागन से कोई दूसरा व्यक्ति यह काम करे, ओबामा को स्वयं इस कहानी के आमुख पर आ खड़ा होना था, वरना इसके राजनीतिक असर के छीजते जाने की संभावना थी.ऐसा नहीं था कि सभी इस राय से सहमत ही थे. रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स उन लोगों में अग्रणी थे, जिनका यह मानना था कि पाकिस्तान के साथ किये गये वायदे को अवश्य पूरा किया जाना चाहिए. अपनी संस्मरण ड्यूटी में उन्होंने अपने क्षोभ को इन शब्दों में प्रकट किया :

इसके पहले कि हमने यह बैठक समाप्त की और राष्ट्रपति ऊपरी तल्ले की ओर बढ़ें, ताकि वे अमेरिकी जनता को यह बता सकें कि कुछ ही देर पहले क्या कुछ हुआ है, मैंने वहां मौजूद सभी व्यक्तियों को यह बताया कि बिन लादेन ऑपरेशन में सील्स द्वारा इस्तेमाल किये गये तकनीक, कौशल और कार्यप्रणाली वही हैं, जिनका अफगानिस्तान में हर रात इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए यह जरूरी है कि हम इस कार्रवाई की तफसील न बतायें. हमें सिर्फ इतना ही कहने की जरूरत थी कि हमने उसे मार दिया. उस कमरे में मौजूद सभी लोगों ने विस्तृत विवरण के विषय में चुप रहना मंजूर किया. पर यह निश्चय केवल पांच घंटे तक ही टिका रहा. शुरुआती खुलासा व्हाइट हाउस तथा सीआइए की ओर से किया गया. शेखी बघारने और श्रेय लेने का लोभ वे संवरण न कर सके. बताये गये तथ्य प्राय: गलत ही थे, फिर भी सूचनाएं बाहर आती ही रहीं.
मैं आपे से बाहर हो उठा और एक वक्त तो मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार टॉम डोनीलोन से कहा कि क्यों हर व्यक्ति अपना मुंह बंद नहीं रखता? पर इसका असर नहीं पड़ा.ओबामा के बयान की त्रुटियां पूर्व अधिकारी ने बताया कि ओबामा का भाषण हड़बड़ी में तैयार किया गया, जिसे उनके सलाहकारों ने एक राजनीतिक दस्तावेज के तौर पर लिया, न कि एक ऐसे संदेश के तौर पर, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा से संबद्ध सलाहकारों से दिखाने की जरूरत थी. इस तरह के मनमाने और त्रुटिपूर्ण बयान आगे आनेवाले सप्ताहों में अस्तव्यस्तता पैदा करते रहे. ओबामा ने कहा कि उनके प्रशासन को पिछले अगस्त में ‘एक संभावित सूत्र’ से यह पता चला कि बिन लादेन पाकिस्तान में है. सीआइए में कई लोगों को यह लगा कि यह बयान किसी भेदिये से भेंट जैसी किसी खास घटना की ओर इशारा करता है. इस टिप्पणी ने एक नयी कहानी को जन्म दिया कि सीआइए के प्रतिभाशाली विेषकों ने एक कोरियर नेटवर्क का पता लगाया, जो बिन लादेन द्वारा अल कायदा को भेजे जा रहे लगातार आदेशों को उस तक पहुंचाता रहता था. ओबामा ने अमेरिकी योजनाकारों के एक छोटे दल की भी तारीफ की, जिन्होंने इस कार्रवाई के दौरान नागरिकों के लिए किसी किस्म की जोखिम न ली. उन्होंने आगे कहा, ‘दोनों ओर से गोलियों के संघर्ष के बाद उन्होंने बिन लादेन को मार गिराया और उसके शव को अपने कब्जे में ले लिया.
अब आगे इस झूठी कहानी के लिए दो विवरण बुनने थे- एक तो उस संघर्ष की तफसील, जो हुआ ही नहीं और दूसरा कि उस शव का क्या किया गया. आगे ओबामा ने पाकिस्तानियों की तारीफ की-‘यहां यह बताना अहम है कि पाकिस्तान के साथ हमारे आतंकवादरोधी सहयोग से हमें बिन लादेन और उसके छिपने के अहाते तक पहुंचने में मदद मिली.’ उनका यह कथन कयानी और पाशा की कलई खोल देने को काफी था. व्हाइट हाउस ने इस समस्या का यह समाधान निकाला कि ओबामा ने जो कुछ कहा, उसकी अनदेखी कर दी जाये और जो कोई भी प्रेस से बातें करे, वह इस पर जोर देता रहे कि पाकिस्तानियों ने इसमें कोई भूमिका नहीं अदा की.
अंतिम भाग पढ़ें कल के अंक में.
(लंदन रिव्यू ऑफ बुक्स से साभार)
अनुवाद : विजय नंदन

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