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गलतियां न निकालें अपना चश्मा बदलें

।।दक्षा वैदकर।।कल रात मैं अपनी पसंदीदा फिल्म ‘इंगलिश-विंगलिश’ दोबारा देख रही थी. उसके एक सीन में श्रीदेवी को ‘जजमेंटल’ शब्द का मतलब समझ नहीं आता और वो भांजी से उसका अर्थ पूछती है. वह उसे समझाती है कि जब हम किसी व्यक्ति को बिना समङो, बिना जाने उसके बारे में अपने अनुसार कोई धारणा बना […]

।।दक्षा वैदकर।।
कल रात मैं अपनी पसंदीदा फिल्म ‘इंगलिश-विंगलिश’ दोबारा देख रही थी. उसके एक सीन में श्रीदेवी को ‘जजमेंटल’ शब्द का मतलब समझ नहीं आता और वो भांजी से उसका अर्थ पूछती है. वह उसे समझाती है कि जब हम किसी व्यक्ति को बिना समङो, बिना जाने उसके बारे में अपने अनुसार कोई धारणा बना लेते हैं, तो उसे जजमेंटल कहते हैं. इस वाक्य को सुनने के बाद मैं सोचती रही कि यह कितनी गहरी और गंभीर बात है.

कई बार हम सामनेवाले इनसान को जानने की कोशिश ही नहीं करते और उस पर किसी भी चीज का ठप्पा लगा देते हैं.

एक वाकया है. महाराष्ट्र की एक कंपनी में बाहर से कुछ लोगों को नौकरी पर रखा गया. उनमें से दो लोग दक्षिण भारतीय थे. दो साल बीत जाने के बाद दोनों के ही व्यवहार में बहुत अंतर आया. एक का परफॉर्मेस बहुत गिर गया, सेहत गिर गयी और वह अंतर्मुखी हो गया. वहीं दूसरे व्यक्ति को दो बार अच्छा इन्क्रीमेंट मिल गया, उसके कई सारे दोस्त बन गये और उसके चेहरे पर निखार आ गया. एक दिन दोनों साथ बैठे, तो तरक्की पानेवाले व्यक्ति ने दूसरे से पूछा, ‘तुम्हें क्या हो गया है, तुम पहले तो ऐसे नहीं थे?’

दूसरे ने जवाब दिया, ‘मुझे यहां काम करने में मजा नहीं आ रहा. यहां के लोग मददगार नहीं हैं. हम बाहर के हैं, इसलिए भेदभाव करते हैं. मुझे सब अजीब निगाह से देखते हैं. यहां के लोगों का रहन-सहन, बोलचाल भी मुझे पसंद नहीं. मैं वापस अपने लोगों के बीच जा कर रहना चाहता हूं.’ साथी को उसकी यह बात सुन कर आश्चर्य हुआ. उसने कहा, ‘ऐसा कैसे हो सकता है. मैं भी बाहर से हूं. मुझे तो सभी बहुत सहयोग करनेवाले लगे. बल्कि मुङो तो लगता है कि वे मेरी ज्यादा ही फिक्र करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि मैं यहां परिवार से दूर अकेले रहता हूं. मुझे यहां की संस्कृति, भाषा, खाना सब बहुत पसंद आया. कितनी मीठी भाषा है, कितना मधुर व्यवहार है यहां के लोगों का.’

आप सोच सकते हैं कि दोनों दोस्त एक ही कंपनी में काम कर रहे थे. ऑफिस के लोगों का व्यवहार दोनों के लिए अलग-अलग कैसे हो सकता है? यहां आपको समझना होगा कि समस्या ऑफिस के लोगों में नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के साथ थी. दरअसल उसने चश्मा ही गलत पहना था.

बात पते की..

लोगों में कमी निकालने का काम हम नहीं, हमारा चश्मा करता है. यह चश्मा है, हमारी सोच, विचार और नजरिये का चश्मा. इसे बदलना होगा.

आसपास के लोगों में गलती निकालना बंद करें. यह सिर्फ आपकी सोच है. हर इनसान अच्छा होता है. आपको बस उसकी खूबी तलाशनी होगी.

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