आत्मनिर्भरता का माध्यम बना पुरोहित बनना गढ़वा : पहले धारणा थी कि कर्मकांड जैसा कठिन कार्य सिर्फ पुरुष ही करते हैं. लेकिन, गढ़वा की महिलाओं ने इस मिथक को तोड़ा है. अब यहां किसी के यहां शादी-ब्याह कराने की बात हो या पूजा सब में महिलाएं सक्रिय भूमिका निभा रही हैं. डफली की थाप पर […]
आत्मनिर्भरता का माध्यम बना पुरोहित बनना
गढ़वा : पहले धारणा थी कि कर्मकांड जैसा कठिन कार्य सिर्फ पुरुष ही करते हैं. लेकिन, गढ़वा की महिलाओं ने इस मिथक को तोड़ा है. अब यहां किसी के यहां शादी-ब्याह कराने की बात हो या पूजा सब में महिलाएं सक्रिय भूमिका निभा रही हैं.
डफली की थाप पर इनके सधे हुए स्वर सहज रूप से सबको आकर्षित करते हैं. गढ़वा तथा आसपास के इलाके में ऐसी कई महिलाओं की टीम है. आरंभ में लोग व्यास की गद्दी पर महिला आचार्य को देख कर चौंक जाते थे, लेकिन अब यहां यह सामान्य सी बात हो गयी है. सिर्फ गढ़वा जिला मुख्यालय में नौ ऐसे महिला मंडल हैं. लोग भी अपने घर, पूजा अथवा कोई संस्कार कराने में महिलाओं को प्रमुखता देने लगे हैं. इस सबको प्रशिक्षण देने का काम अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थानीय प्रज्ञापीठ कर रहा है.
इस कर्मकांड से जुड़ कर महिलाएं न सिर्फ समाज में, बल्कि अपना व्यक्तित्व परिष्कार कर रही हैं, बल्कि एक अच्छी आय का माध्यम भी हो रहा है. यद्यपि गायत्री परिवार से सीधे जुड़ीं महिलाएं कर्मकांड से हुई आय को अपने मिशन को दे देती हैं. महिला मंडल की जिला प्रभारी सरला बहन से बात करने पर उन्होंने बताया कि कर्मकांड से होनेवाली आय से सालोभर मिशन की गतिविधि चलाने से लेकर सदस्य का का मानदेय भी निकल जाता है. यदि महिलाएं चाहें, तो वे इसे अपना स्वालंबन का माध्यम भी बना सक ती हैं, क्योंकि अच्छी पूजा-पद्धति समाज की मांग है. इसके एवज में एक अच्छी राशि भी मिल जाती है.