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प्रोजेक्ट लून : दूरदराज के इलाकों में इंटरनेट पहुंचायेंगे गूगल के गुब्बारे

दुनियाभर में ग्रामीण और पहाड़ी समेत दूरदराज के दुर्गम इलाकों में तार या बेतार माध्यम से इंटरनेट कनेक्टिविटी मुहैया कराना अब भी बड़ी चुनौती है. ऐसे में इन इलाकों में रहनेवालों के लिए गूगल के गुब्बारे यानी ‘प्रोजेक्ट लून‘ एक नयी उम्मीद लेकर आया है. क्या है यह प्रोजेक्ट, सुदूर इलाकों में कैसे मुहैया करायेगा […]

दुनियाभर में ग्रामीण और पहाड़ी समेत दूरदराज के दुर्गम इलाकों में तार या बेतार माध्यम से इंटरनेट कनेक्टिविटी मुहैया कराना अब भी बड़ी चुनौती है. ऐसे में इन इलाकों में रहनेवालों के लिए गूगल के गुब्बारे यानी ‘प्रोजेक्ट लून‘ एक नयी उम्मीद लेकर आया है.

क्या है यह प्रोजेक्ट, सुदूर इलाकों में कैसे मुहैया करायेगा इंटरनेट की कनेक्टिविटी, कैसी होगी इसकी काम करने की तकनीक आदि समेत इससे जुड़े जरूरी पहलुओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज..

दिल्ली : आप यह जरूर जानते होंगे कि आप जिस इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, उसकी कनेक्टिविटी आप तक कैसे पहुंची है. या तो यह तार के माध्यम से आप तक पहुंची होगी या फिर बेतार. बेतार माध्यम के लिए भी अनेक ऐसे इंतजाम किये जाते हैं, जिसके जरिये आपके घर तक इंटरनेट कनेक्टिविटी को पहुंचाया जाता है. यानी आपके घर तक इंटरनेट को बेतार पहुंचाने के लिए उस इलाके में संबंधित अनेक तकनीकी कार्यो को अंजाम दिया जाता है और तब जाकर आप उसका इस्तेमाल कर पाते हैं.

इंटरनेट के प्रसार के कारण आज दुनिया को भले ही ‘ग्लोबल कम्युनिटी’ कहा जा रहा हो, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी दुनिया की करीब दो-तिहाई आबादी इंटरनेट की पहुंच से दूर है. दरअसल, दुनियाभर के देशों में ग्रामीण समेत दूरदराज और पहाड़ी इलाकों में इंटरनेट पहुंचाना अब भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. ऐसे में गूगल ने एक बड़ी पहल की है और ‘प्रोजेक्ट लून’ के तहत ऐसे इलाकों में इंटरनेट पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. ऐसा होने से न केवल इंटरनेट से अब तक वंचित आबादी को इसकी पहुंच के दायरे में लाया जायेगा, बल्कि किसी प्रकार की आपदा की स्थिति में यह उनके लिए बेहद मददगार साबित होगा.

इस प्रोजेक्ट के सफल होने की स्थिति में दुनियाभर में दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में लोगों को जरूरी सूचनाएं और किसानों को मौसम के ताजा आंकड़े मुहैया कराने के साथ-साथ बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा मुहैया कराना संभव हो पायेगा. अब तक गूगल सर्च इंजन से अनजान विश्व की एक बड़ी आबादी को इसके दायरे में लाने के लिए गूगल ने इस प्रोजेक्ट के तहत इस साल के अंत तक समताप-मंडल में 100 बैलून छोड़े जाने का लक्ष्य निर्धारित किया है.

कैसे कार्य करेगा ‘प्रोजेक्ट लून’

‘गूगल’ के मुताबिक, ‘प्रोजेक्ट लून’ के तहत आकाश में बड़े-बड़े गुब्बारे छोड़े जायेंगे, जो धरती की सतह से करीब 20 किमी ऊपर समताप-मंडल में रहेंगे. समताप-मंडल में बहने वाली हवाएं स्तरीकृत (स्ट्रेटिस्फाइड) होती हैं और इन हवाओं के प्रत्येक लेयर गति और दिशा के मामले में भिन्न होते हैं. इन बैलूनों को किस ओर जाना है, इसके निर्धारण के लिए प्रोजेक्ट लून के तहत सॉफ्टवेयर एल्गोरिथम का इस्तेमाल किया गया है. इसके बाद ही ये बैलून हवा के स्तर में अपनी सही दिशा तय करेंगे. हवा की धारा के साथ बहते हुए ये बैलून एक बड़े कम्युनिकेशन नेटवर्क के दायरे में खुद को व्यवस्थित रखने में सक्षम हो सकते हैं.

समताप-मंडल में क्यों

दरअसल, समताप-मंडल अंतरिक्ष की सीमा पर मौजूद है. यह धरती से 10 किमी से 60 किमी तक की ऊंचाई का इलाका है, जहां वायु का दाब समुद्र की सतह के मुकाबले महज एक फीसदी होता है और इस तरह के वातावरण में हवा के बहने की गति कम रहती है और तापमान में नाटकीय बदलाव आते हैं. कई बार तापमान शून्य से 80 डिग्री सेल्शियस नीचे तक चला जाता है. बैलून को कुछ इस तरह सावधानी से डिजाइन किया गया है कि इन परिस्थितियों में वह स्थिर रह सके. प्रोजेक्ट लून समताप-मंडल में हवा के धीमे बहाव की इसी खासियत का फायदा उठाने में सक्षम है और साथ ही यह मौसम संबंधी परिघटनाओं, पक्षियों और वायुयानों की पहुंच के दायरे से ऊपर रहेगा.

कैसा है डिजाइन

बैलून के हवावाले हिस्से को ‘बैलून इनवेलप’ नाम दिया गया है. एक अच्छा बैलून इनवेलप इस बैलून को समताप-मंडल में करीब 100 दिनों तक टिकाये रखने में सक्षम है.‘गूगल’ की आधिकारिक रिपोर्ट में बताया गया है कि इस प्रोजेक्ट के तहत इस्तेमाल किये जा रहे बैलून को पॉलीथिलीन प्लास्टिक की शीट से बनाया गया है.

पूरी तरह से फुलाने पर इसकी चौड़ाई 15 मीटर और ऊंचाई 12 मीटर तक होती है. जब किसी बैलून को सर्विस से बाहर करना होता है तो उसके इनवेलप से गैस निकाल कर उसे नियंत्रित तरीके से धरती पर वापस लाया जाता है. किसी प्रकार की दुर्घटना के कारण यदि बैलून तेजी से नीचे गिरने लगे, तो उसे बचाने के लिए इनवेलप के ऊपरी हिस्से को पाराशूट से जोड़ा गया है, जो उसे बचा लेगा.

हवा में तैरनेवाले इनवेलप के नीचे बैलून के इलेक्ट्रॉनिक्स हैंग्स (किसी वस्तु को लटकाने के लिए इस्तेमाल की जानेवाली डिवाइस) में एक छोटा बॉक्स लगाया गया है, जो किसी हॉट एयर बैलून द्वारा ढोये जाने वाले एक बास्केट की तरह लगता है. इस बॉक्स में सर्किट बोर्ड लगा है, जो रेडियो एंटीना के माध्यम से अन्य बैलूनों से संचार संपर्क कायम रखने के अलावा धरती पर लगे इंटरनेट एंटीना के पूरे सिस्टम को नियंत्रित करता है. साथ ही यह सौर ऊर्जा को लिथियम ऑयन बैटरी में स्टोर करते हैं, ताकि इस बैलून को रात में भी चलाया जा सके.

सोलर पैनल से ऊर्जा

प्रत्येक बैलून के इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम को सौर पैनलों से ऊर्जा हासिल होती है. सौर सारणी एक फ्लेक्सिबल प्लास्टिक लैमिनेट है, जिसे कम वजनवाले एल्युमिनियम फ्रेम का सपोर्ट दिया गया है. यह उच्च क्षमतावाले मोनोक्रिस्टलिन सोलर सेल्स का इस्तेमाल करता है.

इस सौर सारणी को ऊपरी हिस्से में स्थापित किया गया है, ताकि जाड़े के दिनों में अधिक ऊंचाई पर भी प्रभावी तरीके से सूर्य की रोशनी को हासिल किया जा सके. इस सारणी को दो भागों में विभाजित किया गया है, ताकि यह विपरीत दिशा की ओर भी काम कर सके. बैलून के हवा में धीरे-धीरे स्पिन करने यानी खास तरीके से घूमने की दशा में यह सारणी सूर्य से ऊर्जा हासिल करने में सक्षम है.

सूर्य की पूरी रोशनी मिलने की दशा में यह पैनल करीब 100 वॉट ऊर्जा पैदा करता है, जो लून के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को सुचारु तरीके से संचालित रखने के लिए पर्याप्त है. साथ ही यह बैटरी को भी चार्ज करता है ताकि रात के वक्त इसे संचालित रखा जा सके. हवा के साथ बहते हुए और सूर्य के साथ चार्ज करते हुए प्रोजेक्ट लून अपनी जरूरत के लिए ऊर्जा को पैदा करने में स्वयं सक्षम है.

लून बैलून की तकनीक

प्रोजेक्ट लून बैलून के तहत छोड़े गये गुब्बारे समताप-मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) में तैरते हैं. मालूम हो कि समताप-मंडल की ऊंचाई वायुयानों के उड़ान भरने की अधिकतम ऊंचाई और मौसम की परिघटनाओं से करीब दो गुना ज्यादा है. समताप-मंडल में विंड (बहती हुई हवा) के अनेक लेयर्स हैं और दिशा व स्पीड के मामले में प्रत्येक लेयर में विभिन्नता रहती है. लून बैलून अपनी जरूरतों के मुताबिक इनमें से किसी भी लेयर में ऊपर की ओर उठते हुए या नीचे की आते हुए हवा के साथ उड़ते रहते हैं. इस प्रोजेक्ट के तहत साङोदार संचार कंपनियां सेल्युलर स्पेक्ट्रम शेयर करते हुए सीधे लोगों के फोन या अन्य एलटीइ आधारित डिवाइसों पर इंटरनेट नेटवर्क मुहैया कराती हैं.

इस तकनीक की एक बड़ी खासियत यह भी है कि यह 4जी आधारित है. इसके एक बैलून से उतने ही दायरे में सिगनल छोड़े जाते हैं, जितना धरती पर इंस्टॉल किये गये किसी टावर के माध्यम से. इसकी डाउनलोड स्पीड 10 मेगाबिट प्रति सेकेंड तक जा सकती है. गूगल ने इसे वाइ-फाइ कॉन्सेप्ट के साथ भी टेस्ट किया है, लेकिन फिलहाल इस प्लान को नहीं अपनाया गया है, क्योंकि इसके लिए धरती पर इंस्टॉल एंटीना का नेटवर्क कायम करने की जरूरत भी हो सकती है.

प्रोजेक्ट टाइटन

अब गूगल प्रोजेक्ट लून में एक और आयाम जोड़ रहा है- प्रोजेक्ट टाइटन. इसके तहत आसमान में गुब्बारों के साथ सोलर एनर्जी से चलने वाले ड्रोन्स भी होंगे. सेल्युलर रेडियो से लैस इन ड्रोन्स को उन जगहों पर तेजी से पहुंचाया जा सकेगा, जहां तेज इंटरनेट की जरूरत हो.

ये ड्रोन्स, अपने आप में भी इंटरनेट दे सकेंगे और जरूरत पड़ने पर प्रोजेक्ट लून के लून बैलून्स की मदद कर पायेंगे. गूगल के अलावा सोशल नेटवर्क कंपनी फेसबुक भी गुब्बारों और ड्रोन्स की मदद से इंटरनेट की पहुंच बढ़ाना चाहती है. कम ऊर्जा की खपत करते हुए और धरती पर लोगों को इंटरनेट कनेक्टिविटी मुहैया कराने में सक्षम पेलोड अपने साथ ले जाने वाले इन ड्रोन्स के प्रति गूगल ने दिलचस्पी दिखायी है. गूगल के प्रोजेक्ट लून की तरह ही टाइटन की टीम भी इस नये प्रकार के सुपर लाइटवेट सोलर-पावर्ड एयरोप्लेन को समताप-मंडल में भेजना चाहते हैं, जहां से यह इंटरनेट कनेक्टिविटी मुहैया करायेगा.

क्या है लॉन्ग टर्म इवोलुशन (एलटीइ)

लॉ न्ग टर्म इवोलुशन (एलटीइ) एक 4जी वायरलेस ब्रॉडबैंड टेक्नोलॉजी है, जिसे एक औद्योगिक ट्रेड समूह थर्ड जेनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट (3जीपीपी) द्वारा विकसित किया गया है. ‘सर्च मोबाइल कंप्यूटिंग’ में मार्ग्ेट राउस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 3जीपीपी के इंजीनियरों ने इस तकनीक का नाम ‘लॉन्ग टर्म इवोलुशन ’ इसलिए रखा, क्योंकि यह नेक्स्ट स्टेप (4जी) को दर्शाता है. एलटीइ तकनीक डाटा रेट को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने में सक्षम है और इसकी क्षमता 100 एमबीपीएस डाउनस्ट्रीम और 30 एमबीपीएस अपस्ट्रीम है.

मौजूदा जीएसम और यूएतटीएस तकनीक के आधार पर ही यह बैंडविड्थ क्षमता को बढ़ाने में भी यह पूरी तरह सक्षम है. भविष्य में इसे 300 एमबीपीएस तक ले जाने का प्रयास किया जा रहा है. एलटीइ का ऊपरी लेयर टीसीपी/ आइपी आधारित है, जो इसे मौजूदा तार आधारित संचार की भांति नेटवर्क मुहैया कराने में मदद करता है. भविष्य में यह मिक्स्ड डाटा, वॉयस, वीडियो और मैसेजिंग ट्रैफिक को सपोर्ट करेगा.

एलटीइ संचार कायम करने के लिए ओएफडीएम (ऑर्थोगोनल फ्रिक्वेंसी डिविजन मल्टीप्लेक्सिंग) का इस्तेमाल करता है और बाद में रिलीज करने के लिए एमआइएमओ (मल्टीपल इनपुट मल्टीपल आउटपुट) एंटीना तकनीक का इस्तेमाल करता है. यह तकनीक कुछ हद तक वायरलेस लोकल एरिया नेटवर्क (डब्ल्यूएलएएन) की तरह काम करती है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वेरिजोन वायरलेस एंड एटी एंड टी वायरलेस ने वर्ष 2010 में एलटीइ को कॉमर्शियल तौर पर लॉन्च किया था.

कब हुई इसकी शुरुआत

प्रोजेक्ट लून की शुरुआत जून, 2013 में न्यूजीलैंड में प्रयोगात्मक तौर पर की गयी थी. इस प्रोजेक्ट से जुड़े विशेषज्ञों के एक छोटे समूह ने इस तकनीक का यहां पर परीक्षण किया था. इसके अलावा, कैलिफोर्निया की सेंट्रल वैली और उत्तरपूर्वी ब्राजील में भी इस पायलट प्रोजेक्ट का परीक्षण किया गया. इन परीक्षणों के माध्यम से इसकी तकनीक को बेहतर बनाया गया और इस प्रोजेक्ट के आगामी चरण की तैयारी पर जोर दिया गया.

भारत में भी सेवा मुहैया कराने की तैयारी

वैश्विक इंटरनेट का सबसे बड़ा नाम गूगल अपनी महत्वाकांक्षी लून परियोजना भारत में भी ला रहा है. रिपोर्टो के मुताबिक, कंपनी भारत सरकार के संबंधित विभागों और विभिन्न टेलीकॉम कंपनियों के साथ विचार-विमर्श कर रही है.

मीडिया खबरों के मुताबिक, उम्मीद की जा रही है कि आगामी कुछ महीनों में यह सेवा भारत में शुरू हो सकती है. इस प्रोजेक्ट में ऊंचाई पर उड़ते गुब्बारों की मदद से दूर-दराज के इलाकों में इंटरनेट की सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य है. यह सेवा बहुत सस्ती होगी, ताकि अधिक-से-अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें.

भारत में इस सेवा का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण भारत और सुदूर क्षेत्रों में इंटरनेट का विस्तार करना है. इसी तरह की एक सेवा शुरू करने की घोषणा पहले फेसबुक ने भी की थी, जिसका मुख्य कार्य क्षेत्र अफ्रीका होना बताया गया था. लून बैलून सेवा ग्रामीण भारत में इंटरनेट की पहुंच को सुनिश्चित करने की दिशा में वरदान साबित हो सकती है.

प्रस्तुति : कन्हैया झा

कैसे कनेक्ट होगा लून

वायरलेस कम्युनिकेशंस टेक्नोलॉजी (जिसे एलटीइ कहा जाता है) का इस्तेमाल करते हुए प्रत्येक बैलून धरती पर करीब 40 किमी के दायरे में इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान कर सकता है. एलटीइ के इस्तेमाल से प्रोजेक्ट लून की साङोदार टेलीकम्युनिकेशन कंपनियां सेल्युलर स्पेक्ट्रम शेयर करेंगी ताकि लोगों को उनके फोन या अन्य एलटीइ- आधारित डिवाइसों पर सीधे इंटरनेट पहुंचाया जा सके. इस प्रकार बैलून से जारी किये जाने वाले वायरलेस सिगनलों के माध्यम से आसपास के 40 किमी के दायरे में रहने वाले लोगों को फोन या अन्य डिवाइसों पर हाइ स्पीड लिंक्स के साथ इंटरनेट मुहैया कराया जाता है.

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