।।दक्षा वैदकर।।
जहां कुछ लोगों को पढ़ाई पूरा होने से पहले ही जॉब के ऑफर आ जाते हैं, वहीं कुछ को पढ़ाई के बाद भी नौकरी के लिए संघर्ष करना पड़ता है. एक बार नौकरी मिल गयी, तो लोग आश्वस्त हो जाते हैं कि चलो अब आराम से काम करो. हर महीने तनख्वाह मिलती रहेगी. यह सोच कर कई बार लोग काम को इतने हल्के में लेने लग जाते हैं कि वे उस तरीके से काम को अंजाम नहीं दे पाते, जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है. इससे ऑफिस में उनका इंप्रेशन खराब होता है और इसका प्रभाव उनके करियर पर भी पड़ता है.
बेंगलुरू में मेरे एक दोस्त ने ऐसा ही किया. नौकरी नहीं मिलने तक तो वह खूब कंपनियों के चक्कर काटता रहा और जब नौकरी लग गयी, तो धीरे-धीरे वह काम को लेकर सुस्त पड़ने लगा. शुरुआत में उसके मार्केटिंग कौशल की वजह से कंपनी को फायदा हुआ और हर ओर उसकी चर्चा होने लगी. शायद उसे इसी बात का घमंड हो गया और उसने यह सोच लिया कि अब कंपनी में उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. कहते हैं न कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता. आखिर कितने दिन ऐसे काम चलता? लापरवाही का असर दिखने लगा. एक-दो बार बॉस की वार्निग के बाद भी उस पर कोई असर नहीं पड़ा. आखिरकार वह दिन आ ही गया, जब ऑफिस से उसकी विदाई कर दी गयी. आज वह फिर नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है.
जो मेरे दोस्त के साथ हुआ, वह किसी के साथ भी हो सकता है. इसलिए नौकरी मिलने के बाद भी जिम्मेदारियों के प्रति उतना ही गंभीर होना चहिए, जितना कि हम नौकरी मिलने से पहले इसे ढूंढ़ने के प्रति होते हैं. हमारे काम से ही हमारी पहचान होती है. यदि हमारा काम अच्छा रहा, तो इससे अच्छे नतीजे मिलेंगे. कंपनी हमारी काबिलीयत पर भरोसा करके हमें मौका देती है. यदि हम उस पर खरे उतरे, तो न सिर्फ कंपनी को लाभ होगा, बल्कि हम भी लाभान्वित होंगे.
बात पते कीः
-काम से हमारी असली पहचान होती है. यदि हमनें अपनी जिम्मेवारियों को बखूबी निभाया, तो यह हमारी सफलता के रास्ते खोल देगी.
-हमें यदि कोई काम सौंपा जाता है, तो इसका मतलब है कि हमारी काबिलियत पर भरोसा किया गया है. इस भरोसे को कभी टूटने नहीं देना चाहिए.