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ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत जारी

ब्रजेश उपाध्याय बीबीसी संवाददाता, वॉशिंगटन ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर स्विट्ज़लैंड में चल रही बातचीत के बारे में हमें वाशिंगटन में जो खबर मिल रही है उसके मुताबिक बातचीत आज बुधवार को भी जारी रहेगी. व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉश अर्नेस्ट ने संवाददाताओं को बताया, ”वार्ताकारों से ख़बर मिली है कि इस बातचीत को […]

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ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर स्विट्ज़लैंड में चल रही बातचीत के बारे में हमें वाशिंगटन में जो खबर मिल रही है उसके मुताबिक बातचीत आज बुधवार को भी जारी रहेगी.

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता जॉश अर्नेस्ट ने संवाददाताओं को बताया, ”वार्ताकारों से ख़बर मिली है कि इस बातचीत को तब तक जारी रखा जाएगा जब तक कि उसमें प्रगति नज़र आ रही है. "

इस बातचीत के बारे में ताज़ा जानकारी लेने के लिए अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विदेश मंत्री जॉन कैरी के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी की.

नहीं हुआ है फ़ैसला

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बीबीसी संवाददाता बारबरा प्लेट के मुताबिक बातचीत को लेकर अलग-अलग तरह की खबरें मिल रही हैं.

रूस के विदेश मंत्री का कहना है कि सैद्धांतिक तौर पर सभी अहम बिंदुओं पर सहमति बन गई है.

वहीं, ईरान के विदेश मंत्री का कहना है कि समझौते के मसौदे पर बुधवार को सुबह बात होगी.

लेकिन, अमरीकी अधिकारियों का कहना है कि कई अहम बिंदुओं पर अभी फ़ैसला नहीं हुआ है.

फिलहाल तीन या चार अहम बातों पर बहस हो रही है.

कहाँ हैं मतभेद

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इनमें से पहला मुद्दा है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अगले दस वर्ष तक सख्त पाबंदी लगे.

ईरान का कहना है कि दस साल के बाद ये पाबंदियां बिल्कुल खत्म हो जाएं, जबकि पश्चिमी देशों का कहना है कि पाबंदियों को दस साल बाद अगले पाँच सालों में चरणबद्ध तरीके से खत्म किया जाए.

दूसरा, ईरान का कहना है कि समझौता होते ही उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध तुरंत हटा लिए जाएं, जबकि पश्चिमी देशों का कहना है कि इन्हें धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से हटाया जाए.

तीसरे, पश्चिमी देश चाहते हैं कि ये भी प्रावधान हो कि अगर ईरान समझौते का उल्लंघन करे, तो प्रतिबंध फिर से लागू हो जाएं. उसके लिए दोबारा से संयुक्त राष्ट्र में जाने की ज़रूरत न रहे.

एक और बात जिस पर ईरान सहमत नहीं हो रहा है वो है अपने यूरेनियम भंडार को देश से बाहर भेजना. ये काफी पेचीदा मामला है.

कठिन है समझौते की डगर

ईरान को लेकर ओबामा प्रशासन की सोच ये है कि अगर बरसों से लगे प्रतिबंध उसके यूरेनियम संवर्धन पर रोक नहीं लगा सके तो बातचीत का रास्ता अपनाकर ये कोशिश की जानी चाहिए.

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लेकिन ईरान और अमरीका के रिश्तों को अगर हम इस तस्वीर से हटा भी दें तो तब भी मध्यपूर्व की अपनी कूटनीति इतनी पेचीदा है कि ये राह आसान नहीं है.

अमरीका के सबसे करीबी देश इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू इसके बिल्कुल ख़िलाफ़ हैं. समझौते की कोशिश के बीच उन्होंने एक तीखा बयान जारी किया है.

नेतन्याहू ने कहा, "इसराइल की सुरक्षा और उसके भविष्य के लिए सबसे बड़ा ख़तरा ईरान की परमाणु हथियार बनाने की कोशिशें हैं. इस समझौते से ईरान को जो छूट मिलेगी, उससे वो एक साल या कम समय में परमाणु बम बना सकते हैं."

अमरीका में रिपब्लिकन और कुछ डेमोक्रेट्स भी इस राय से सहमत नज़र आते हैं और इसी महीने वो ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों को और सख्त करने के लिए एक बिल ला रहे हैं.

राष्ट्रपति ओबामा की दलील है कि वो किसी ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे जो ईरान को ये छूट देगा, लेकिन, अमरीकी संसद यदि कोई और प्रतिबंध लगाती है तो फिर कोई समझौता नहीं हो पाएगा.

इसीलिए ओबामा प्रशासन स्विट्ज़रलैंड में चल रही बातचीत को एक ठोस आयाम देने की कोशिश में है.

करिश्मे का है इंतज़ार!

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अमरीका का मित्र देश सऊदी अरब भी ईरान के ख़िलाफ़ किसी भी तरह का लचीलापन अपनाए जाने के ख़िलाफ़ है.

यमन में जो संघर्ष शुरु हुआ है, उसमें ईरान की भूमिका की खासी आलोचना हो रही है.

इतने पहलू के बीच अगर सही मायने में कोई समझौता होता है तो वो एक करिश्मा होगा.

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