डॉ राजवीर शर्मा आइएआरआइ पूसा इंस्टीटयूट में बतौर प्रिंसिपल साइंटिस्ट(एग्रोनॉमी-ब्रीड कंट्रोल) कार्यरत हैं. पेश है खाद्य सुरक्षा और किसानों की समस्या पर पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह से विशेष बातचीत :
सरकार का दावा है कि खाद्य सुरक्षा कानून गरीबों के लिए है, इस लिहाज से मात्र 67 फीसदी लोगों को इसके दायरे में रखा गया है? इसका क्या मतलब हुआ क्या यह माना जाये कि देश में 67 फीसदी गरीब हैं?
गरीब और गरीबी की आंकड़े का निर्धारण करना सरकार का काम है, वह विभिन्न मानदंडो के तहत गरीबी रेखा का निर्धारण करती है. हमें गरीबी की संख्या में न उलझते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि अधिक से अधिक लोगों को पोषण युक्त भोजन मिले. ऐसा लगता है कि सरकार भी इसी सोच के अनुरूप लोगों को खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में लाना चाहती है, ताकि इसका लाभ ज्यादा लोगों तक पहुंचे. यह एक लोक कल्याणकारी योजना है, जिसके तहत 67 फीसदी लोगों को सस्ते में पौष्टिक खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाना है. इस कानून के जरिए 75 फीसदी गांव और 50 फीसदी शहर के लोगों को फायदा होगा. लोगों को भरपेट खाना मिलेगा तो देश को कुपोषण से मुक्ति मिलेगी.
लेकिन खाद्य सुरक्षा कानून के तहत कुपोषण मिटाने की बात भले ही कही जा रही हो, पर इसके तहत केवल गेहूं व चावल को सस्ते दर पर उपलब्ध कराने का प्रावधान है?
हमारे देश में हरित क्रांति के बाद देश में गेंहू और चावल की पैदावार बढ़ी है. बावजूद इसके गरीबों तक गेहूं और चावल नहीं पहुंचाया जा सका है. सरकार अगर खाद्य सुरक्षा के जरिए अच्छा चावल और अच्छा गेहूं लोगों को पहुंचाती है, तो इससे बहुत राहत मिलेगी. यह पेट भरने के लिए बहुत ही जरूरी अनाज है. यह मूल आवश्यकता को पूरा करने में मददगार होगा. जहां तक पोषण युक्त बाकी अनाजों का प्रश्न है, उम्मीद है सरकार अगले चरण में दलहन और तेलहन जैसे खाद्यान्न भी उपलब्ध करायेगी जिससे गरीबों को और राहत मिलेगा.
लोगों का मानना है कि किसान खेती-किसानी छोड़ रहे हैं, और खाद्यान्न की कीमतें बढ़ रही हैं. ऐसे में अगर सरकार यह कानून लाती है, तो कई तरह की समस्या खड़ी हो जाएगी?
किसानों की रुचि खेती-किसानी में कम हो रही है यह बात सही है, लेकिन इसके कारण अलग हैं. किसानों की फसल पैदा करने में लागत बढ़ रही है. उनको उनके फसल का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है. कीमतें बाजार के नियंत्रण में हो गयी हैं. बीज पर निजी कंपनियों का नियंत्रण बढ़ रहा है. संकर बीज या जेनेटिक बीज मंहगे होने के साथ-साथ दुबारा इस्तेमाल नहीं किये जा सकते. किसानों को हर साल नया बीज खरीदना होता है. हाइब्रिड कंपनियां बेहतर उत्पादन का दावा करती हैं, लेकिन कई बार उनके बीज ठीक काम नहीं कर पाते. बीज निर्माण में ज्यादातर निजी कंपनियां लगी हैं, इसके कारण किसानों को उचित मुआवजा नहीं मिल पाता. उत्पादकता बढ़ाने के लिए सिर्फ बेहतर बीज ही पर्याप्त नहीं है, इसके लिए मिट्टी की उर्वरकता और सिंचाई के बेहतर साधन बनाये जाने जरूरी हैं. जबकि देश में सिंचाई के साधन की उपलब्धता भी बड़ी समस्या है. उदाहरण के लिए हमारे देश की प्रमुख फसल धान है, लेकिन इस फसल को पैदा करने के लिए पर्याप्त मात्र में सिंचाई की जरूरत होती है. अगर समय पर सिंचाई न मिले तो फसल की उत्पादकता कम हो जाती है. देश के बड़े भूभाग में किसान की फसल बाढ़ में बह जाती है. इन इलाकों में हम दलहन की फसल नहीं लगा सकते. इसलिए हमें ऐसी फसलों का चयन करना होगा जो कि कुछेक सप्ताह पानी अगर खेतों में रुक जाता है तो फसल को ज्यादा नुकसान न हो. इसके साथ ही खर-पतवार नियंत्रण भी बड़ी समस्या है किसानों को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए. 16 अगस्त से 22 अगस्त के बीच प्रत्येक वर्ष खर-पतवार नियंत्रण के लिए कृषि विभाग द्वारा विशेष कार्यक्रम चलाये जाते हैं. इसकी जानकारी किसानों तक पहुंचाया जाना जरूरी है. ये सारी समस्या हैं. हमें इनका निदान ढूंढ़ना होगा.
जरूरत इस बात की है कि भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने जो रिसर्च किया है, अपने देश की मिट्टी के अनुरूप फसल पैदावार की जो प्रविधि विकसित की है, उससे किसानों को अवगत कराया जाये. जैसे कि वैसे इलाके जहां धान पैदा किया जा सकता है, लेकिन पानी की उपलब्धता कम है, उसके लिए सिस्टमोराइट इंटेसिफिकेशन, या टी डी ब्वायज वाले धान की पद्धति विकसित की गयी है. टीडी ब्वायज वाले धान में किसान धान का बिचड़ा तैयार करने के बजाय सीधे खेत में धान की फसल लगाता है, इसमें किसान को कम पानी की आवश्यकता है. इसी तरह की अन्य तकनीक हैं, जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है. जरूरत है खेती को वैज्ञानिक पद्धति के साथ तालमेल बिठाने की. निश्चित रूप से खाद्य सुरक्षा कानून को सुचारू रूप से चलाने के लिए बड़े पैमाने पर अनाज की जरूरत होगी, और यह अनाज तभी पैदा होगा जब किसानी खेती करें. इसलिए जरूरी है कि किसानों को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाया जाये.
अन्न का भंडारण बड़ी समस्या है. अक्सर देखने को मिलता है किसान वेयर हाउस के अभाव में अपनी फसल को जल्दी बेच देता है, और जो सरकारी वेयर हाउस है, वहां अनाज के रखरखाव का पुख्ता प्रबंध नहीं हैं जिसकी वजह से अनाज सड़ जाता है?
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कराने का लक्ष्य बहुत बड़ा लक्ष्य है. इसके लिए सरकार को कई स्तर पर प्रयास करना होगा. अन्न के उत्पादन के साथ-साथ उसके रखरखाव का पुख्ता प्रबंध करना होगा. इसमें कई स्तर पर काम किये जाने की जरूरत है, एक तो सरकारें खुद बड़े वेयर हाउस का निर्माण करें. इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर भी वेयर हाउस बनाये जाने चाहिए. सरकार को चाहिए सस्ते ब्याज पर लोन मुहैया करा कर पंचायतों व ग्रामसभाओं को इस काम में जोड़े. किसानों को खुद का वेयर हाउस निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करें. प्रत्येक ब्लॉक में प्रत्येक पंचायत में और यहां तक कि प्रत्येक घर में वेयर हाउस बनाने की जरूरत है, ताकि किसानों की मेहनत के से उपजाया अनाज सड़े नहीं. केवल वेयर हाउस के निर्माण के लिए ही नहीं बल्कि सरकार को हरेक स्तर पर पंचायतों की भागीदारी बढ़ानी चाहिए. पंचायत स्थानीय स्तर की निकाय है जो गांव की समस्या से पूरी तरह अवगत होती है. अगर राज्य और केंद्र के नीति निर्माता पंचायतों के सुझाव लेकर नीतियों का निर्माण करें तो हमारी ज्यादतर समस्याएं सुलझ जाएंगी. देश में अलग-अलग जगहों पर खेती से जुड़ी अलग-अलग समस्याएं हैं. इनको एक मापदंड के तहत नहीं बल्कि क्षेत्र विशेष की समस्या मानते हुए सुलझाना होगा, और पंचायतें इसमें अहम भूमिका निभा सकती हैं.