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तकनीक के मेल से किस तरह के होंगे भविष्य के विश्वविद्यालय?

शिक्षा को सुगम और रोचक बनाने के लिए सामने आ रही नयी-नयी तकनीक क्या शिक्षा की पारंपरिक व्यवस्था को पूरी तरह बदल देगी? यह सवाल आज दुनियाभर में बहस का विषय बना हुआ है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे एक दिन विश्वविद्यालयों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा, जबकि कुछ अन्य विशेषज्ञ मानते हैं […]

शिक्षा को सुगम और रोचक बनाने के लिए सामने आ रही नयी-नयी तकनीक क्या शिक्षा की पारंपरिक व्यवस्था को पूरी तरह बदल देगी? यह सवाल आज दुनियाभर में बहस का विषय बना हुआ है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे एक दिन विश्वविद्यालयों का अस्तित्व खत्म हो जायेगा, जबकि कुछ अन्य विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे विश्वविद्यालयों को सक्षम और प्रभावी बनाया जा सकेगा. ऐसी ही एक बहस के बीच ले जा रहा है नॉलेज..

दिल्ली: तकनीक के प्रचार-प्रसार के साथ ही एक वैश्विक प्रयास इस दिशा में भी चल रहा है कि शैक्षणिक संसाधनों को अधिक-से-अधिक लोगों तक बिना खर्च या बहुत ही कम खर्च पर पहुंचाया जाये. इस दिशा में सबसे पहली बड़ी पहल अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के द्वारा 2001 में की गयी.

उस वर्ष संस्थान ने यह घोषणा की कि उसके सारे पाठ्यक्रम, संबंधित सामग्री और प्रश्न-उत्तर नि:शुल्क ऑनलाइन उपलब्ध कराये जायेंगे. अगले वर्ष ओपेन कोर्सवेयर के नाम से 32 पाठ्यक्रमों के साथ यह कोशिश शुरू की गयी. इंस्टीट्यूट के मुताबिक, आज 12.5 करोड़ से अधिक लोग 2,150 कक्षाओं की सामग्री को इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त करते हैं. वर्तमान में सैकड़ों विश्वविद्यालय और संस्थान इंटरनेट के जरिये अपने पाठ्यक्रम दुनियाभर में पहुंचा रहे हैं.

इंटरनेट, कंप्यूटर और स्मार्ट फोन की बढ़ती उपयोगिता और पहुंच के मौजूदा माहौल में शिक्षा के पारंपरिक तौरतरीके- जैसे पारंपरिक कक्षा, ब्लैकबोर्ड, नोटबुक और पेन कितने उपयोगी रह जायेंगे, यह बात बहस में है. लेकिन, प्रश्न यह भी है कि इनकी जगह पर क्या होगा और वैकल्पिक परिदृश्य की रूपरेखा क्या होगी. प्रतिष्ठित पत्रिका ‘टाइम’ ने कुछ जानकारों की राय ली है कि ओपेन ऑनलाइन पाठ्यक्रमों, इंटरनेट पर उपलब्ध पाठ्यपुस्तकों और बड़े पैमाने पर आंकड़े संग्रहित करने की परिस्थिति विश्वविद्यालयों को किस तरह से बदल सकती है.

प्रोफेसर एंडी मियाह, साइंस कम्युनिकेशन एंड फ्यूचर मीडिया, सालफोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड

छात्र बनेंगे संचालक

तकनीक विश्वविद्यालयों को 21वीं सदी के जनजीवन में अपनी भूमिका को पुनर्भाषित करने के लिए मजबूर कर देगा, और इसका मुख्य कारक ‘खुद से करनेवाली’ पीढ़ी है, जो गूगल और विकिपीडिया से अपनी पसंद और जरूरत के मुताबिक विषय का चयन करती है. ऐसे मंच एक कोशिकीय जीवन-संरचनाओं के समकक्ष हैं जिनसे मनुष्यता का उद्भव हुआ है.

अब विश्वविद्यालय नये ज्ञान के पहरेदार नहीं हैं, खासकर सिटीजन साइंस प्रयोगों के बाद तो उनकी भूमिका सीमित हो रही है. इन प्रयोगों में बिना किसी विशेषज्ञतावाले भी महत्वपूर्ण जानकारियां जुटा सकते हैं और मोजिला ओपेन बैजेज जैसे वैकल्पिक योग्यताएं हासिल कर सकते हैं.

निकट भविष्य में छात्र सहज और मोबाइल के जरिये अनुभवों की चाह करेंगे, जो फिल्मों और नाटकों की तरह दिलचस्प हो. भाषण श्रृंखला की सफलता शिक्षकों से बदलती अपेक्षाओं तथा नयी पीढ़ी की बदलती रुचियों का ही संकेत है.

विश्वविद्यालयों को शिक्षण में परिवर्तन पर गंभीरता से ध्यान देगा होगा, ताकि हर कक्षा यादगार हो और छात्रों के लिए जीवनभर काम आये.

कक्षाओं में छात्रों को पसंद और सीखने के तरीके निर्धारित करने के लिए अधिकार देने होंगे. तकनीक को सिर्फ संचार या शिक्षण को बेहतर करने के रूप में ही नहीं, बल्कि एक सहयोगी तत्व के रूप में अपनाना होगा. कंप्यूटर अब ऐसी इकाई बन जायेगा, जिस पर छात्र अपनी अपेक्षाओं को प्रोजेक्ट कर सकेगा. मशीनें हमें सिखायेंगी, वे भी सीखेंगी और वे जितना समय छात्र के साथ बितायेंगी, उतना एक प्राध्यापक के लिए कतई संभव नहीं होगा. अगर हम चाहते हैं कि इस संबंध के केंद्र में मनुष्य बना रहे, तो हमें उन बातों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो मशीनें नहीं दे सकेंगी.

शाई रेशेफ संस्थापक अध्यक्ष, यूनिवर्सिटी ऑफ पीपुल

शिक्षा का प्रसार दुनिया के हर कोने में होगा

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तेज और महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं- मांग बढ़ रही है, प्रदाताओं में विविधता बढ़ रही है, छात्र पहले से कहीं अधिक गतिशील हैं. परंतु शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता में बहुत अधिक विषमता है. बड़ी आबादी अभी तक इस तक नहीं पहुंच सकी है. कॉलेज जाने लायक और जाने के इच्छुक छात्रों की तेजी से बढ़ती संख्या वस्तुगत और मानवीय संसाधनों की क्षमता से परे है. ऐसे में अच्छे ऑनलाइन संसाधनों की अत्यधिक आवश्यकता है.

तकनीक उच्च शिक्षा के कुछ लोगों के विशेषाधिकार तक सीमित होने को सभी के लिए अधिकार के रूप में बदल देगा. विस्तार के कारण इंटरनेट और वायरलेस तकनीकों के खर्च में कमी आ रही है. इसके तीन परिणाम सामने हैं : (1) शिक्षा तक पहुंच एक मानवाधिकार है. (2) सूचना की स्वतंत्रता एक सार्वभौमिक स्वतंत्रता है. (3) लोग स्वाभाविक रूप से एक दूसरे की मदद की इच्छा रखते हैं, जैसा कि सोशल नेटवर्किंग से स्पष्ट होता है.

तकनीक का प्रसार निश्चित रूप से शिक्षा और अकादमिक अध्ययन को दुनिया के कोने-कोने तक लेकर जायेगा, लेकिन बिना ब्रॉडबैंड वाले इंटरनेट सुविधाओं के चलते तकनीक के शैक्षणिक लाभ सीमित हो जाते हैं. दुनिया के पहले नि:शुल्क और मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय ‘यूनिवर्सिटी ऑफ पीपुल’ में हमलोगों ने इसी चुनौती पर विचार किया है और पाठ्यक्रमों को इस तरह से डिजायन किया है जिससे बिना ब्रॉडबैंड वाले छात्र भी लाभ उठा सकें. इसी वजह से हम 150 से अधिक देशों में पहुंच सके हैं.

तकनीक के पास हर जगह ज्ञान का प्रसार करने की क्षमता है, लेकिन समुचित ढंग से अध्ययन के लिए लोगों को व्यक्तिगत ध्यान की जरूरत होती है. यह बात उन लोगों के संदर्भ में और भी अधिक जरूरी है, जो शहरों से दूर और ऐतिहासिक रूप से शिक्षा से वंचित होकर हाशिये पर रहते हैं. इसी वजह से हम अपने विश्वविद्यालय के ऑनलाइन पाठ्यक्रम में 20-30 लोगों का समूह रखते हैं, ताकि उन पर ठीक से ध्यान दिया जा सके.

हैंस जॉनसन फेलो, पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट ऑफ कैलिफोर्निया.

सामुदायिक कॉलेज दिखायेंगे भविष्य की राह

यह आम अनुमान है कि नयी तकनीक उच्च शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव कर ईंट-गारे से बने पारंपरिक कॉलेजों को चलन से बाहर कर देगी. निश्चित रूप से, नयी तकनीक में जोरदार संभावनाएं हैं- कॉलेज तक पहुंच को सुलभ करना, पाठ को प्रभावशाली बनाना, स्नातकों की संख्या बढ़ाना आदि. परंतु उच्च शिक्षा में नये युग के सूत्रपात की घोषणा करने से पहले हमें इस बात का आकलन करना होगा कि नयी तकनीक किस हद तक उच्च शिक्षा की मूलभूत चुनौतियों का समाधान कर सकेगी.

शायद सबसे बड़ी चुनौती उच्च शिक्षा को आर्थिक और सामाजिक प्रगति की सीढ़ी बनाना है, न कि वर्तमान विषमताओं को और बढ़ाना. इस आधार पर हम अभिजात्य विश्वविद्यालयों के सहयोग से चल रहे अधिकांश ऑनलाइन ओपेन पाठ्यक्रमों को खारिज कर सकते हैं. इनमें अधिकतर ऐसे लोग दाखिला लेते हैं, जिनके पास पहले से ही कॉलेज की डिग्रियां होती हैं, और इनमें से अधिकतर कोर्स पूरा भी नहीं करते हैं.

इस संदर्भ में कैलिफोर्निया के कम्युनिटी कॉलेज अलग प्रयोग कर रहे हैं. दस लाख से अधिक नामांकन वाले ये ऑनलाइन कॉलेज कम आय और अपारंपरिक छात्रों के लिए विश्वविद्यालयी शिक्षा का सेतु बन रहे हैं. शोध से हमने पता लगाया है कि कोर्स छोड़ने की दर ऑनलाइन के छात्रों में अधिक है और उनके लिए वास्तविक कक्षाएं कटु अनुभव हैं. इस संदर्भ में हमें तकनीक और शिक्षण को बेहतर करना होगा और सामुदायिक कॉलेजों के अनुभव को विस्तार देना होगा.

कुई शी, निदेशक, रिसर्च लैबोरेटरी फॉर डिजीटल लर्निंग, ओहायो विश्वविद्यालय, अमेरिका

शिक्षक और कक्षाएं खत्म नहीं हो सकते

नयी तकनीक हमेशा ही उत्साह पैदा करती है क्योंकि वह मानवीय अनुभव को बेहतर करती है और उसे बदलती है. जब पहली बार किताब, रेडियो और टेलीविजन का आगमन हुआ था तो लोगों ने ऐसी ही प्रतिक्रियाएं दी थीं. इंटरनेट, कंप्यूटर और सहभागितावाले साइबर-इंफ्रास्ट्रक्चर इसी परंपरा को आगे ले जा रहे हैं. वृहत ओपेन ऑनलाइन पाठ्यक्रम दुनियाभर में लाखों लोगों को सहज और नि:शुल्क शैक्षणिक अवसर प्रदान कर रहे हैं.

ऐसे पाठ्यक्रमों ने इस बहस को जन्म दिया है कि क्या वे शिक्षकों और पारंपरिक विद्यालयों की जगह ले सकते हैं, पर ऐसी बातें पहले आयी नयी तकनीकों के संदर्भ में उठ चुकी हैं. ऐतिहासिक दृष्टि से देखें, तो इसका स्पष्ट और निरंतर उत्तर नहीं है. इसका कारण यह है कि शिक्षा-तंत्र के लिए मानवीय तत्व अपरिहार्य है.

स्कूलों और विश्वविद्यालयों में छात्रों का अनुभव सिर्फ किसी ज्ञान विशेष या समस्या-समाधान के लिए कौशल हासिल करने तक सीमित नहीं होता है. वे सहभागिता, नेतृत्व, मित्रता और प्रशिक्षुता जैसे अंतरवैयक्तिक सामाजिक अनुभव भी सीखते हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण हैं. ऑनलाइन पाठ्यक्रमों से इनकी उम्मीद नहीं की जा सकती है. और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वर्तमान ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की अपनी सीमाएं हैं (जैसे- विश्वसनीयता, पहुंच, उत्प्रेरकता की उच्च मांग और स्व-नियमन).

हालांकि इन सब बातों के साथ इस बात से भी मेरी सहमति है कि शिक्षकों और विद्यालयों पर तकनीक का दूरगामी प्रभाव पड़ा है. ऑनलाइन पाठ्य सामग्री ‘मिश्रित अध्ययन’ यानी ब्लेंडेड लर्निंग को आधार देता है, जिसमें छात्र कुछ पारंपरिक कक्षाओं में और कुछ ऑनलाइन से सीखता है, तथा ‘फ्लिप्ड क्लासेज’ का अवसर देता है जिसमें छात्र घर में कंप्यूटर पर कक्षाएं देखता है और होमवर्क कर कक्षा में शिक्षक के पास ले जाता है, जो उसका मार्गदर्शन करता है.

वर्चुअल खेलों ने शिक्षा के बारे में छात्रों की सोच को बहुत हद तक बदल दिया है : सीखना प्रेरणादायक, रुचिकर और प्रभावी हो सकता है. आकड़ों का विश्लेषण शिक्षण के तौर-तरीकों के बारे में नयी समझ और छात्रों के रुझान का संकेत दे सकता है, तथा प्रशासकों को निर्णय लेने में मददगार हो सकता है. आनेवाले समय में तकनीक शिक्षा व्यवस्था में उत्साहजनक बदलाव ला सकता है जिससे विश्वविद्यालयों को अधिक सक्षम और प्रभावी बनाया जा सकेगा तथा वे मानव समाज की बड़ी आबादी के लिए असरकारी हो सकेंगे.

कैथरीन इक्लेस डिजिटल मीडिया रिसर्चर, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय

लोग ज्ञान के विकास में सहभागी होंगे, पर विश्वविद्यालय बचे रहेंगे

तकनीक विश्वविद्यालयों को बदल रहे हैं. मैं खुद पारंपरिक इतिहासकार से अब ‘डिजिटल ह्युमैनिटीज स्कॉलर’ बन गयी हूं और मानविकी विषयों पर तकनीक के प्रभाव का अध्ययन करती हूं. लोगों की व्यापक सहभागिता से हम बड़े डेटा को सुलझा रहे हैं और उन्हें रिसर्च प्रक्रिया में हिस्सेदार बना रहे हैं. गैलेक्सी और पेंटिंग के बारे में सूचनाएं जुटाने में भी आम लोगों ने योगदान किया है क्योंकि इनसे जुड़ी बहुत-सी बातें कंप्युटर गणना की क्षमता से बाहर हैं.

पर, इनसे विश्वविद्यालयों के अस्तित्व पर खतरा नहीं है. इनके अस्तित्व को हमारी दुनिया से संबंधित शोध, समझ और विश्लेषण की आवश्यकता सुनिश्चित करती रहेगी. डगलस एडम्स ने कहा था कि किताबें कभी नहीं मर सकती हैं क्योंकि ‘किताबें किताबें हैं और वे बची रहेंगी.’ इसी तरह तकनीक विश्वविद्यालय को खत्म नहीं करेगी, क्योंकि उनका जो काम है, उसमें वे बहुत सक्षम हैं.

बढ़ रहा है शिक्षा क्षेत्र में तकनीक पर निवेश

विश्वभर में शिक्षा क्षेत्र में तकनीक पर निवेश में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. सीबी इनसाइट्स के अनुसार 2014 में इसमें 55 फीसदी की वृद्धि हुई थी. ग्लोबल इंडस्ट्री एनालिस्ट्स की एक रिपोर्ट का आकलन है कि 2015 में वैश्विक इ-लर्निंग का बाजार 107 बिलियन डॉलर हो जायेगा. डालते हैं हाल की मुख्य शैक्षणिक तकनीकी पहलों पर एक नजर.

ऑनलाइन कॉरपोरेट लर्निंग

रोलांड बजर्र स्ट्रेटेजी कंसल्टैंट के अनुसार कॉरपोरेट इ-लर्निंग 2017 तक 13 फीसदी की दर से बढ़ेगा. इसका कारण यह है कि कंपनियां सुलभ, सस्ते और प्रभावी तरीके से अपने कर्मचारियों के ज्ञान के विकास के महत्व को समझने लगी हैं. व्यापक स्तर के ओपेन ऑनलाइन पाठ्यक्रमों, जो अभी कमाई के भरोसेमंद तरीके की तलाश में फंसे हैं, के उलट कॉरपोरेट इ-लर्निंग पर आधारित व्यवसायों का मॉडल अच्छी तरह कारगर है.

इस शिक्षण-प्रक्रिया में कर्मचारियों की जरूरत और समय की उपलब्धता को ध्यान में रख कर पाठ्यक्रम और सत्र तैयार किये जाते हैं, जिन्हें किसी भी डिजिटल उपकरण पर उपलब्ध कराया जा सकता है. हालांकि यह क्षेत्र अभी शुरू ही हुआ है, पर कॉरपोरेट इ-लर्निंग शिक्षा के नये तौर-तरीकों की ओर अग्रसर होने का उत्साह देता है जिसके परिणाम बेहतर हो सकते हैं.

कौशल मापन

कॉरपोरेट लर्निंग के प्रसार के साथ ही यह देखने को मिल सकता है कि शिक्षण व प्रशिक्षण में कौशल के आकलन के साथ प्रशिक्षु की व्यक्तिगत प्रगति, क्षमता-आधारित सीखने की प्रक्रिया और अंतत: उसका समूहिकता से जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित किया जाये.

क्लेटोन क्राइस्टेंसेन इंस्टीट्यूट के अनुसार, जब सीखनेवालों के अनुरूप अलग-अलग शिक्षा प्रदान की जाती है, तब यह सुनिश्चित करना जरूरी हो जाता है कि मॉडुलर लर्निंग के अनुभवों को साङो तौर पर समरूपता दी जाये. इसके लिए छात्रों का सक्षमता से मूल्यांकन करना और अन्य अनुभवों के साथ उनको जोड़ना आवश्यक हो जाता है.

इसके लिए इंस्टीट्यूट ने कौशल मूल्यांकन के तरीके बनाये हैं, जो एडॉप्टिव अल्गोरिद्म के जरिए कुछ सवालों के आधार पर बहुत ही कम समय में जरूरी आकलन कर लेते हैं. इसी तरह उडासिटी ने नैनोडिग्रीज और जेनेरल असेंबली ने माइक्रोक्रेडेंसियल्स जैसे प्रोग्राम बनाये हैं. ऑनलाइन ओपेन पाठ्यक्रम वाली संस्थाओं को इस क्षेत्र में बने रहने के लिए बेहतर कौशल आकलन पर ध्यान देना होगा.

ऑल्टरनेटिव लर्निंग स्टाइल्स

लिखित या वीडियो आधारित पाठ्य-सामग्रियों की उपयोगिता अभी भी है, लेकिन 2015 में सीखने के नये तरीकों का आगमन भी होने जा रहा है. इनमें छात्रों को सीधे ब्राउजर में कोड लिखने की सुविधा देकर इंटरएक्शन को अधिक जीवंत करना या ऑनलाइन समस्याओं के समाधान का सीखने की प्रक्रिया का भाग होना आदि शामिल हैं. प्लुलरसाइट ने इसी को ध्यान में रखकर कोड स्कूल का अधिग्रहण किया है.

कोड स्कूल में सीखने की प्रक्रिया को साधारण वीडियो कार्यक्रमों की तुलना में अधिक मजेदार, दिलचस्प और प्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है. इसमें छात्र एक वीडियो देखता है और फिर इंटरएक्टिव कोडिंग के जरिये अपने पाठ को ठोस बनाता है. आगे बढ़ने के लिए यह जरूरी होता है और यह सब ब्राउजर में ही होता है. इस प्रक्रिया में हर छात्र का मूल्यांकन भी होता जाता है, जो आगे के शिक्षण का आधार बनता है. इसके साथ एक मोबाइल एप्प भी होता है, जिससे उपयोगकर्ता संबंधित वीडियो और टेक्स्ट देख और पढ़ सकता है.

क्षमता-आधारित ऑनलाइन प्रशिक्षण

हालांकि क्षमता-आधारित प्रशिक्षण और ऑनलाइन शिक्षण नयी प्रक्रियाएं नहीं है, परंतु इन दोनों को मिश्रण से शिक्षा में एक क्रांतिकारी पहल की आहट मिल रही है. मिशेल आर वेइसे और क्लेटोन एम क्राइस्टेंसन के अनुसार, क्षमता-आधारित ऑनलाइन प्रशिक्षण में इसलिए व्यापक क्षमता है कि इसमें न सिर्फ सही मॉडल है, बल्कि सही तकनीक, ग्राहक और बिजनेस मॉडल भी सम्मिलित है. इस प्रणाली में सीखने की प्रक्रिया को पाठ्यक्रमों या विषयों में नहीं बांटकर, क्षमताओं के अनुरूप वर्गीकृत किया जाता है और इस प्रकार शिक्षण को पारंपरिक संस्थानों और तरीकों से मुक्त किया जाता है.

फ्लिप्ड-लर्निंग टेक

फ्लिप्ड क्लास मिश्रित लर्निंग का एक तरीका है जिसमें छात्र कक्षा के बाहर ऑनलाइन वीडियो देखता है और फिर शिक्षक की मौजूदगी में कक्षा में होमवर्क करता है. खान एकेदमी फिलहाल इस प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. बहरहाल, नयी तकनीकें चाहे जितनी आकर्षक व प्रभावी हों, लेकिन शिक्षण प्रक्रिया के मुख्य लक्ष्य ही प्राथमिक होने चाहिए. माइकल बी हॉर्न व हीथर स्टेकर ने लिखा है कि उद्देश्य को केंद्र में रखा जाना चाहिए, न कि सिर्फ तकनीक के उपयोग भर के लिए उनका प्रयोग किया जाये.

आरॉन स्कॉनार्ड, सीइओ, प्लुरलसाइट

(साभार : इंक डॉट कॉम)

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