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ब्रह्मांड में मिल्की वे के आसपास खोजे गये दस लाख से ज्यादा नये तारे
धरती से आपको कितने तारे दिखाई देते हैं? आप कुछ हजार या लाख बतायेंगे, लेकिन हमारी गैलेक्सी ‘मिल्की वे’ में 100 से 400 करोड़ तारे हैं. इतना ही नहीं, अब वैज्ञानिकों ने मिल्की वे के आसपास दस लाख से ज्यादा नये तारों का पता लगाया है, जो सूर्य से काफी ज्यादा चमकीले हैं. इसके साथ […]
धरती से आपको कितने तारे दिखाई देते हैं? आप कुछ हजार या लाख बतायेंगे, लेकिन हमारी गैलेक्सी ‘मिल्की वे’ में 100 से 400 करोड़ तारे हैं. इतना ही नहीं, अब वैज्ञानिकों ने मिल्की वे के आसपास दस लाख से ज्यादा नये तारों का पता लगाया है, जो सूर्य से काफी ज्यादा चमकीले हैं. इसके साथ ही एक बौने गैलेक्सी की भी पहचान हुई है. क्या है इस शोध का मतलब, क्या होती हैं गैलेक्सी, कैसी है यह नयी गैलेक्सी, क्या हैं सुपरनोवा और ड्वार्फ आदि जैसे जानने योग्य तथ्यों पर नजर डाल रहा है नॉलेज.
अंकित कुमार
दिल्ली : रात में चमकीले तारों की टिमटिमाहट से हम सभी परिचित हैं. हम यह भी जानते हैं कि धरती से आकार में बहुत छोटे दिखनेवाले ये तारे वास्तव में बहुत बड़े होते हैं. कई तो विशालकाय सूर्य से भी कई गुना ज्यादा बड़े हैं. हालांकि, पृथ्वी से हजारों ‘प्रकाश वर्ष’ (खगोलीय दूरी मापने की इकाई) दूर होने की वजह से तारे घरती पर से हमें छोटे आकार के नजर आते हैं. धरती से हमें जो तारे दिखते हैं, वे हमारी गैलेक्सी ‘मिल्की वे’ के तारे हैं.
‘मिल्की वे’ के बारे में वैज्ञानिकों ने हाल ही में कुछ नये तथ्य प्रस्तुत किये हैं, जो आश्चर्यचकित करनेवाले हैं. वैज्ञानिकों को ‘मिल्की वे’ के आसपास दस लाख से अधिक नये तारे दिखे हैं. इतना ही नहीं, खगोलशास्त्रियों ने मिल्की वे के नजदीक एक बौने गैलेक्सी की पहचान भी की है. इसकी पहचान गैलेक्सी के आसपास की गरमी, आकाश में धूल और गैसों से हुई है. तारों का यह समूह एक बौने गैलेक्सी (ड्वार्फ गैलेक्सी) ‘एनजीसी 5253’ के अंदर दिखाई दे रहा है. ‘एनजीसी 5253’ नामक ड्वार्फ गैलेक्सी एक खास तारामंडल, जिसे ‘नरतुरंग’ (संटौरस कॉन्सटलेशन) कहा जाता है, के भीतर मौजूद है.
देखी जा सकती है तारों से पैदा धूल
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह स्टार क्लस्टर (तारा समूह) सूर्य से दस लाख गुना अधिक चमकीला है. हालांकि, सामान्य प्रकाश में यह हमें दिखाई नहीं देता है. इसकी वजह इस गैलेक्सी में गरम गैस की अधिक मात्र में मौजूदगी है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में फिजिक्स एवं एस्ट्रोनॉमी की प्रोफेसर जीन टर्नर के हवाले से खबरों में बताया गया है कि यह क्लस्टर तारों की फैक्टरी की तरह है.
इस शोध रिपोर्ट की प्रमुख जीन टर्नर का कहना है कि तारों द्वारा उत्पन्न धूल को देखा जा सकता है. सामान्य तौर पर ऐसा नहीं होता है. चारों तरफ धूल की मात्र असाधारण हैं, क्योंकि इसका द्रव्यमान सूर्य की तुलना में 15,000 गुना अधिक है. इसमें मौजूद तत्व कार्बन और ऑक्सीजन की मात्र भी कई गुना अधिक है.
यह क्लस्टर लगभग 30 लाख वर्ष पुराना है. निश्चित तौर पर यह अवधि खगोलशास्त्र के लिहाज से बहुत कम है. इसलिए इसे नया क्लस्टर कह सकते हैं. काफी कम आयु होने के कारण यह उम्मीद जतायी जा रही है कि यह क्लस्टर अभी एक करोड़ से अधिक वर्षो तक अस्तित्व में रहेगा. हमारी गैलेक्सी मिल्की वे ने पिछले करोड़ों वर्षो में इतनी बड़ी संख्या में नये तारों को जन्म नहीं दिया है. मिल्की वे में भी नये तारे बन रहे हैं, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में नहीं.
विशालकाय है नयी गैलेक्सी
कुछ खगोलविदों का मानना है कि इतने बड़े तारामंडल का निर्माण ब्रह्मांड की अल्प अवस्था में हुआ होगा. मिल्की वे में गैस क्लाउड्स हैं, लेकिन इसकी तुलना नये खोजे गये गैलेक्सी के क्लाउड डी से करना गलत होगा. इसकी वजह के नये क्लाउड डी में बहुत अधिक मोटाई के गैस और धूल की मौजूदगी देखी गयी है.
इस नयी गैलेक्सी के विशालकाय होने का अंदाजा कुछ अन्य तथ्यों से भी लगाया जा सकता है. ब्रह्मांड के विभिन्न हिस्सों में तारों में धूल की मात्र अलग-अलग होती है. मिल्की वे में क्लाउड डी के लिए गैस क्लाउड्स की दर पांच प्रतिशत से कम है, जबकि इस नये तारा समूह के लिए यह कम-से-कम दस गुना अधिक है.
टर्नर का कहना है कि इस क्लस्टर की खोज विशेष समय पर हुई है. उन्होंने यह उम्मीद जतायी कि इतने बड़े क्लस्टर में हजारों तारे होंगे. हजारों तारों की उपस्थिति के कारण हम मिल्की वे में ‘सुपरनोवा’ को समझ सकेंगे. इस क्लस्टर में सात हजार से अधिक बहुत बड़े ‘ओ’ तारे हैं. दरअसल, ‘ओ’ तारे सबसे अधिक चमकीले होते हैं. यह एक तारा सूर्य से करीब दस लाख गुना ज्यादा चमकीला होता है.
नष्ट हो सकते हैं क्लाउड
दो संस्थानों के संयुक्त प्रोजेक्ट के तौर पर टर्नर और उनके साथियों ने ‘सबमिलीमीटर ऐरे’ की मदद से इस शोध कार्य को अंजाम दिया है. हालांकि उन्होंने यह आशंका भी जतायी है कि आनेवाले वर्षो में क्लाउड नष्ट हो जायेंगे और इसी से सुपरनोवा की उत्पत्ति होगी. इस प्रक्रिया में तारों द्वारा बनाये गये सभी गैस और तत्व ‘इंटरस्टेलर स्पेस’ में घूमेंगे. टर्नर और उनके साथियों ने वर्ष 1996 में सबसे पहले स्टार क्लस्टर के रेडियो उत्सजर्न का पता लगाया था.
क्या है गैलेक्सी
गैलेक्सी असंख्य तारों का एक समूह है. हम अपनी गैलेक्सी के तारों को रात में देख सकते हैं. अंधेरी रात में जब हम इसे देखते हैं, तो आसमान के बीच से जाते हुए अर्धचक्र की आकृति में यह ङिालमिलाती प्रतीत होती है. हमारे देश के अलग-अलग हिस्से में इसे मंदाकिनी, स्वर्णगंगा, स्वर्णनदी, आकाशनदी, देवनदी आदि नाम से भी जानते हैं. अब तक ब्रह्मांड के जिन भागों का पता चल सका है, उसमें लगभग ऐसी ही करीब 19 अरब गैलेक्सियां होने का अनुमान है.
अनुमानों के मुताबिक संपूर्ण ब्रह्मांड में सौ अरब गैलेक्सी अस्तित्व में है. इसमें तारे, गैस व खगोलीय धूल हैं. प्रत्येक गैलेक्सी में अरबों तारे हैं. गुरुत्वाकर्षण तारों को एक साथ बांध कर रख पाती है. पूर्व में खगोलशास्त्रियों की यह मान्यता थी कि पुरानी गैलेक्सियों के विस्फोट से नयी गैलेक्सियों का जन्म होता है, लेकिन यार्क विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्रियों डॉ सी आर प्यूटर्न व डॉ ए इ राइट ने गैलेक्सियों के चार समूहों की अंतरक्रियाओं का अध्ययन करके इस मान्यता का खंडन किया. उन्होंने बताया कि गैलेक्सियों के बीच में ऐसी विस्फोटक अंतरक्रियाएं नहीं होती हैं, जो नयी गैलेक्सियों को जन्म दे सकें.
सुपरनोवा
एक तारे के केंद्र या कोर में जब कोई परिवर्तन होता है, तो एक भयानक विस्फोट होता है. खगोल विज्ञान में इसे महानोवा यानी सुपरनोवा कहते हैं. यह अंतरिक्ष में होनेवाला सबसे बड़ा विस्फोट होता है. सुपरनोवा को अन्य गैलेक्सियों में देखा जाता है. हालांकि, मिल्की वे में यह बहुत कम देखने को मिलता है. इसका कारण है काफी तादाद में निकलने वाली धूल, जिससे हमारी आंखें चौंधियां जाती हैं. ‘नासा’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1604 में जॉन कैप्लर ने सबसे अंतिम बार पृथ्वी पर होने वाले सुपरनोवा का पता लगाया था.
‘नासा’ के एक दूरदर्शी यंत्र ने सबसे नये सुपरनोवा का पता लगाया था. यह भयानक विस्फोट एक सौ वर्ष से भी पहले हुआ था. इसमें नोवा से बड़ा धमाका होता है. इससे निकलने वाला प्रकाश या रेडिएशन इतना प्रबल होता है कि कुछ भी दिखाई नहीं देता है. सुपरनोवा बहुत ही कम समय के लिए होता है, लेकिन इससे ब्रह्मांड के बारे में वैज्ञानिकों को बहुत चीजों की जानकारी हासिल होती है. इसी तरह के एक सुपरनोवा से हमें यह पता चला था कि हम एक ऐसे ब्रह्मांड में रहते हैं, जो समय के साथ बढ़ता है. ब्रह्मांड में तत्वों के वितरण में सुपरनोवा का अहम योगदान होता है.
‘मिल्की वे‘ या ‘आकाशगंगा‘
‘मिल्की वे’ या ‘आकाशगंगा’ हमारी गैलेक्सी को कहते हैं. चूंकि यह दुधिया प्रकार का दिखता है, इसी कारण इसे ‘मिल्की’ शब्द द्वारा व्यक्त किया जाता है. चीनी और कोरियाई भाषा में इसे ‘चांदी की नदी’ कहते हैं. यह एक स्पाइरल गैलेक्सी है, जिसमें पृथ्वी और सूर्य विद्यमान हैं. अनुमानत: इसका व्यास 1,00000- 1,20000 प्रकाशवर्ष है. ‘मिल्की वे’ में 100-400 करोड़ तारे हैं. हालांकि, यह आंकड़ा बढ़ कर खरबों तक पहुंच सकता है. खगोलशास्त्रियों का अनुमान है कि इस गैलेक्सी यानी मिल्की वे में करीब 100 करोड़ ग्रह हैं. इस स्पाइरल गैलेक्सी का केंद्र बहुत बड़ा है और उससे कई वक्र भुजाएं निकलती हैं. हमारा सौरमंडल इसकी ओरायन-हन्स आर्म पर स्थित है. इसके अतिरिक्त थ्री-केपीसी, नॉर्मा एंड आउटर आर्म, एसक्यूटम-कॉन्सटलेशन आर्म, करीना सैगीटेरियस आर्म हैं. निश्चित तौर पर दो और छोटे आर्म हैं.
1990 के दशक तक यह माना जाता था कि आकाशगंगा का घना केंद्रीय भाग एक गोले के आकार का है, लेकिन फिर यह लगा कि इसकी बनावट मोटे डंडे की तरह है. 2005 में स्पिट्जर अंतरिक्ष दूरबीन से ली गयी तस्वीरों से यह स्पष्ट हो गया कि बाद वाली मान्यता सही है और आकाशगंगा का केंद्र वास्तव में गोले से अधिक खिंचा हुआ एक डंडेनुमा आकार निकला. सूर्य इसके केंद्र की परिक्रमा कर रहा है. इसे एक पूरी परिक्रमा करने में करीब 22.5 से 25 करोड़ वर्ष लग जाते हैं.
जानिये इनके बारे में भी
व्हाइट ड्वार्फ : आकाश में दिखनेवाले तारों के बारे में प्राय: हमें ऐसा लगता है कि इनमें कभी परिवर्तन नहीं आयेगा या ये कभी खत्म नहीं होंगे, लेकिन वैज्ञानिकों की राय इससे इतर है. उनका मानना है कि ये तारे एक दिन व्हाइट ड्वार्फ में बदल जायेंगे. यह कम या मध्यम द्रव्यमान के तारों की सबसे अंतिम अवस्था होती है. विस्फोट के समय तारे अपनी पूरी ऊर्जा लगा देते हैं. जब ये तारे टूटते हैं तो उनका आकार पृथ्वी के समान हो जाता है. यह मध्यम रंग का दिखता है. वैज्ञानिकों की मान्यता है कि अरबों वर्ष गुजरने के बाद ये ‘ब्लैक ड्वार्फ’ में परिवर्तित हो जाते हैं.
एनजीसी 5253 : यह एक छोटा और अनियमित गैलेक्सी है. यह हमारे ‘मिल्की वे’ गैलेक्सी से लगभग सौ गुना छोटा है. यह पृथ्वी से करीब एक करोड़ बीस लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर है, जबकि यह करीब 407 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से हमारे करीब आ रहा है. यह संटौरस कॉन्सटलेशन के दक्षिणी हिस्से में है. इसकी खोज जॉन फ्रेडरिक विलियम हर्सेल ने 15 मार्च, 1987 को की थी. एनजीसी 5253 ब्लू कंपैक्ट ड्वार्फ की गैलेक्सियों के सबसे निकट है. इसमें बहुत तेजी से तारों के निर्माण की क्षमता होती है. यह धूल और भारी तत्वों की कम उपलब्धता के बावजूद बड़ी संख्या में नये तारों के गठन में सक्षम है.
ड्वार्फ गैलेक्सी : अन्य के मुकाबले ये गैलेक्सी छोटे होते हैं. इसे हिंदी में बौना गैलेक्सी कहा जाता है. इसमें सामान्य गैलेक्सी की तुलना में कुछ करोड़ तारे ही होते हैं. इसके अस्तित्व को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं. कुछ लोग इसे ज्वारभाटा से उत्पन्न होने वाला मानते हैं. इस मान्यता के अनुसार बड़े गैलेक्सियों में गुरुत्वाकर्षण की खींचातानी चलती रहती है, जिसके परिणामस्वरूप ये बौनी गैलेक्सियां अस्तित्व में आती हैं. मिल्की वे के आसपास करीब 14 ऐसी ड्वार्फ गैलेक्सियां चक्कर लगाती हैं. वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि हमारी गैलेक्सी का सबसे बड़ा गोल तारागुच्छ ओमेगा सेंटौरी वास्तव में एक बौनी गैलेक्सी थी, जिसको आकाशगंगा ने गुरुत्वाकर्षण कब्जा करके अपने अंदर शामिल कर लिया.
सबमिलीमीटर ऐरे : हवाई के माउन किया में स्थित सबमिलीमीटर ऐरे आठ तत्वों का एक रेडियो इंटरफ्रोमीटर है. इसे 180 गीगाहट्र्ज से 700 गीगाहट्र्ज के बीच की फ्रिक्वेंसी पर संचालित किया जाता है. डिजिटल कोरिलेटर की प्रोग्रामिंग हजारों स्पेक्ट्रल चैनलों को रिसीव करने की अनुमति देती है.
‘ओ’ तारा : ये तारे आकार में बड़े होने के साथ बहुत गरम होते हैं. इसके ऑप्टिकल स्पेक्ट्रा में हाइड्रोजन, न्यूट्रल हिलियम व आयोनाइज्ड हिलियम होते हैं. इन तारों का तापमान 30,000 केल्विन होता है. बहुत अधिक तापमान और चमक के कारण इनमें बहुत तीव्रता से विस्फोट होता है. इससे ब्लैक होल या न्यूट्रॉन तारे बनते हैं. अधिकतर ‘ओ’ तारे बहुत हाल में अस्तित्व में आये हैं. ओ टाइप तारों की संख्या बहुत कम है. इनमें से बहुसंख्य तारों को नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता है. इस वर्ग के तीन तारे गामा बेलोरम ओए, जीटा पप्पिस ओए, जीटाओरायन ओइ-5 को ही देखा जा सकता है. नये तारामंडल में ‘ओ’ तारों की संख्या सर्वाधिक है.
संटौरस कॉन्सटलेशन (नरतुरंग तारामंडल) : यह खगोलीय गोले के दक्षिणी भाग में स्थित एक तारामंडल है, जो अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा जारी तारामंडलों की सूची में शामिल है. दूसरी शताब्दी में टॉलमी ने जिन 47 तारामंडलों की सूची बनायी थी, यह तारामंडल उसमें भी शामिल था. प्राचीन यूनानी ग्रंथों में इसे एक आधे आदमी और आधे घोड़े के शरीर वाले प्राणी के रूप में दर्शाया जाता था. पृथ्वी से सूरज के बाद सबसे नजदीकी तारा अल्फा संटौरी इसी तारामंडल में स्थित है.
नरतुरंग तारामंडल में 69 तारे हैं, जिन्हें बायर नाम दिया गया है. इनमें से 13 तारामंडल के आसपास गैर-सौरीय ग्रह परिक्रमा करते हुए पाये गये हैं. इस तारामंडल में ‘बीपीएम 37093’ नामक एक व्हाइट ड्वार्फ स्टार है, जिसमें कार्बन के परमाणुओं ने मिलकर एक क्रिस्टल सा ढांचा बना लिया है. हीरे में कार्बन मणि के आकार का ढांचा बना लेता है. ओमेगा संटौरी नाम का एक गोल तारागुच्छ, आकाशगंगा का सबसे बड़ा गोल तारागुच्छ है.
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