लालजी ठाकुर
हजारीबाग में वर्ष 1925 में स्व सहाय ठाकुर ने अपने पांच दोस्तों अधिवक्ता जादो बाबू, कन्हाय गोप, हीरालाल महाजन, हरिहर जायसवाल व ग्रामीण क्षेत्र से डोमन प्रजापति के सहयोग से रामनवमी की पूजा शुरू की थी. शुरुआत में मात्र पांच झंडे थे. बड़ा अखाड़ा में हनुमान जी की पूजा-अर्चना के बाद लोग गाजे-बाजे के साथ नगर भ्रमण के लिए निकलते थे. दिन के दो बजे जुलूस शुरू होता था. कजर्न ग्राउंड में रात 9.30 बजे जुलूस समाप्त हो जाता था. उस समय इसका नाम महावीरी झंडा महोत्सव था. वर्ष 1933 में आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा कुम्हारटोली में आरंभ हुई. गुरु सहाय ठाकुर ने इसकी शुरुआत की. दुर्गा पूजा के निमित्त विजया दशमी की शोभा यात्र निकाली गयी. धीरे-धीरे हजारीबाग के 10 किमी के दायरे में प्रत्येक गांव में महावीरी झंडा उत्सव मनाया जाने लगा. सप्तमी के दिन गांव-गांव में महावीरी झंडा फहराया जाता था. इसी दिन गांवों के लोग महावीरी झंडे व बाजे-गाजे के साथ भ्रमण करते थे. नवमी के दिन लगभग 12 बजे राम जन्मोत्सव के कुछ देर बाद करीब दो बजे सभी अपने-अपने घर से झंडा लेकर बड़ा अखाड़ा पहुंच जाते थे.
उस समय रामनवमी का मेला केवल नवमी के दिन ही लगता था और उसी दिन समाप्त हो जाता था. 10वीं के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के साथ जुलूस निकलता था. प्रतिमा का विसजर्न
छठ तालाब में रात नौ बजे तक किया जाता था. मुझें लगा कि जुलूस केवल नवमी एवं दशमी को ही समाप्त हो जाता है, इसलिए 1963 में मंगला जुलूस निकालने की शुरुआत कुम्हारटोली से की. अथक प्रयास से नगर के सभी दलीय अखाड़ा व ग्रामीण क्षेत्र के दलीय अखाड़ा हनुमान जी की प्रेरणा से मंगला पूजा जोर- शोर से की गयी. आज ऐसी स्थिति बन गयी है कि पूरे छोटानागपुर में मंगला जुलूस निकाला जाता है. इसका खास उद्देश्य नवयुवकों को रामनवमी पर्व के प्रति एक माह तक जगाते रहना था. इससे युवा वर्ग व्यस्त रहते थे.
रामनवमी का स्वरूप धीरे-धीरे बड़ा होता गया. पहले बिजली नहीं होने के कारण दिन में ही जुलूस निकाला जाता था. यह रात नौ बजे खत्म हो जाता था. अब बिजली के कारण रामनवमी जुलूस व झांकी रात नौ बजे शुरू होता है, जो नवमी की सुबह छह बजे खत्म होता है. आजकल 10वीं को दल व अखाड़ों की संख्या बढ़ जाने के कारण जुलूस व झांकी में लोगों की भीड़ बढ़ रही है. इसमें ग्रामीण व शहरी अखाड़ा की झांकी शामिल होती है और पूरे शहर का भ्रमण करती है.
हजारीबाग अयोध्या नगरी था
मेला के स्वरूप का नाम अयोध्या नगरी रखा गया, जिसमें 26 गढ़ बनाया गया. इन्हीं गढ़ों से होकर रामनवमी का जुलूस गुजरता था. इनमें सबसे पहला गढ़ बड़ा अखाड़ा श्रीराम गढ़ है. यहां से निकलनेवाला जुलूस ग्वाल टोली व बुढ़वा महादेव होते छठ तालाब में समाप्त होता है. 10वीं को मां दुर्गा का जुलूस निकलता है, जो एकादशी को समाप्त हो जाता है. रामनवमी का जो विशाल रूप लोगों के सामने दिखायी पड़ रहा है, उसमें नगर से लेकर प्रशासन तक का पूर्ण सहयोग रहा है. व्यवस्था के दृष्टिकोण से नगर में दो लाख नर-नारी मेला देखने पहुंचते हैं. चिकित्सा, भोजन, पेयजल, बिजली, सुरक्षा, सड़क की मरम्मत व सभी तरह की सुविधा होने से एक समुचित व्यवस्था बन जाती है.
रामनवमी कमेटी का गठन कैसे होता था
सर्वप्रथम बड़ा अखाड़ा के महंत की निगरानी में नगर के बुजुर्ग लोग जुटते थे. सर्वसम्मति से रामनवमी महासमिति का गठन होता था. अध्यक्ष शहर व ग्रामीण क्षेत्र के अखाड़ों और दलों के सदस्यों के साथ बैठक करते थे. साथ ही रामनवमी सही व सुचारू रूप से संपन्न हो, इसके लिए प्रेरित करते थे. वर्ष 1973 के बाद बड़ा अखाड़ा में जुटते थे जरूर, लेकिन अध्यक्ष बनने से इनकार कर जाते थे. डरते थे. ऐसी स्थिति रही कि कोई भी बड़ा अखाड़ा का अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं होता था. वर्ष 1985 के बाद धीरे-धीरे अध्यक्ष बनाने के लिए बैठक का तरीका बदला गया. बैठक की हालत जिसकी लाठी उसकी भैंस की हो गयी. जो जितनी अधिक संख्या में लोगों को जमा कर लेता था, वह भीड़ में हो-हल्ला कर अध्यक्ष बन जाता था. यही परंपरा आज चल रही है.
रामनवमी से संबंधित रोचक क्षण
आज कीरामनवमी का स्वरूप भव्य तो जरूर हो गया है. पहले की अपेक्षा जुलूस व झांकी पर खर्च भी ज्यादा हो रहा है लेकिन पुराने लोग भुला दिये गये हैं. हम इसी भव्यता में कहीं खो गये हैं. वर्तमान रामनवमी जुलूस को देख कर मन को चोट पहुंचती है. अब पहले की भव्यता नहीं रही. धार्मिक गानों व भजनों की जगह अश्लील गाने बजाये जाते हैं. बाजा-गाजा की जगह डीजे बजाने लगे हैं. ढोल, नगाड़ा, शहनाई की पूछ आज के युग में खत्म होने लगी है.
झंडा संस्कृति में बदलाव
नगर व ग्रामीण क्षेत्र से उस वक्त केवल महावीरी झंडे बाजे-गाजे के साथ आते थे. अब झंडे की जगह हनुमान जी की झांकी निकाली जाने लगी है, जिसमें झंडा देखने को नहीं मिलता है.
वर्तमान स्वरूप को बेहतर बनाया जाये
वर्तमान रामनवमी महोत्सव को अनुशासित किया जाये, जिसमें शराब का उपयोग न किया जाये. बाजा का प्रयोग न हो. धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखा जाये. जुलूस के समय को निर्धारित किया जाये. नगर एवं ग्रामीण के अखाड़ों के संयोजक व अध्यक्ष की बात भी उसी दल व अखाड़े के सदस्य नहीं सुनते हैं. इनमें आपसी तालमेल नहीं है. इन सब को ठीक किया जाना चाहिए.
( लेखक 1956 से रामनवमी जुलूस के संचालक हैं.)