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सहकारिता का सिरमौर बना यौनकर्मियों का ‘उषा को-ऑपरेटिव’

बंगाल में अधिकांश सहकारी बैंकों की स्थिति बेहद दयनीय है और वे बंदी के कगार पर हैं. ऐसी स्थिति में भी अंधेरे में दीपक जैसा टिमटिमानेवाला एक सहकारी बैंक है, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है और आज वह बंगाल के सहकारी बैंकों की सूची में शीर्ष स्थान पर आ गया है. यह सहकारी […]

बंगाल में अधिकांश सहकारी बैंकों की स्थिति बेहद दयनीय है और वे बंदी के कगार पर हैं. ऐसी स्थिति में भी अंधेरे में दीपक जैसा टिमटिमानेवाला एक सहकारी बैंक है, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है और आज वह बंगाल के सहकारी बैंकों की सूची में शीर्ष स्थान पर आ गया है.

यह सहकारी बैंक उत्तरी कोलकाता स्थित एशिया के सबसे बड़े देह व्यापार बाजार सोनागाछी में स्थित है. इसका नाम ‘उषा मल्टीपरपस को-ऑपरेटिव बैंक’ है. यह बैंक ‘केवल यौनकर्मियों द्वारा यौनकर्मियों के लिए’ चलाया जाता है.

उषा मल्टीपरपस को-ऑपरेटिव बैंक देश का पहला सहकारी बैंक हैं, जहां केवल उन्हीं लोगों का खाता खोला जाता है, जो यौनकर्मी हैं. यौनकर्मियों द्वारा संचालित यह बैंक अपने स्वरूप का एशिया का पहला बैंक है और यौनकर्मियों की सबसे बड़ी आर्थिक संस्था के रूप में प्रसिद्धि पा रहा है. पिछले साल पश्चिम बंगाल में आयोजित 61वें अखिल भारतीय सहकारी सप्ताह (ऑल इंडिया को-ऑपरेटिव वीक) में इसे ‘बेस्ट मैनेज्ड को-ऑपरेटिव’ घोषित किया गया है.

इस बैंक के वित्त निदेशक शांतनु चटर्जी बताते हैं कि जहां आज के समय में लगभग सभी बैंकों के सामने नॉन परफॉर्मिग एसेट सबसे बड़ी समस्या बनी है, वहीं इस बैंक ने इसे न्यूनतम स्तर पर रख कर एक कीर्तिमान ही बनाया है. खासकर पश्चिम बंगाल में. इस बैंक में लोन रिकवरी की दर 98 फीसदी है. वे बताते हैं कि बाकी की दो प्रतिशत वैसी राशि है, जो अभी जमा नहीं हुई है. यानी बकाया है और इसे स्थायी रूप से ‘बैड लोन’ नहीं कहा जा सकता है. यह राशि उन यौनकर्मियों की बकाया राशि है, जो अपने कार्य से बाहर दूसरे शहरों में गये हुए होते हैं. वे जब लौट कर कोलकाता आते हैं, तो बकाया राशि का भुगतान कर देते हैं. यह बैंक बंगाल के पिछड़े इलाकों में रहनेवाले समाज के सबसे कमजोर तबके को मजबूत करने के लिए भी काम कर रहा है. उन्होंने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष में इस बैंक ने यौनकर्मियों के साथ-साथ पिछड़े वर्ग के लोगों के बीच भी तीन करोड़ रुपये का लोन बांटा है.

इस बैंक की विशेषता है कि इससे कर्ज लेना सबसे सरल है और इसमें अन्य सार्वजनिक और सहकारी बैंक की तुलना में बहुत ही कम ब्याज दर पर कर्ज मुहैया कराया जाता है. इस बैंक में खाता खोलने के लिए किसी पहचान पत्र की जरूरत नहीं होती. सिर्फ एक शर्त है कि खाता खोलनेवाला यौनकर्मी होना चाहिए. यह बैंक पूरी तरह निष्ठा और विश्वास पर चलता है, जो इसकी सफलता का मूल मंत्र है. इस बैंक के अस्तित्व में आने से आज देह व्यापार में लगी महिलाएं पुराने परंपरागत तरीके से कर्ज देनेवाले ठेकेदारों के चंगुल से आजाद हो चुकी हैं और अब वे अपने आपको असहाय और कमजोर भी नहीं मानतीं.

कैसे बना ‘उषा’

केंद्र सरकार की संस्था ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन पब्लिक हेल्थ की अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर 1992 में एचआइवी इंटरवेंशन प्रोग्राम की शुरुआत की गयी, जिसका मुख्य उद्देश्य कोलकाता के सोनागाछी में एसटीडी एवं एचआइवी से बचाव का कार्यक्रम शुरू करना था. इस कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए सोनागाछी में देह व्यापार में लगी महिलाओं ने अपने लिए एक संस्था की कमी को महसूस किया और जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ समरजीत जाना के विशेष प्रयास से 1995 में दुरबार महिला समन्वय समिति (डीएमएससी) की स्थापना हुई.

यह संस्था पूर्ण रूप से यौनकर्मियों द्वारा यौनकर्मियों के लिए संचालित है. इसी संस्था ने महसूस किया कि देह व्यापार में जुड़ी महिलाओं के लिए रेडलाइट क्षेत्र में एक अलग वित्तीय संस्थान भी होना चाहिए, जहां वे अपने पैसे जमा कर सकें और जरूरत पड़ने पर कर्ज ले सकें. इसके लिए ‘उषा मल्टीपरपस को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड’ के नाम से अगस्त 1995 में पंजीकृत कराया गया. इसका पंजीकरण करने के लिए पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ने विधानसभा से सोसाइटी पंजीकरण नियमावली में बदलाव किया. और इस तरह यौनकर्मियों को पहली बार पहचान मिली और ‘उषा’ की स्थापना हो पायी. इस वर्ष यह संस्था सफलतापूर्वक अपनी स्थापना का 20 वर्ष पूरा कर रही है. अब इसकी सदस्य संख्या 20 हजार से अधिक हो गयी है और यह लगभग 19 करोड़वाली रुपये की पूंजीवाली संस्था बन चुकी है.

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