।। दक्षा वैदकर ।।
जब विक्टर सेरीब्रायकोफ पंद्रह साल का था, तो उसके अध्यापक ने एक दिन उससे कहा कि वह कभी स्कूल की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकता, इसलिए उसे स्कूल छोड़ कर कोई व्यापार सीखना चाहिए. विक्टर ने सलाह मान ली और अगले सत्रह सालों तक वह इधर–उधर घूम कर छोटे–मोटे काम करता रहा. उससे कहा गया था कि वह मूर्ख और अज्ञानी है और सत्रह साल तक वही बना रहा. जब वह 32 साल का हुआ, तो एक अद्भुत बात पता चली.
एक मूल्यांकन से पता चला कि वह विद्वान है और उसका आइक्यू 161 है. अनुमान लगाइए क्या हुआ होगा? आपने ठीक सोचा, उसने एक विद्वान व्यक्ति की तरह काम करना शुरू कर दिया. उसके बाद उसने पुस्तकें लिखीं, बहुत से पेटेंट हासिल किये और वह एक सफल व्यापारी हो गया. स्कूल छोड़ देनेवाले उस व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण घटना अंतरराष्ट्रीय मेन्सा सोसाइटी का चेयरमैन बनना थी. मेन्सा सोसाइटी की सदस्यता के लिए आइक्यू 140 होना जरूरी था.
विक्टर सेरीब्रायकोफ की कहानी आपको अचंभित करती है कि कितने विद्वान इधर–उधर मूर्ख बने घूम रहे हैं, क्योंकि किसी ने उनसे कह दिया था कि वे लायक नहीं हैं. जाहिर है, विक्टर ने अचानक इतना ज्ञान हासिल नहीं कर लिया था. हां, उसने अचानक गजब का आत्मविश्वास हासिल कर लिया था. जिसका परिणाम यह हुआ कि वह तुरंत अधिक प्रभावकारी व अधिक उत्पादक हो गया. जब उसने खुद को भिन्न रूप से देखा, तो उसने भिन्न रूप से काम करना शुरू कर दिया. उसने भित्र परिणामों की अपेक्षा करना और उन्हें प्राप्त करना शुरू कर दिया.
यह कहानी हमें सीख देती है कि कभी भी लोगों द्वारा की गयी बुराइयों, तानों को दिल से न लगायें. वे बार–बार आपको मोटू, बेवकूफ, बदसूरत, काला, लंबू, ठिगना,नकचिपटा, मूर्ख आदि नामों से पुकारेंगे. कई बार वे यूं ही कह देते हैं. कई बार वे आपका मजाक उड़ाने के लिए, आपको कमजोर करने के लिए कहते हैं. लेकिन दोस्तो, अपनी क्षमताओं के बारे में तो हम खुद बेहतर जानते हैं न! उनके ऐसा बोलने से हमारे इरादे डगमगाने बिल्कुल नहीं चाहिए.
– बात पते की
* इनसान जैसा सोचता है, वैसा बन जाता है, इसलिए दुनिया कुछ भी कहे, उसकी परवाह न करें. बस अपने बारे में अच्छा सोचें, आप अच्छे बन जायेंगे.
* कभी किसी को मजाक में भी यह न कहें कि तुम कैरियर में कभी कुछ नहीं कर सकते. हो सकता है कि आप किसी उभरते सितारे की चमक छीन लें.