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ऊपर चढ़ा दिया और सीढ़ी हटा ली

राज्य में बेटियों का कितना विकास हुआ?झारखंड में बेटियों की स्थिति अच्छी तो नहीं ही है बल्कि इसमें सुधार के बजाय लगातार खराब होती जा रही है. बेटियों, बहनों एवं माताओं की समस्याएं गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है. इनकी सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण की समस्या घटने के बजाय बढ़ रही है. राज्य […]

राज्य में बेटियों का कितना विकास हुआ?
झारखंड में बेटियों की स्थिति अच्छी तो नहीं ही है बल्कि इसमें सुधार के बजाय लगातार खराब होती जा रही है. बेटियों, बहनों एवं माताओं की समस्याएं गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है. इनकी सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण की समस्या घटने के बजाय बढ़ रही है. राज्य में तीन तबके की महिलाएं है. एक आदिवासी, दूसरा सदान और तीसरा गैर झारखंडी. इन सभी की सामाजिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्य की स्थिति में काफी भिन्नता है. आदिवासी महिलाएं सामाजिक रूप से बाकी की तुलना में कुछ बेहतर है. आदिवासी महिलाओं को कहीं भी आने-जाने एवं स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की छूट है. फिर भी संपूर्ण रूप से देखें तो इन सभी तबके के महिलाओं की स्थिति एक जैसी है. सभी में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण की समस्या है. ये सभी आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं. हालांकि शहर की महिलाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति बेहतर है. लेकिन, आप शहर से जैसे ही थोड़ा दूर निकलते हैं तो स्थितियां उलट मिलती है. महिलाओं के विकास का पैमाने में देखें तो सभी जगह सरकार फेल है.

बेटियों के लिए ढेर सारी सरकारी योजनाएं एवं कानून हैं फिर यह दशा क्यों.
महिलाओं के लिए इतने सारे कानून हैं. फिर भी उन पर अत्याचार एवं हिंसा जारी है. घरेलू हिंसा, डायन प्रथा, छेड़खानी, दुष्कर्म, दहेज हत्या आदि रोकने के लिए अलग-अलग कानून हैं. लेकिन, ये घटनाएं रूकने के बजाय लगातार बढ़ रही है. विधि व्यवस्था नाम की चीज नहीं रह गयी है. बेटियां सड़क पर तो सुरक्षित नहीं ही हैं बल्कि स्कूल, कॉलेज , अस्पताल एवं थाने में भी असुरक्षित हैं. जिस शिक्षक पर भरोसा कर माता -पिता बच्चे को स्कूल भेजते हैं खबरें आती हैं कि वही उसके साथ बदसलूकी करते हैं. आप ताजा मामला देख लीजिए .दो दिन पहले रांची सदर अस्पताल में एक महिला की बच्ची को गायब कर दिया गया. इस घटना में जो प्रारंभिक रिपोर्ट सामने आयी है उससे पता चला कि इसमें डॉक्टर एवं अस्पताल के कर्मचारी ही शामिल थे. ये घटनाएं क्या है. ये बताती हैं कि महिलाएं हर मामले में असुरक्षित हैं. इतनी असुरक्षा के बीच भला कोई कैसे विकास कर सकता है. आप शिक्षा को ही ले लीजिए. शिक्षा के नाम पर जो योजनाएं हैं वह महज प्रलोभन है. योजनाएं वास्तव में बदलाव या कल्याण के लिए कम ही दिखायी देती है. बेटियों के लिए जिस तरह का मोटिवेशन या माहौल शिक्षा के क्षेत्र में होनी चाहिए वह नहीं है. यही वजह है कि ये शिक्षा से नहीं जुड़ पाती हैं. योजनाओं के प्रलोभन में स्कूल तो पहुंचते हैं. लेकिन, जल्द ही ड्रॉप आउट हो जाती हैं. जो मॉडल अपनाया जाता है वह लोगों को अपील नहीं करता है. सरकार को यह देखना चाहिए. शासन-प्रशासन अभी भी बेटियों को लेकर गंभीर नहीं है. इसलिए बेटियों की दशा खराब नहीं है.

पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया. इसका क्या असर हुआ?
पंचायत चुनाव हुआ. 50 प्रतिशत महिलाएं चुन कर आयीं. यह अच्छा लगा. लेकिन, पंचायतों को संचालित करने के लिए, विकास के लिए जो अधिकार इन महिलाओं को मिलना चाहिए वह नहीं दिया गया. आप कह सकते हैं कि महिलाओं को ऊपर चढ़ा दिया गया और सीढ़ी हटा ली गयी. कोई अधिकार नहीं मिलने से पंचायत प्रतिनिधि खासकर महिलाएं अपने से नीचे के लोगों के सवालों का जवाब नहीं दे पा रही हैं. ऐसे में लोगों में निराशा है. पंचायती राज व्यवस्था में यह बात है कि योजनाएं नीचे से ऊपर की ओर जायेगी. लेकिन, यहां हो रहा है उल्टा.

योजनाएं ऊपर से थोपी जा रही है. योजनाओं के क्रियान्वयन में ग्रामीणों की राय नहीं ली जाती है. ऐसी- ऐसी योजनाएं ली जाती है जिससे ग्रामीणों को मतलब नहीं है. सरकार कुआं बनाती है तो सभी जगह कुआं ही बना देती है. यह नहीं देखा जाता है कि कहां क्या जरूरत है. सब कुछ कागजी चल रहा है. महिलाएं जो ठान लेती हैं वह हर हाल में करती हैं. वे ईमानदारी और मेहनत से असंभव को संभव बना देती हैं. लेकिन, पंचायत के विकास के मामले में उन पर दोष मढ़ा जाता है. उन्हें फेल बताया जा रहा है. लेकिन, सच्चई यह है कि महिला प्रतिनिधियों को अधिकार नहीं मिलने से वे अपना काम नहीं कर पा रही हैं. अपने को साबित नहीं कर पा रही हैं.

महिलाओं को लेकर राज्य सरकार के कामकाज को किस तरह देखती हैं?
राज्य सरकार सिर्फ घोषणाओं तक सीमित है. 13 साल में अब तक महिला नीति नहीं बनी. यह नीति सिर्फ प्रारूप तक ही सीमित होकर रह गयी. महिला नीति का जो प्रारूप तैयार किया गया था उसे सार्वजनिक कर उस पर राज्य के लोगों से राय मांगी जानी थी. लेकिन, यह काम अब तक नहीं किया गया है. जब-जब इसे अंतिम रूप देने की मांग की गयी सरकार ने बहाने बनाये. सरकार ने महिला आयोग, महिला थाना और अन्य कई कमेटियों का गठन किया है. लेकिन, महिला नीति नहीं होने से इन संस्थाओं के लिए गाइड लाइन उपलब्ध नहीं है.

सरकार महिलाओं की समस्याओं का सुलझाने का दावा जरूर करती हैं. विकास की बात करती है. लेकिन, हकीकत में होता कुछ और है. दिल्ली की दामिनी कांड के बाद सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए राज्य में कई घोषणाएं की थी. आज उन घोषणाओं का कोई अता-पता नहीं है. हालांकि महिलाओं संबंधित मामले में त्वरित कार्रवाई की बात में कुछेक अनुभव संतोषजनक रहे हैं. लेकिन, अधिकांश में अफसरों की शिथिलता सामने आयी है. झारखंड में रोजी-रोटी की तलाश में महिलाओं का पलायन एक बड़ी समस्या है. बाहर जाना शारीरिक एवं मानसिक दोनों स्तर से असुरक्षित है. फिर भी लोग बाहर जाते हैं. अगर इन लोगों को घर में रोजगार मिले तो बाहर क्यों जाय. जब काम नहीं मिलता है. भूखे मरने की नौबत आती है तो लोग समझते हैं कि यहां भी मरना ही है तो फिर दूसरे प्रदेशों में जाकर ही क्यों न मरें. 13 साल में सरकार ने महिलाओं के पलायन को रोकने के लिए कोई ठोस काम नहीं किया. सरकार को राज्य की संस्कृति के अनुरूप महिलाओं की सर्वागिण विकास की योजनाएं बनानी चाहिए.

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