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लफंगों से बचने को पास में रखती हूं चाकू
दरभंगा : ‘हमरा सभके नेतागिरी से पेट नहिं भरतै, नहिं काज करबै तù चुल्हा कोना जरतई’. यह जवाब है अपने परिवार व अपनी पेट की भूख मिटाने की जुगत में लगी सकीना की. वर्षो से वह कचरा (प्लास्टिक की बोतलें) आदि चुनकर अपना और परिवार के चार सदस्य का पेट पाल रही है. उसे महिला […]
दरभंगा : ‘हमरा सभके नेतागिरी से पेट नहिं भरतै, नहिं काज करबै तù चुल्हा कोना जरतई’. यह जवाब है अपने परिवार व अपनी पेट की भूख मिटाने की जुगत में लगी सकीना की. वर्षो से वह कचरा (प्लास्टिक की बोतलें) आदि चुनकर अपना और परिवार के चार सदस्य का पेट पाल रही है.
उसे महिला सशक्तीकरण का मतलब नहीं मालूम, ना ही 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. यह मालूम है. वह तो रोज की भांति अहले सुबह कंधे पर बोरी रखकर रविवार को भी कचरा बीनने निकल पड़ती है. सुबह अस्पताल रोड में जब से कचरा बीनते देखकर संवाददाता ने पूछा कि आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है, कई जगह कार्यक्रम आयोजित किये गये है तो वह रुआंसा होकर बोली ‘‘ हमरा पेट भरना चाहिए, काम नहीं होगा तो भूखे सोना होगा वक्त ने हमे मजबूत बना दिया है’’. पूछने पर सकीना ने बताया कि उसके पति ने उसे 10 वर्ष पूर्व छोड़ दिया है, चार बच्चों का भरण पोषण इसी काम से कर रही है.
वर्षो पूर्व पति ने छोड़ा
बकौल सकीना के पति मुस्तकीम ने करीब 10 वर्ष पूर्व उसे और तीन बच्चों को मरने के लिए छोड़ दिया था. स्थानीय भीगो निवासी सकीना की शादी 15 वर्ष की उम्र में हुई थी. कुछ दिन सब ठीक ठाक रहा फिर उसके बाद पति ने मारपीट शुरु कर दी. सकीना ने कुछ दिन तो सबकुछ बर्दाश्त किया फिर खुद ही तीन बच्चों के साथ घर छोड़कर मायके आ गयी. एक दो बार पति ने बुलाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं गयी. उसने मायके में ही रहकर बेटी व बेटे को पालने की ठानी. जब उसने घर छोड़ा था तब उसे तीन बेटी थी. रफत, रजिया व इल्मी और चौथा गर्भ से था. आज नजरे 8 वर्ष का हो चला है. बड़ी बेटी रफत मां के काम हाथ बंटाती है. जबकि रजिया, इल्मी व नजरे को संभालती है.
सुबह से कचरा चुनने में लग जाती है सकीना
लगभग चार बजे अहले सुबह 34 वर्षीय सकीना अपने कामपर निकल पड़ती है. यूं तो उसकी दिनचर्या तीन बजे सुबह से ही शुरु हो जाती है. सुबह उठकर वे बच्चों के लिए नाश्ता बनाती है फिर अपनी बेटी रफत को लेकर कचरा बीनने निकल पड़ती है. शहर के गली कूचों से वह सजिर्कल सीरिंज व स्लाईन की खाली बोतलें व पानी की खोली बोतल के अलावा अन्य दूसरे खाली डिब्बा चुनती है. सुबह में काम करने की वजह से उसे अधिक कचरा हासिल होता जिसे बेचकर वह अधिक पैसा कमा लेती है. बकौल सकीना सुबह में भीड़ भाड़ कम रहती है और लफंगों की तदाद भी न के बराबर होती है. सकीना के मुताबिक करीब 4 घंटे लगातार काम करने के बाद घर लौटती है. फिर खाना बनाकर खाने व खिलाने के बाद चुने हुए कचरे को लेकर बेचने कबाड़ी वाले के यहां पहुंच जाती है. इससे हासिल रुपये से उसका परिवार चलता है.
घूरती नजरों से रोज होता है सामना
क्या कहूं, रोज घूरती नजरों से होता है सामना. कोई बेटी को देख फिकरे कसता है तो कोई मुझ पर. लेकिन मैं कमजोर नहीं पड़ती. घुरती नजरों को दरकिनार कर अपना काम रोज करती हूं. यह कहना है सकीना का. वह चाहती है कि जल्द रफत की शादी कर दूं. पैसे की जुगाड़ में लगी हूं. दहेज तो देना होगा.
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