।। दक्षा वैदकर ।।
एक पाठक ने मुझसे सवाल किया है. वे कहते हैं ‘कई मोटिवेशनल स्पीकर हैं, जो यह कहते रहते हैं कि अगर हम जिंदगी में कोई चीज चाहें और वह चीज हमें मिल जाये, तो बहुत अच्छा है. लेकिन हम कोई चीज चाहें और वह हमें नहीं मिले, तो और भी अच्छा है, क्योंकि इसमें भगवान की मरजी है. और भला भगवान किसी का बुरा थोड़े ही चाहते हैं. आप भी हमेशा कहती हैं कि जो होता है अच्छे के लिए होता है.
मेरा यहां मानना है कि कई बार इसका उल्टा भी होता है. जो होता है, वह अच्छे के लिए नहीं होता है. यह मेरा खुद का अनुभव है. क्या आप थोड़ा समझायेंगी कि ऐसा क्यों होता है?
यह सवाल पूछनेवाले उस पाठक व ऐसा सोचनेवाले उन सभी दोस्तों से मैं यही कहना चाहूंगी कि आप चाहे यह सोचो या वह सोचो. ये दोनों ही लाइनें झूठ हैं. बस आप यह याद रखो कि आप इनमें से जिस झूठ को पकड़ लोगे, आज नहीं तो कल वही सच हो जायेगा. ये सिर्फ शब्द हैं, जिनमें हम और आप उलझे हुए हैं. इस शब्द की आप चाहो तो वैसे ही व्याख्या कर सकते हैं और ऐसे भी व्याख्या कर सकते हैं. यह आपके ऊपर है कि आप उसे कैसे देखते हैं.
उदाहरण के तौर पर अगर मेरे साथ कुछ बुरा होता है, तो मैं इस लाइन पर विश्वास करती हूं कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है. मेरे अंदर से बार–बार यही आवाज आती है. ऐसा विश्वास करने पर, ऐसा बार–बार दोहराने पर मुझे इस बुरे वाकये के भी सकारात्मक पहलू दिखने लगते हैं. यदि मैं इसके विपरीत आपकी तरह सोचने लग जाऊं कि जो होता है वह बुरे के लिए होता है, तो मुझे उस वाकये के नकारात्मक पहलू नजर आयेंगे. मैं सोचने लग जाऊंगी कि मेरी किस्मत ही खराब है.
मेरे साथ हमेशा ऐसा ही होता है. मेरा तो कुछ भी नहीं हो सकता. मेरा कोशिश करना ही बेकार है. मैं यह सोच–सोच के इतनी परेशान हो जाऊंगी कि मेरा काम में मन नहीं लगेगा और फिर बात और बिगड़ती जायेगी. यह बात सच हो जायेगी कि ‘जो होता है, वह बुरे के लिए होता है.’
दोस्तो, यह हम पर निर्भर करता है कि हम इनमें से कौन–सा झूठ चुनते हैं और उसे सच बनाते हैं. आप जिस झूठ को चुन लेंगे, वह कल आपका सच बन जायेगा.
– बात पते की
* हर घटना के दो पहलू होते हैं. आप उसका सकारात्मक पहलू तलाशने की कोशिश करें. इस तरह आप अधिक बुरा होने से खुद को बचा लेंगे.
* रोंडा बर्न की पुस्तक द सीक्रेट में भी लिखा है, आप सकारात्मक सोच रख कर अच्छी चीजें आकर्षित कर सकते हैं और नकारात्मक रख कर बुरी चीजें.