वक्त-ए-सफर:मनोज कुमार
अपनी देशभक्ति पर आधारित फिल्मों के कारण मनोज कुमार को भारत कुमार के नाम से जाना जाता है. मनोज कुमार अभिनीत और निर्देशित उपकार को फिल्मफेयर के करीब आधा दर्जन अवॉर्ड मिले थे. इसमें से 4 तो मनोज कुमार को ही मिले थे.
शहीद भगत सिंह पर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं. इन फिल्मों की फेहरिस्त में जिन्होंने भी 1965 में बनी ‘शहीद’ देखी होगी, बाद की फिल्में शायद ही उन पर उस तरह का असर छोड़ पायी होंगी. मैंने जब ‘शहीद’ देखी थी, उस वक्त मेरी उम्र 12 साल के आस-पास रही होगी. तब न भगत सिंह और न ही ‘शहीद’ शब्द की महत्ता के बारे में कुछ मुकम्मल रूप से मालूम था. लेकिन इस फिल्म ने कहीं गहरे तक छू लिया था और इसके मुख्य किरदार का चेहरा भगत सिंह के रूप में जेहन में बस गया था. बहुत बाद में पता चला कि वह चेहरा तो मनोज कुमार का है. एक बार फिर ‘उपकार’ में मनोज कुमार को देखा. और इस बार उनकी पहचान भारत नाम से जुबान पर दर्ज हो गयी. दरअसल,‘उपकार’ के बाद वह ‘पूरब और पश्चिम’,‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘क्रांति’ और ‘क्लर्क’ में भी भारत नाम के किरदार में ही मिले.
अभिनेता बनने से पहले मनोज कुमार- हरिकिशन गोस्वामी थे. ‘शबनम’ फिल्म में दिलीप कुमार के किरदार से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार कर लिया. उनका जन्म 24 जुलाई 1937 को एटबाबाद में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. विभाजन का दंश उन्हें दिल्ली ले आया था. दिल्ली के हिंदू कॉलेज से स्नातक करने के बाद मनोज कुमार ने फिल्मों में काम करने का इरादा लेकर मुंबई का रुख किया. 1956 में वह मुंबई आये. ‘फैशन’ फिल्म से शुरुआत की, जिसमें उन्होंने 19 साल की उम्र में 90 साल के भिखारी का छोटा सा किरदार निभाया. इसके बाद ‘कांच की गुड़िया’,‘पिया मिलन की प्यास’ और ‘रेशमी रूमाल’ जैसी फिल्में मिलीं. लेकिन बतौर हीरो प्रसिद्धि का रास्ता खुला ‘हरियाली और रास्ता’ से. इसी साल मनोज कुमार की शादी हो गयी. जीवनसाथी के साथ जिंदगी और फिल्मों में सफलता का सफर दोनों साथ-साथ शुरू हुए. इस सफर में उनके साथ ‘हिमालय की गोद में’,‘शहीद’, ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’,‘रोटी, कपड़ा और मकान’,‘शोर’ तथा ‘क्रांति’ जैसी कई यादगार फिल्में जुड़ीं. देशभक्ति से भरे गीतों के अलावा उन पर फिल्माये गये प्रेम गीत भी खूब लोकप्रिय हुए. इस कड़ी में ‘एक प्यार का नगमा है’, ‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे’,‘चांद सी महबूबा हो मेरी’, ‘लाखों तारे आसमां में’,‘तेरी याद दिल से भुलाने चला हूं’,‘जिंदगी की न टूटे लड़ी’, ‘मैं न भूलूंगा’ जैसे यादगार गीत शामिल हैं.
स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस, टीवी, रेडियो, समाचार चैनलों से लेकर स्कूलों और गली मोहल्लों तक में बजते आजादी के गीतों पर अगर ध्यान दें, तो ज्यादातर में भारत यानी मनोज कुमार मिलते हैं. इनमें ‘ऐ वतन, ऐ वतन हमको तेरी कसम’,‘ओ मेरा रंग दे बसंती चोला’, ‘सरफरोशी की तम्मन्ना अब हमारे दिल में है’, ‘अबके बरस तुङो धरती की रानी कर देंगे’, ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’, ‘है प्रीत जहां की रीत सदा’ जैसे कर्णप्रिय गीत शामिल हैं. मनोज कुमार अभिनेता हैं, लेकिन उनकी इस पहचान को विस्तार में देखें, तो वह देशभक्ति का सिनेमाई चेहरा बनकर सामने आते हैं. उन्होंने न सिर्फ देशभक्ति से पूर्ण फिल्मों में अभिनय किया, ऐसी कई फिल्मों के निर्माण में निर्माता और निर्देशक की भूमिका भी निभायी. ‘उपकार’ को अलग-अलग कैटेगरी में फिल्मफेयर के करीब आधा दर्जन अवॉर्ड मिले थे. इसमें से 4 तो मनोज कुमार को ही मिले थे. इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक, कहानी और संवाद लेखक होने के साथ उन्होंने इसमें अभिनय भी किया था.
अपने एक साक्षात्कार में मनोज कुमार बताते हैं ‘शहीद’ देखने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने उन्हें चाय पर आमंत्रित किया था और यह इच्छा जाहिर की थी कि क्या वे ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे को प्रतिबिंबित करती एक प्रभावी फिल्म बना सकते हैं. इस मुलाकात के बाद मनोज कुमार ने दिल्ली से मुंबई लौटते हुए ट्रेन में ही महज 24 घंटे में ‘उपकार’ की कहानी लिखी थी. संवाद लिखने में जरूर उन्हें 10 दिन का समय लगा था. यह हिंदी की अर्थपूण फिल्मों में शुमार है. मनोज कुमार को पद्मश्री से नवाजा जा चुका है. जिंदगी के 76 वें पड़ाव से गुजर रहे मनोज कुमार की हाल ही में पेट की सजर्री हुई है. कामना है कि वे जल्दी स्वस्थ हो जायें.
प्रीति सिंह परिहार