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कहानी:कल्पना झा

सुबह का समय है. घर के सभी लोग युद्ध स्तर पर अपने-अपने काम पर लगे हुए हैं. दरअसल, यह सारी तैयारी घर के मुखिया, जो एक राजनेता भी हैं, के लिए की जा रही है. नेता जी को आज महिला संगठन के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि जाना है. नेता जी को पसंद नहीं कि महिलाओं को इंतजार करना पड़े. फिर छवि भी तो बनाकर रखनी है. धर्मपत्नी को पहले ही हिदायत दे दी है उन्होंने कि नाश्ता और जाने की सारी तैयारी समय पर हो जानी चाहिए. इसलिए पत्नी जी समय से पहले ही सुसज्जित होकर चाय नाश्ते के साथ डाइनिंग टेबल पर मौजूद हैं. नेताजी के आते ही प्रसन्नमुद्रा में उनके लिए चाय नाश्ता परोसती हैं. लेकिन नेताजी उनकी मुस्कुराहट का जवाब देना तो दूर, नाश्ते के साथ अखबार में मशगूल हो जाते हैं. थोड़ी देर में एक नवयुवक हाथ में डायरी लिये आ खड़ा होता है.‘चाचा जी जल्दी कीजिए, नहीं तो देर हो जायेगी. और हां आपको याद है न कि वहां क्या कहना है? आपके भाषण का प्रिंट आउट रात में ही आप तक भिजवा दिया था.’

नेता जी रुमाल से मुंह पोछते हुए बोले,‘अरे भई चलो भी, जो याद रहा कह देंगे. और नहीं भी याद रहा तो स्त्रियों के मुद्दे पर बोलना कौन सा बड़ा काम है.’ पत्नी की तरफ देखने या कोई बात करने की जहमत उठाये बिना ही, नेता जी चल देतें हैं. महिलाओं की भीड़ जोरदार तालियों से नेता जी का स्वागत करती है. स्वागत गान होता है फिर कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत, जो नेता जी को नहीं भाते और समय की कमी का हवाला देकर सांस्कृतिक कार्यक्रम को बीच में ही रुकवा दिया जाता है. अब नेता जी को बोलना है. नेता जी चारों ओर नजर डलते हैं, मानो अपनी सारी चल-अचल संपत्ति का मुआयना कर रहे हों. माइक संभालते हुए, डायरी खोल नमस्कार के अभिवादन के साथ भाषण शुरू करते हैं, ‘नारी का सर्वागीण विकास ही देश को प्रगतिशील बना सकता है. औरतों को घर की चारदीवारी से निकलना होगा और पुरुषों की बराबरी से खड़ा होना होगा.’

तभी भतीजे के इशारे पर समय के अभाव की दलील के साथ नेता जी भाषण समाप्त कर देते हैं. कार्यक्रम में मौजूद महिलाएं नेता जी को सुनकर स्वयं को धन्य महसूस करती हैं और नेता जी के लिए गर्व के भाव से भर जाती हैं. नेता जी पर्याप्त समय न दे पाने के लिए क्षमा मांगते हुए घर की ओर रवाना हो जाते हैं. घर पहुंच कर पत्नी को दरवाजे पर अपने इंतजार में खड़े न देख तिलमिला उठते हैं. तभी पत्नी को बाहर से आता देख उनपर फूट पड़ते हैं,‘नेता की पत्नी हो इसका यह मतलब नहीं कि हमारी बराबरी करो. कहां गयी थीं बिना बताये और इतनी देर क्यों लगी आने में?’ पत्नी ने सहमी हुई आवाज में कहा,‘जी उन्हीं औरतों के कार्यक्रम में गयी थी, जहां आप भाषण दे रहे थे. औरतों के प्रति आपके इतने अच्छे विचार हैं मैंने कभी सुना ही नहीं था.’

नेता जी का पारा और चढ़ गया,‘अच्छा तो तुम हमारी बात चुपके -चुपके बाहर जाकर सुनती हो. उन औरतों जैसा ज्ञान तुम्हारे पास नहीं, जो तुम्हें हमारे विचार समझ में आएं. जल्दी खाना निकलवाओ हमें दूसरे समारोह में जाना है.’ थोड़ी देर बाद खाने की मेज पर फिर पत्नी मुखातिब हैं. पहला ही निवाला मुंह में डालते ही फिर उखड़ पड़ते हैं,‘देखो दाल में नमक ही नहीं है.सब्जी भी बेस्वाद है. घर संभलता नहीं है और बाहर भाषण सुनने जाती हैं. तुमसे अच्छी तो वह मंचवाली मैडम है. नौकरी पर रख लेते तो घर-बाहर दोनों को खूब संभालती.’ पत्नी की आंखों में खारा पानी तैर गया. पल्लू में अपना चेहरा समेटे चुपचाप अपने कमरे में चली गयीं.

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