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सबसे जरूरी है नियमों को स्पष्ट करना
प्राइवेट इक्विटी के तमाम खिलाड़ी बजट को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं. उन्हें यह आशा है कि इस बजट में उन मसलों पर पूरा ध्यान दिया जायेगा, जो उन्हें ‘भारत में कारोबार करने’ में मददगार साबित होने के साथ उसे आसान बनायेगा. छोटी-छोटी स्पष्टताएं व दिशानिर्देश भारत में निवेश का माहौल बनाने की […]
प्राइवेट इक्विटी के तमाम खिलाड़ी बजट को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं. उन्हें यह आशा है कि इस बजट में उन मसलों पर पूरा ध्यान दिया जायेगा, जो उन्हें ‘भारत में कारोबार करने’ में मददगार साबित होने के साथ उसे आसान बनायेगा. छोटी-छोटी स्पष्टताएं व दिशानिर्देश भारत में निवेश का माहौल बनाने की दिशा में कारगर साबित हो सकते हैं.
देश के प्रधानमंत्री भारत की कहानी को जिस तरह से नये रंग-रूप में पेश करने के लिए माहौल तैयार कर रहे हैं, उसका दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय रूप से स्वागत किया जा रहा है. कारोबार को आसान बनाने के लिए अनुकूल माहौल पैदा करने की दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं. जीडीपी के नये आंकड़ों को ज्यादा मजबूती प्रदान करते हुए भारत ग्रोथ मार्केट की ओर तेजी से फोकस कर रहा है.
निश्चितता, अनुमान और स्थिरता ऐसी शब्दावलियां हैं, जो देशभर में प्राइवेट इक्विटी फंड फ्लो में बढ़ोतरी के लिए टैक्स और विनियामक माहौल को बनाने के लिए जरूरी है. यहां हम कुछ प्रमुख उम्मीदें को प्रदर्शित कर रहे हैं, जो प्राइवेट इक्विटी फंड के रूप में बजट 2015 में अहम साबित हो सकते हैं.
अनिवासियों द्वारा दीर्घावधि पूंजीगत लाभ
अनिवासी निवेशकों, खासकर प्राइवेट इक्विटी निवेशकों द्वारा दीर्घावधि पूंजीगत लाभ पर सरकार ने 10 फीसदी की दर से टैक्स लगाया है, ताकि उसे एफआइआइ के समकक्ष लाया जा सके. सभी अनिवासियों के साथ एकसमान बर्ताव किये जाने का उल्लेख कानून में नहीं किया गया है. इसलिए एक प्राइवेट कंपनी के शेयर को शामिल करना विशेष रूप से जरूरी होगा, जो 10 फीसदी की कम दर वाला हो.
अप्रत्यक्ष ट्रांसफर्स पर टैक्स
इनडाइरेक्ट ट्रांसफर्स टैक्स वर्ष 2012 में लागू किया गया था. दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा वोडाफोन के एक मामले में इसे लागू करने की व्यवस्था दी गयी थी. इसके प्रावधानों को लागू करने और इसे संचालित करने के संबंध में स्पष्टता नहीं है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि इसके उद्देश्यों को स्पष्टता से परिभाषित किया जाये.
ठीक इसी तरह से विदेशों में लिस्टेड कंपनियों के शेयर्स, जो भारत में स्थित हैं उन परिसंपत्तियों से पर्याप्त मूल्य हासिल होने से वह इनडाइरेक्ट ट्रांसफर टैक्स प्रावधानों को आकर्षित कर सकता है. अप्रत्यक्ष कर की वसूली से ऐसे ट्रांजेक्शंस को छोड़ कर मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में उसका स्वागत किया जा सकता है.
हालांकि, किसी भारतीय कंपनी के दो विदेशी कंपनियों में समामेलन (एमेल्गमेशन) की दशा में मौजूदा कानून में शेयरों के ट्रांसफर्स से छूट है, लेकिन इस संबंध में स्पष्टता नहीं है कि यह छूट प्राप्तकर्ता शेयरधारकों के हाथ में होगी (उन शेयरों की प्राप्ति में जो भारत में स्थित संपत्ति से हासिल किये गये हों). ऐसे शेयरधारकों के लिए संबंधित छूट को शामिल करने के बारे में टैक्स के प्रावधानों के तहत उसमें सुधार करने की जरूरत है.
समझौते का फायदा
टैक्स समझौता या संधियां इसलिए की जाती हैं ताकि निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके और विदेशी निवेशकों को टैक्स संबंधी मामलों से जुड़ी किसी प्रकार की अनियमितता की स्थिति को कम किया जा सके. हालांकि, टैक्स प्राधिकरणों ने टैक्स समझौते या संधि के फायदों को समझते हुए इस ओर ध्यान देने शुरू किया है. इसलिए जरूरत इस बात की भी है कि भारतीय टैक्स प्राधिकरण इसे निवेशकों के अनुकूल माहौल कायम करते हुए ज्यादा से ज्यादा युक्तिसंगत बनायें.
विदेशी कंपनियों के लिए मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स (मैट)
पिछले कुछ माह के दौरान भारतीय टैक्स प्राधिकरणों ने अधिकांश एफआइआइ (फॉरेन इंस्टिट्यूशनल इनवेस्टर्स यानी विदेशी संस्थागत विनेवश) और क्यूएफओ (क्वालिफाइड फॉरेन इनवेस्टर्स) को नोटिस भेजा और उनके द्वारा हासिल मुनाफे के संदर्भ में उन्हें मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स चुकाने के लिए कहा गया है. विदेशी कंपनियों को इस बारे में स्पष्टता से बताना चाहिए कि जिन कंपनियों की भारत में मौजूदगी नहीं है, उन्हें मैट के प्रावधानों में छूट दी जायेगी.
जीएएआर (जेनरल एंटी- एवॉयडेंस रूल्स)
देश में कारोबार की प्रक्रिया को सरल बनाने और उसे बढ़ावा देने के लिए जीएएआर (जेनरल एंटी-एवॉयडेंस रूल्स) में किये गये प्रावधान में संबंधित दिशानिर्देशों को विस्तार से बताने की जरूरत है. साथ ही इसमें पर्याप्त मशीनरी और उचित मामलों में संरक्षण जैसी सुविधा का प्रावधान स्पष्टता से उल्लिखित होना चाहिए. जब तक इस संबंध में पर्याप्त स्पष्टता न हो, तब तक इसके प्रावधानों को स्थगित रखा जाना चाहिए.
बाहर निकलने पर उचित मूल्य निर्धारण के लिए नियामक
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इस दिशा में सकारात्मकता दर्शाते हुए नरम रवैया बरते जाने का प्रस्ताव दिया है. हाल ही में एक मामले में आरबीआइ ने व्यवस्था दी है, जिसमें स्थानीय कंपनियों को ‘उचित मूल्य’ से ज्यादा भुगतान नहीं करने के लिए कहा गया है. एक हालिया मामले में कहा गया है कि यदि सरकार से इसकी मंजूरी मिली है, तो ऐसी गतिविधि को निवेशकों की पूंजी को संरक्षित करना माना जा सकता है.
यद्यपि इस पर आखिरी फैसला सरकार के पास है, फिर भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी ओर से इस बात की सिफारिश की है कि यदि इसे विस्तार दिया जाता है, तो निश्चित रूप से यह निवेशकों के हित में हो सकता है और इससे निवेशकों का उत्साह बढ़ेगा.
प्राइवेट इक्विटी के तमाम खिलाड़ी आगामी बजट को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं. उन्हें इस बात की बड़ी उम्मीद है कि इस बजट में उन मसलों पर पूरा ध्यान दिया जायेगा, जो उन्हें ‘भारत में कारोबार करने’ की दिशा में मददगार साबित होने के साथ उसे ज्यादा आसान बनायेगा और चीजों को सुनिश्चित करेगा. इस प्रकार की छोटी-छोटी स्पष्टताएं व दिशानिर्देश भारत में निवेश का माहौल बनाने की दिशा में कारगर साबित हो सकते हैं.
(साभार : द इकॉनोमिक टाइम्स)
नरेंद्र रोहिरा और दीपा दलाल
(लेखक-द्वय अन्स्र्ट एंड यंग में टैक्स एवं रेगुलेटरी सेवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं)
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