।। दक्षा वैदकर ।।
समस्याएं सभी की जिंदगी में आती है. कई को हम हल कर लेते हैं, तो कई में उलझ जाते हैं. अक्सर जब हमारे पास समस्या का हल नहीं होता, हम सोचते हैं कि काश कहीं से कोई फरिश्ता आ जाये और हमें इस समस्या से बाहर निकाल ले. कई बार ऐसा होता भी है कि बहुत बड़ी मुसीबत आ जाती है और कोई अचानक आ कर हमारी मदद कर देता है. हम उसे कहते हैं कि ‘यार, तुम तो मेरे लिए फरिश्ता बन कर आ गये.’ हम यह उम्मीद हमेशा करते हैं कि मुसीबत आने पर कोई फरिश्ता आ जाये, लेकिन क्या कभी हमने खुद फरिश्ता बनने के बारे में सोचा है? अगर नहीं तो सोचें.
दरअसल फरिश्ते आसमान से नहीं आते. यह हम लोग ही होते हैं. जब हम किसी की मदद बहुत मुसीबत के वक्त करते हैं, तो हम फरिश्ते का रूप धारण कर लेते हैं. एक बात हम सभी को जान लेनी होगी कि यदि हम चाहते हैं कि हमारी मुसीबत के वक्त कोई फरिश्ता आ जाये, तो उसके पहले हमें दूसरों के लिए फरिश्ता बनना होगा. इसके लिए आप यह इंतजार न करें कि सामनेवाला आपसे मदद मांगेगा, तो ही आप उसकी मदद करेंगे. यदि आप किसी को परेशान देख रहे हैं, तो चुपके से उसकी मदद कर उसे ढेर सारी खुशियां दे सकते हैं.
प्रताप ने भी ऐसा ही किया. उसके साथी कर्मचारी आकाश को बॉस फोन पर डांट रहे हैं. वह उस दिन छुट्टी पर था और बॉस कह रहे थे कि फलां कंपनी की फाइल आज शाम तक मुझे चाहिए. प्रताप ने बॉस को फोन पर डांटते हुए सुना और माजरा समझ गया. वह जानता था कि आकाश को ऑफिस पहुंचने में बहुत वक्त लग जायेगा और वह सही वक्त पर फाइल ठीक कर के नहीं दे पायेगा. प्रताप ने उसकी मदद करने की सोची और उसकी फाइल ठीक कर दी. जब भागते–दौड़ते, हांफते आकाश आया और उसने प्रताप को कहा कि ‘भाई, आज तो मेरी नौकरी गयी’, प्रताप ने मुस्कुराते हुए फाइल उसके हाथ में थमा दी. कहा ‘कॉन्फिडेंस के साथ बॉस को जा कर दे दो. मैंने तुम्हारा काम कर दिया है.’ आकाश समझ नहीं पा रहा था कि वह किस तरह धन्यवाद कहे. प्रताप ने कहा, जिस तरह मैंने तुम्हारी मदद की है, उसी तरह तुम किसी और की कर देना. यह चक्र चलते रहना चाहिए.
– बात पते की
* हम हमेशा मदद लेने के बारे में सोचते हैं. कभी मदद करने के बारे में नहीं सोचते. एक बार ऐसा कर के देखें, इससे आपको भी खुशी व संतुष्टि मिलेगी.
* मदद करते वक्त यह जरूर ध्यान रखें कि आप सामनेवाले को आपके ऊपर निर्भर न बना दें. उसे पंगु न बना दें. मदद सिर्फ बड़ी मुसीबत आने पर करें.