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तो फिर ईमानदार अधिकारियों के लिए क्या है राह?

हाल के वर्षो में यह आरोप बार-बार लगता रहा है कि दागियों, धनकुबेरों और राजनेताओं का गंठजोड़ पूरे सिस्टम को मनमाने तरीके से चला रहा है. पिछले वर्षो में देश में विभिन्न क्षेत्रों में सामने आये बड़े घोटाले इसके साक्ष्य कहे जा सकते हैं. ऐसे समय में दुर्गा शक्ति नागपाल जैसी कोई अधिकारी यदि इस […]

हाल के वर्षो में यह आरोप बार-बार लगता रहा है कि दागियों, धनकुबेरों और राजनेताओं का गंठजोड़ पूरे सिस्टम को मनमाने तरीके से चला रहा है. पिछले वर्षो में देश में विभिन्न क्षेत्रों में सामने आये बड़े घोटाले इसके साक्ष्य कहे जा सकते हैं. ऐसे समय में दुर्गा शक्ति नागपाल जैसी कोई अधिकारी यदि इस गंठजोड़ के खिलाफ ईमानदारी से खड़े होने की हिम्मत करती है तो उसे बिना उसका पक्ष सुने सस्पेंड कर दिया जाता है. कर्तव्यपालन की कोशिश करनेवाले अशोक खेमका जैसे अधिकारियों के तबादलों का रिकार्ड बन जाता है. इसमें कई और नाम जोड़े जा सकते हैं. ऐसे में इस बात पर गंभीर बहस होनी चाहिए कि ईमानदार अधिकारियों के लिए क्या है राह?

सिस्टम पारदर्शी हो तभी बढ़ेगा भरोसा
।।अरुणा रॉय।।
(सामाजिक कार्यकर्ता)

किसी व्यवस्था का पारदर्शी होना आवश्यक होता है. खास कर लोकतांत्रिक व्यवस्था में तो शासन के फैसलों में पूरी पारदर्शिता होनी ही चाहिए. ऐसी पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए ही सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून की लड़ाई लड़ी गयी थी. इतना ही नहीं, लोकपाल बिल और ग्रिवांस रिड्रेसल (शिकायत निवारण) बिल, व्हिसल ब्लोअर बिल की मांग भी लंबे अरसे से हो रही है. आरटीआइ कानून के जरिये जनता अधिकारियों से सवाल पूछ सकती थी. मौजूदा समय में इस कानून का इस्तेमाल बढ़ रहा है और राजनीतिक दलों को भी इसके दायरे में लाने की बात हो रही है, लेकिन तमाम राजनीतिक दल खुद को इससे बाहर रखना चाहते हैं.

आरटीआइ कानून में जरूरी संशोधन और व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट के जरिये न सिर्फ जनता का भला होगा, बल्कि वैसे अधिकारी या सामाजिक कार्यकर्ता, जो जनता के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ते हैं, की सुरक्षा भी होगी. व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट को लंबे समय से लटकाये रखा गया है, जबकि इसे जल्द से जल्द पारित किया जाना चाहिए.

मौजूदा सिस्टम में दुर्गा शक्ति नागपाल जैसे ईमानदार अधिकारी कमजोर हो रहे हैं. यह पहला मामला नहीं है. इस बार तो महज निलंबन की बात ही हुई है, ऐसे भी कई मामले रहे हैं, जिनमें अधिकारियों को प्रताड़ित किया जाता रहा है. ऐसे सभी मामले सामने नहीं आ पाते हैं. ऐसे मामलों को पारदर्शी तरीके से निबटने के लिए हम व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट को और ज्यादा सक्षम बनाने की मांग करते रहे हैं, जिसे व्यापक चरचा के बाद दिसंबर, 2011 में संसद ने पारित किया है. मेरा मानना है कि इस कानून से भ्रष्टाचारियों और उसके पूरे गठजोड़ से निबटा जा सकेगा. हमने इसके मौजूदा स्वरूप में कुछ संशोधन किये जाने की सलाह दी है, ताकि व्हिसल बलोअर की सुरक्षा तय करने के लिए एक व्यस्थित ढांचा बनाया जा सके.

व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन बिल के दायरे को व्यापक तौर पर बढ़ाते हुए इसके दायरे में सभी सरकारी कर्मचारियों और केंद्र व राज्यों में सार्वजनिक प्राधिकरणों के अधिकारियों, कॉरपोरेट निकायों, फर्मो और अन्य संघों को शामिल किया जाना चाहिए. जहां तक किसी वाजिब हक की बात है तो जनता अधिकारियों को कटघरे में भी खड़ा कर सकती थी. लोगों में इस कानून के प्रति जागरूकता बढ़ी भी है और देशभर में लोग तमाम तरह की सूचना हासिल कर रहे हैं. इससे उन्हें अपने हक के लिए बनायी जानेवाली योजनाओं की जानकारी मिलती है और यह भी पता चलता है कि विकास या आर्थिक सुधारों के लिए कितनी रकम खर्च की जा रही है.

आज जरूरत ऐसा माहौल बनाने की है ताकि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या भ्रष्टाचार उजागर करनेवालों को प्रोत्साहित किया जाये और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करायी जाये. ऐसा होने से न केवल पूरी व्यवस्था पारदर्शी होगी, बल्कि लोगों का इस सिस्टम पर भरोसा भी बढ़ेगा. ईमानदारी को प्रोत्साहन देनेवालों की सुरक्षा तय करना सबसे अहम है.

जब तक दागी चुने जायेंगे, यही होगा

।। जोगिंदर सिंह।।
(पूर्व निदेशक, सीबीआइ)

हमारे देश में, नौसिखिये राजनीतिज्ञ, खास कर सत्ता पक्ष के, पहले विवादित फैसला करते हैं और फिर उसे अपने तर्कों से जायज ठहराने की कोशिश करते हैं. लोकतंत्र में यह सही है कि सत्ता पक्ष के लिए यह बहुत ही संतुलित कार्य है, क्योंकि उसका लक्ष्य होता है कि सत्ता में कैसे बने रहा जाये और यह भी दिखे की सरकार अच्छी चल रही है. हालांकि पूर्ण बहुमत न होने या कई दलों के गठबंधन की स्थिति में ऐसा कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रेटर नोएडा में तैनात युवा आइएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति को निर्माणाधीन मसजिद के कुछ हिस्से को गिराये जाने के आरोप में निलंबित कर दिया. जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक कहीं भी धार्मिक स्थलों समेत किसी भी तरह के अवैध निर्माण की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए. मीडिया रिपोर्टो के मुताबिक, इस निलंबन के पीछे यमुना और हिंडन नदी की पट्टी में अवैध रेत खनन में संलग्न माफिया को बताया गया है. उधर, सूबे के मुख्यमंत्री ने कहा, यह प्रशासनिक फैसला है. अधिकारी ने धार्मिक स्थल की दीवार गिराने का आदेश दिया था. इससे समाज में सद्भाव का माहौल बिगड़ने का खतरा है. जबकि सूत्रों के मुताबिक, ग्रेटर नोएडा के कादलपुर गांव में एक मसजिद के अवैध निर्माण की सूचना मिलने पर एसडीएम वहां का दौरा करने गयी थीं. एसडीएम की कार्रवाई के संबंध में डीएम ने यह रिपोर्ट भेजी थी कि गांववालों ने स्वेच्छा से दीवार गिरायी थी और इलाके में किसी तरह का तनाव नहीं था. डीएम ने कहा, मसजिद निर्माण के लिए कोई मंजूरी नहीं ली गयी थी.’ परंतु कुछ स्थानीय नेता इस युवा अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई चाहते थे. अब अल्पसंख्यक वर्ग से आनेवाले एक मंत्री ने एसडीएम का समर्थन करनेवाले डीएम के खिलाफ भी कार्रवाई किये जाने की इच्छा जतायी है. निर्माणाधीन मसजिद की अवैध दीवार गिराये जाने के संबंध में हड़बड़ी में दी गयी रिपोर्ट पर यूपी सरकार डीएम के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकती थी, जिसमें संभवत: सरकार का पक्ष नहीं लिया गया है.

असल में, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी यूपी सरकार आपराधिक पृष्ठभूमिवाले नेताओं के बिना नहीं चल सकती. एडीआर और नेशनल इलेक्शन वॉच द्वारा किये गये विश्लेषण में दर्शाया गया है कि यूपी विधानसभा में 189 (47 फीसदी) नये विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि 2007 में इनकी संख्या 140 (34 फीसदी) थी. सरकार को समर्थन देने की एवज में ये अपना संरक्षण चाहते हैं. नौकरशाहों के स्थानांतरण और निलंबन के पीछे इन्हीं ताकतों की साजिश होती है.

त्रासदी यह है कि नियमों और कानूनों के तहत ऐसे लोगों को सजा देने के बदले हम खुद ऐसे लोगों को चुनते हैं. वे समझते हैं कि बंदूक या भय और धन के बूते चुनाव में जीत हासिल कर सकते हैं. मतदाताओं को इसके प्रति जागरूक होना होगा. उन्हें इस बात को समझना होगा कि जब तक आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग चुन कर आयेंगे, वे अपने फायदे के मुताबिक ही काम करेंगे.

दुर्गा शक्ति का निलंबन
दुर्गा शक्ति नागपाल पर आरोप यह लगाया गया कि उन्होंने अवैध रूप से बनायी जा रही एक मसजिद की दीवार को गिरा दिया था, जिससे इलाके में सांप्रदायिक तनाव फैल जाने की आशंका थी. बाद में जनता के विरोध के मद्देनजर इन्हें राजस्व विभाग से संबद्ध कर दिया गया.

-दुर्गा शक्ति नागपाल मूल रूप से 2010 बैच की पंजाब कैडर की भारतीय प्रशासनिक अधिकारी हैं.

-उत्तर प्रदेश कैडर के आइएएस अधिकारी अभिषेक सिंह से शादी होने के बाद इन्होंने अपना स्थानांतरण उत्तर प्रदेश में करा लिया.

-पहली तैनाती सितंबर, 2012 में हुई. इन्हें गौतम बुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के पद पर तैनात किया गया.

-इस युवा और तेजतर्रार अधिकारी ने यमुना नदी के खादर में रेत से भरी करीब 300 ट्रॉलियों को अपने कब्जे में ले लिया था.

-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यमुना और हिंडन नदियों में खनन माफियाओं पर नजर रखने के लिए विशेष उड़नदस्तों का गठन किया और उनका नेतृत्व भी स्वयं संभाला.

-इस 28 वर्षीय महिला अधिकारी ने इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी, दिल्ली से बीटेक (कम्प्यूटर साइंस) की डिग्री भी हासिल कर रखी है. माना जा रहा है कि अवैध खनन के खिलाफ मोर्चा खोलने के कारण ही इन्हें निलंबित कर दिया गया.

अशोक खेमका के तबादले

हरियाणा कैडर के अधिकारी खेमका उस समय सुर्खियों में आये थे, जब उन्होंने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और रियल एस्टेट की बड़ी कंपनी डीएलएफ के बीच करोड़ों रुपयों के एक विवादित भूमि सौदे में जमीन का म्यूटेशन (उपयोग ध्येय) रद्द कर दिया. इस अधिकारी के कैरियर में तबादलों का रिकार्ड बन चुका है.

-रावर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच 58 करोड़ रुपयों के भूमि सौदे को रद्द करने और हरियाणा के चार जिलों में तथा दिल्ली में 2005 के बाद हुए वाड्रा के सभी भूमि सौदों की जांच के आदेश दिये जाने के बाद अशोक खेमका को पद से हटा दिया गया था.

-अशोक खेमका हरियाणा कैडर के 1991 बैच के आइएएस अधिकारी है. -उनकी पहली पोस्टिंग वर्ष 1993 में हुई थी.

-उनकी अधिकतर पोस्टिंग कुछ महीने ही चली. इस दौरान उन्होंने अलग-अलग विभागों में 8 पोस्ट ऐसी संभालीं, जो कि महीने भर या उससे भी कम समय के लिए थीं.

-खेमका ऐसे आइएएस अधिकारी हैं, जिनका 20 साल की नौकरी में 43 बार तबादला हो चुका है. उनका आखिरी तबादला हरियाणा बीज निगम में किया गया, जहां जूनियर अफसरों को भेजा जाता है.

-एक टीवी चैनल को दिये इंटरव्यू में खुद को मिलनेवाली धमकियों का जिक्र करते हुए वे यहां तक कह चुके हैं कि उन्हें अपनी कोई परवाह नहीं है, केवल परिवार को लेकर वह चिंतित हैं.

ऐसे नाम और भी हैं..

-देशभर में अब तक ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जिनमें राजनेताओं ने अपने हितों को साधने के लिए आइएएस अधिकारियों का स्थानांतरण और निलंबन किया है.

-पिछले सप्ताह ही राजस्थान में एक आइपीएस ऑफिसर पंकज चौधरी का स्थानंतरण कर दिया गया है. उन्होंने कांग्रेस के एक विधायक सालेह मोहम्मद के पिता गाजी फकीर की उस फाइल को दोबारा से खोला, जिसे कुछ वर्ष पूर्व बंद कर दिया गया था. बताया जाता है कि गाजी फकीर तस्करी और समाज-विरोधी गतिविधियों में संलिप्त रहे हैं.

-इसके अलावा उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि के कई लोगों की फाइलों को खंगालना शुरू किया था. इस दौरान उन्होंने पोखरण के विधायक के पिता की फाइल को भी खोल दिया.

-गुजरात पुलिस के आइपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को उस समय निलंबित कर दिया गया था, जब उन्होंने सूबे के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की गोधरा दंगों के दौरान भूमिका को लेकर सवाल उठाये थे.

-अप्रैल, 2011 में संजीव भट्ट ने 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र करते हुए राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाये थे, जिसके बाद सितंबर, 2011 में इन्हें निलंबित कर दिया गया था.

-1988 बैच के अधिकारी फिलहाल कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे हैं. इस पुलिस अधिकारी पर कई आरोप मढ़ते हुए राज्य सरकार की ओर से सेवा बर्खास्तगी की कवायद की जा रही है.

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