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आखिर दागियों से कैसे मुक्त होगी संसद

* महाबहस– 2 * अपराधियों का अपराधियों के लिए! ।। प्रकाश सिंह ।। (पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश) दागी उम्मीदवारों–नेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद ऐसा लग रहा है कि देश के सभी नेताओं में खलबली सी मच गयी है, मानो वे कह रहे हों कि […]

* महाबहस– 2

* अपराधियों का अपराधियों के लिए!

।। प्रकाश सिंह ।।

(पूर्व डीजीपी, उत्तर प्रदेश)

दागी उम्मीदवारोंनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकने को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद ऐसा लग रहा है कि देश के सभी नेताओं में खलबली सी मच गयी है, मानो वे कह रहे हों कि दागियों तुम सब एक हो जाओ, नहीं तो तुम्हारे लिए सभी सदनों के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जायेंगे. ऐसे में क्या हम एक सच्चे लोकतंत्र की कल्पना कर सकते हैं, जहां जनता का एक भी प्रतिनिधि दागी हो! शायद यही वजह है कि आज दुनिया के इतने बड़े लोकतंत्र की दुर्दशा हो रही है और लोगों का इस पर से विश्वास उठने लगा है.

लोकतंत्र का सही अर्थ है जनता की सरकार, जनता के द्वारा और जनता के लिए. लेकिन दागी नेताओं की एक लंबी जमात को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि आज भारत का लोकतंत्र चीख चीख कर यही कह रहा है कि अपराधियों की सरकार, अपराधियों के द्वारा और अपराधियों के लिए. आज देश को सबसे ज्यादा जिस चीज की जरूरत है, वह है चुनाव सुधार. इसके साथ ही पुलिस सुधार, प्रशासनिक सुधार और जेल सुधार की भी सख्त से सख्त जरूरत है. अगर इन सबमें सुधार होता है, तो बहुत संभव है कि खुद खुद आपराधिक मामलों में लिप्त एक भी व्यक्ति के लिए चुनाव में उम्मीदवारी सुनिश्चित करना मुमकिन हो.

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एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स यानी एडीआर ने संसद और विधानसभाओं में दागी नेताओं की जो फेहरिस्त पेश की उसके मुताबिक 30 प्रतिशत लोकसभा सांसदों पर आपराधिक मामले हैं. वहीं राज्यसभा में यह प्रतिशत 17 है. देश के सभी राज्य विधानमंडलों में 31 प्रतिशत विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं, जिनमें 15 प्रतिशत पर तो गंभीर मामले दर्ज हैं. जिस तेजी से दागी सांसदोंविधायकों की फेहरिस्त बढ़ रही है, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह प्रतिशत बहुत जल्द पचास के आसपास पहुंच जायेगा.

अगर ऐसा हुआ तो यकीन जानिये कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय बड़ी आसानी से एक आपराधिक राष्ट्र के दरजे से नवाजेगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताते हुए जिस तरह से तमाम नेता लामबंद हो रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि अगर सुधार प्रक्रिया कुछ कारगर नहीं हुई तो हम जल्द ही उस स्थिति को पहुंच जायेंगे, और तब हमारा बड़े लोकतंत्र का दंभ भी टूट जायेगा. पिछले दिनों केंद्रीय सूचना आयोग ने भी अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि राजनीतिक दल सार्वजनिक संस्थाएं हैं और वे आरटीआइ के दायरे में आते हैं. इसके बाद तो देश के नेताओं में जैसे भूचाल गया और वे एक साथ मिल कर विरोध पर उतर आये. इसका नतीजा यह हुआ कि राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे से बाहर रखने के लिए सरकार तैयार हो गयी.

पूरा देश हैरान है कि जो नेता देश को बदलने की बात करते हैं, वे दागियों के खिलाफ क्यों कुछ नहीं बोलते. विडंबना है कि लोकपाल बिल, महिला बिल अभी तक लटका हुआ है और दागियों को बचाने के लिए संशोधन विधेयक लाने की तैयारी है.

* व्यवस्था में व्यापक बदलाव है जरूरी

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।। प्रशांत भूषण ।।

(वरिष्ठ अधिवक्ता)

देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं से दागी मंत्रियोंनेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए ही लड़ाई लड़ रहे हैं. जाहिर है कि अगर घर को साफ करना है तो उस घर के अंदर दाखिल होना होगा, बाहर रह कर सिर्फ सफाई की दुहाई देने या शोर करने से तो कुछ भी नहीं होगा.

यही वजह है कि हमने पार्टी बना कर संसद और विधानसभाओं में दाखिल होने की तैयारी की है. इसके लिए सबसे पहले हमने अपनी पार्टी में किसी भी आपराधिक किस्म के व्यक्ति को शामिल करने का प्रावधान बनाया है. पहले हम सुधरेंगे तभी दूसरे को सुधरने के लिए कह पायेंगे. नहीं तो सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी.

किसी भी चीज में सुधार की गुंजाइश बनी रहती है और यह अपने सबसे निचले स्तर से मजबूत हो तो ही कारगर सिद्ध होती है. मसलन, अगर हमें दागी नेताओं को सदनों में दाखिल होने से रोकना है, तो इसके लिए जरूरी है कि इस पर विचार किया जाये कि उनके दागी होने को लेकर कानून और प्रशासन क्या कर रहा है.

जो भी नेता, सांसद या विधायक कानून हाथ में लेता है, तो सबसे पहले उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज हो, लेकिन बहुत से मामलों में डर के मारे पुलिस कोई रिपोर्ट ही नहीं दर्ज करती. ऐसे में नेताओं का मनोबल बढ़ता जाता है और वे गंभीर अपराधों में लिप्त हो जाते हैं और अपने रसूख के दम पर वे संसद और विधानसभाओं में भी पहुंच जाते हैं. इसलिए पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था जब तक सख्त नहीं होगी, निडर नहीं होगी, तब तक ये नेता गंभीर अपराधों को अंजाम देते रहेंगे. संसद और विधानसभाओं में चुन कर जाते रहेंगे और फिर अपने बचाव के लिए कानून बनाते रहेंगे.

इसी की अगली कड़ी में आम आदमी को न्यायपालिका में प्रवेश करना होगा. अपनेअपने क्षेत्र के सभी आम आदमी अगर अपने जन प्रतिनिधियों के खिलाफ, जो अपराधी तो हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई खड़ा नहीं हो रहा है, खड़ा होना होगा. आम आदमी को उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने की हिम्मत जुटानी होगी, तभी कानून भी अपना काम करेगा. यानी हर वो चीज जिससे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था एक आदर्श व्यवस्था बन सकती है, उसमें सुधार होना चाहिए. न्यायिक सुधार भी जरूरी है, ताकि जजों और अधिवक्ताओं की नियुक्ति को लेकर होनी वाली चयन प्रक्रिया पारदर्शी हो सके.

दागियों को सदनों से बाहर रखने के लिए चुनाव सुधार ज्यादा अहम है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला दिया है, जिसके तहत दागी उम्मीदवार चुनाव नहीं लड़ पायेंगे. इस फैसले के आते ही सभी नेताओं में खलबली मच गयी. कुछ नेताओं ने तो यहां तक कह दिया कि इससे लोकतंत्र कमजोर होगा, क्योंकि एक व्यक्ति को चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित कर दिया जायेगा. जाहिर है कि राजनीतिक नेताओं के अपने तर्क होते हैं.

लेकिन जो काम देश की सर्वोच्च अदालत ने किया है, इसे ही आगे बढ़ाते हुए चुनाव आयोग अगर ऐसा कोई ठोस कदम उठाता है तो यह दागियों को सदनों में आने से रोकने के लिए बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकता है. हालांकि पिछले कुछ सालों में चुनाव प्रक्रिया में काफी सुधार हुआ है और आगे भी उम्मीद है कि वह कुछ ठोस कदम उठाये, ताकि व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया जा सके.

– चुनाव सुधार के साथ ही पुलिस सुधार, प्रशासनिक सुधार और जेल सुधार की सख्त जरूरत है. इनमें सुधार से संभव है कि आपराधिक मामलों में लिप्त व्यक्ति चुनाव में अपनी उम्मीदवारी सुनिश्चित कर पाये.

* जो काम देश की सर्वोच्च अदालत ने किया है, उसे ही आगे बढ़ाते हुए चुनाव आयोग अगर ऐसा कोई ठोस कदम उठाता है, तो यह दागी नेताओं को संसद और विधानसभाओं में आने से रोकने के लिए बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकता है.

– दागी नेताओं का आंकड़ा

इलेक्शन वॉच के दस साल पूरे होने पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के मुताबिक..

* 2004 से अब तक चुनाव लड़नेवाले तकरीबन 11,063 उम्मीदवारों में से5,233 उम्मीदवारों पर गंभीर मामले हैं.

* लोकसभा में लगभग 30 प्रतिशत सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं. यानी लोकसभा के 543 सांसदों में से 162 दागी हैं.

* राज्यसभा भी दागदार है. 232 राज्यसभा सांसदों में से 40 सांसदों पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं.

* देश के सभी राज्यों से वर्तमान में 4,032 विधायकों में से 1258 विधायकों के आपराधिक मामलों की घोषणा हुई जो तकरीबन 31 प्रतिशत है. इसमें से तकरीबन 15 प्रतिशत विधायकों पर गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं.

* पार्टियों की बात की जाये तो राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस और भाजपा के क्रमश: 22 और 31 प्रतिशत विधायकोंसांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. जदयू में यह संख्या 47 प्रतिशत है.

* सपा, बसपा और राजद के क्रमश: 48, 34 और 64 प्रतिशत विधायकोंसांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं झामुमो में यह संख्या तकरीबन 82 प्रतिशत है.

* शिवसेना और मनसे के क्रमश: 75 और 77 प्रतिशत विधायकोंसांसदों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं.

– सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

पिछले दिनों देश की सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले के तहत जनप्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को खत्म कर दिया जो संभवत: दागी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने में अप्रभावी था..

* न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति एके पटनायक की खंडपीठ ने वकील लिली थॉमस और गैरसरकारी संगठन लोक प्रहरी के सचिव एसएन शुक्ला की जनहित याचिका पर यह महत्वपूर्ण फैसला दिया.

* जजों ने कहा कि इसमें सिर्फ जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) के अधिकारातीत होने का सवाल है और हम इसे अधिकारातीत घोषित करते हैं और सांसदोंविधायकों के दोषी ठहराये जाने की तारीख से ही उनकी अयोग्यता प्रभावी होगी.

* अदालत के फैसले के मुताबिक सांसदोंविधायकों के खिलाफ किसी भी मामले में अगर दो साल से ज्यादा की सजा सुनायी गयी है तो उनकी सदस्यता रद्द हो जायेगी.

* यह फैसला उन सांसदोंविधायकों पर नहीं लागू होगा, जिन्होंने इस फैसले से पहले किसी आपराधिक मामले को लेकर हाइकोर्ट में अपील दायर कर रखी हो.

* इस फैसले के तहत जेल में सजा काट रहे किसी भी नेता को तो वोट देने का अधिकार होगा और ही चुनाव लड़ने का. यह फैसला आम आदमी और जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत संरक्षण प्राप्त निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच भेदभाव वाले प्रावधान को खत्म करता है.

– फैसले पर नजरिया

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राजनीतिक दल असहमत हैं. सर्वदलीय बैठक में तमाम दल इस मामले में एक सुर में बोलते दिखे. आम सहमति यह बनी कि दागी नेता किसे कहा जाये यह अदालत नहीं, बल्कि संसद तय करेगी. इस फैसले के बाद आयी कुछ प्रतिक्रिया..

* सभी दलों में इस फैसले को लेकर चिंता है, सभी नेताओं ने संसद की गिरती साख पर अफसोस जाहिर किया और सबने इस स्थिति का समाधान और संसद की सर्वोच्चता बरकरार रखने की मांग की है.

(सर्वदलीय बैठक के बाद संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ)

* मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं, बहुत मुमकिन है कि इस फैसले से हमारी विधायिका में कुछ सुधार होगा.

(कोर्ट के फैसले के तत्काल बाद भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद)

* यह काफी समय से लंबित था. निर्वाचित व्यक्ति और गैरनिर्वाचित व्यक्ति के बीच कोई भेद नहीं हो सकता है. उम्मीद है इससे कुछ सुधार हो.

।। वीएस संपत ।। (मुख्य चुनाव आयुक्त)

* यह जनता और लोकतंत्र दोनों के लिए स्वागतयोग्य कदम है. लेकिन इसके साथ ही चुनाव प्रक्रिया में सुधार भी बहुत जरूरी है.

।। सुभाष कश्यप ।।

(संविधानविद्)

* सुप्रीम कोर्ट ने पूरी संसदीय व्यवस्था को आईना दिखाते हुए लोकतंत्र को साफसुथरा बनाने के लिए अभूतपूर्व फैसला दिया है.

केजे राव, चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार

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