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दक्षा वैदकर लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि आप इतनी अच्छी प्रेरक कहानियां कहां से लाती हैं? दोस्तों, जब हम कुछ अच्छा पढ़ने की इच्छा रखते हैं, तो खुद-ब-खुद कहानियां हमें मिलने लगती हैं. इनमें से कुछ कहानियां मुङो यूं ही चलते-फिरते मिल जाती हैं, तो कुछ मैं अपने अनुभव से खुद लिखती हूं. एक […]

दक्षा वैदकर
लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि आप इतनी अच्छी प्रेरक कहानियां कहां से लाती हैं? दोस्तों, जब हम कुछ अच्छा पढ़ने की इच्छा रखते हैं, तो खुद-ब-खुद कहानियां हमें मिलने लगती हैं. इनमें से कुछ कहानियां मुङो यूं ही चलते-फिरते मिल जाती हैं, तो कुछ मैं अपने अनुभव से खुद लिखती हूं.
एक बात यह भी है कि जब आप अच्छी कहानियां पढ़ते हो, तो आपके अंदर भी सही-गलत की अपनी एक समझ विकसित होती है. इसलिए बेहतर है कि अच्छी कहानियां पढ़ो. अब इसी कहानी को ले लें.
एक बुढ़िया बड़ी-सी गठरी लिये चली जा रही थी. चलते-चलते वह थक गयी. तभी उसने देखा कि एक घुड़सवार चला आ रहा है. बुढ़िया ने आवाज दी, बेटा, एक बात तो सुन. घुड़सवार रुक गया. उसने पूछा, ‘क्या बात है माई?’ बुढ़िया ने कहा, बेटा, मुङो उस सामनेवाले गांव में जाना है.
बहुत थक गयी हूं. यह गठरी उठायी नहीं जाती. तू भी शायद उधर ही जा रहा है. यह गठरी घोड़े पर रख ले. मुङो चलने में आसानी हो जायेगी. उस व्यक्ति ने कहा, माई तू पैदल है. मैं घोड़े पर हूं. गांव अभी बहुत दूर है. पता नहीं तू कब तक वहां पहुंचेगी. मैं तो थोड़ी ही देर में पहुंच जाऊंगा. वहां पहुंच कर क्या तेरी प्रतीक्षा करता रहूंगा?
यह कह कर वह चल पड़ा. कुछ ही दूर जाने के बाद उसने अपने आप से कहा, तू भी कितना मूर्ख है. वह वृद्ध है, ठीक से चल भी नहीं सकती. क्या पता उसे ठीक से दिखायी भी देता है या नहीं. तुङो गठरी दे रही थी. संभव है उस गठरी में कोई कीमती सामान हो. तू उसे लेकर भाग जाता, तो कौन पूछता. चल वापस, गठरी ले ले. वह घूम कर वापस आ गया और बुढ़िया से बोला, माई, ला अपनी अपनी गठरी. मैं ले चलता हूं. गांव में रुक कर तेरी राह देखूंगा.
बुढ़िया ने कहा, न बेटा, अब तू जा, मुङो गठरी नहीं देनी. घुड़सवार ने कहा, अभी तो तू कह रही थी कि ले चल. अब ले चलने को तैयार हुआ, तो गठरी दे नहीं रही. ऐसा क्यों? यह उल्टी बात तुङो किसने समझायी है? बुढ़िया बोली, उसी ने समझायी है, जिसने तुङो यह समझाया कि माई की गठरी ले ले. जो तेरे अंदर बैठा है, वही मेरे भीतर भी.
बात पते की..
– कौन सही है, कौन गलत, यह एक नजर में समझ नहीं आता. कई बार आंखें भी धोखा दे जाती हैं. ऐसे में हमें अपने मन की आवाज सुननी चाहिए
– आंखें मूंद कर किसी पर भरोसा न करें. कोई भी व्यक्ति यूं ही किसी की मदद नहीं करता. इसके पीछे छिपा उसका स्वार्थ जानने की कोशिश करें

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