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नेटाफेम : बूंद-बूंद पानी के उपयोग की तकनीक

नेटाफेम एक विश्वस्तरीय सिंचाई कंपनी है. मूल रूप से इजराइल की यह कंपनी भारत के कई राज्यों में सालों से सक्रिय है. भारत के दक्षिणी व पश्चिमी राज्यों में अबतक ज्यादा सक्रिय रही नेटाफेम अब पूर्वी भारत के राज्यों में भी तेजी से अपना कामकाज फैला रही है. यह कंपनी ड्रिप व स्प्रींकलर इरीगेशन सिस्टम […]

नेटाफेम एक विश्वस्तरीय सिंचाई कंपनी है. मूल रूप से इजराइल की यह कंपनी भारत के कई राज्यों में सालों से सक्रिय है. भारत के दक्षिणी व पश्चिमी राज्यों में अबतक ज्यादा सक्रिय रही नेटाफेम अब पूर्वी भारत के राज्यों में भी तेजी से अपना कामकाज फैला रही है. यह कंपनी ड्रिप व स्प्रींकलर इरीगेशन सिस्टम किसानों के खेतों व बागों में लगाती है. इसका सिद्धांत है – कम पानी में अधिक उत्पादन. कंपनी की खासियत है कि यह प्रकृति के अनुकूल कार्य करके किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाती है. इसकी तकनीक किसानों के खेत के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है. कंपनी ने इस क्षेत्र में 2006 में काम शुरू किया था, लेकिन 2010 में इसके काम ने जोर पकड़ा.

कंपनी के प्रतिनिधि कहते हैं
कॉरपोरेट कंपनी होने के नाते इसका उद्देश्य मुनाफा कमाना तो है, लेकिन इसका उद्देश्य किसानों का आर्थिक उन्नयन कर उनका जीवन स्तर ऊंचा करना भी है. दरअसल, पानी की बढती किल्लत के कारण यह जरूरी हो गया है कि किसान ऐसी तकनीक अपनायें ताकि कम से कम पानी में अधिक से अधिक उत्पादन हासिल कर बढ़ती आबादी के लिए भोजन का प्रबंध किया जा सके. अबतक इस कंपनी ने झारखंड के 4500 व बिहार के 2000 किसानों के खेत में ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगाया है. इस पद्धति को अपनाने वाले सैकड़ों किसान आज अपनी छोटी जोत में भी बड़ी मात्र में उपज ले कर आत्मनिर्भर हो रही हैं.

कैसे काम करती हैं कंपनी
कंपनी दो तरह से काम करती है – एक तो सरकार की सिंचाई योजनाओं के तहत किसी किसान की जमीन पर इरीगेशन सिस्टम लगाने का और दूसरा व्यक्तिगत रूप से कोई व्यक्ति संपर्क कर इरीगेशन सिस्टम लगवा सकता है. राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन के तहत किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान इस सिस्टम को लगवाने के लिए मिलता है. एक एकड़ भूमि पर नेटाफेम का इरिगेशन सिस्टम लगवाने में 45 से 50 हजार रुपये के बीच लागत आती है, जिसमें 90 प्रतिशत अनुदान के रूप में मिलता है. राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत 50 डिसमिल भूमि से लेकर 12.5 एकड़ डिसमिल भूमि पर अनुदान मिलता है और अनुदानित दर पर नेटाफेम सिस्टम लगाती है. अगर 12.5 एकड़ से अधिक भूमि पर सिस्टम लगवाना हो तो उसके लिए ग्रुप बनाना होगा. कोई भी जरूरतमंद किसान जिला उद्यान पदाधिकारी से फॉर्म लेकर इसके लिए आवेदन कर सकता है. बिहार में सिस्टम लगवाने के लिए लैंड पोजीशन सर्टिफिकेट, बैंक एकाउंट की कॉपी व पहचान पत्र की कॉपी देना होता है. जबकि झारखंड में लेंड रिसिप्ट, बैंक एकाउंट की कॉपी व स्वयं के पहचान पत्र की कॉपी, साथ ही वंशावली का हलफनामा जमा करना होता है.

किसानों को वैज्ञानिक व तकनीकी मदद भी मिलती है
नेटाफेम किसानों को एग्रोनॉमी सपोर्ट यानी कृषि करने के वैज्ञानिक पक्ष को समझने में भी मदद देती है. जैसे, उर्वरक की मात्र का प्रयोग, खेती-सिंचाई करने का तरीका, सावधानियां आदि. कौन-सी फसल की खेती उन्हें अच्छा मुनाफा देगी, बीज कैसे लगायें और पानी का प्रबंधन कर कैसे श्रम, बिजली और पैसे तीनों चीजों की बचत कर सकते हैं. नेटाफेम के कृषि विशेषज्ञ कृषि से संबंधित किसी कार्यक्रम में भी आमंत्रित किये जाने पर जाते हैं और वहां किसानों को महत्वपूर्ण कृषि सलाह देते हैं. किसानों को सफल किसानों के खेत के भ्रमण के लिए भी कंपनी ले जाती है और अच्छा करने वाले किसानों को सम्मानित भी करती है.

कम पानी, ज्यादा पैदावार
नेटाफेम का इरीगेशन सिस्टम लगवा कर किसान परंपरागत पद्धति से एक एकड़ भूमि में जितने पानी से सिंचाई करते रहे हैं, उतने पानी से पांच एकड़ जमीन में सिंचाई कर सकते हैं. धान जैसे अधिक पानी लेने वाली फसल के विकल्पों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किये जाने की जरूरत है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, एक किलो चावल तैयार होने के लिए 300 लीटर पानी की जरूरत होती है. इस पद्धति के तहत पौधे की जड़ पर सीधे पानी दिया जाता है और खाद को अवशोषित करने के लिए खाद भी उसी जगह पर डाली जाती है, जिस कारण उसकी बर्बादी कम होती है. बहुफसली खेती करने के लिए भी किसानों को कंपनी के प्रतिनिधि प्रेरित करते हैं. कंपनी ने मिनी स्पिंरकलर सिस्टम को लेकर भी काम शुरू किय है. यह सिस्टम दलहन व तिलहन फसलों के लिए लगाया जाता है.


नर्सरी विकास का प्रशिक्षण

नेटाफेम कंपनी किसानों को नर्सरी विकास का भी प्रशिक्षण देती है. बाजार में हाइब्रीड बीज का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है और यह काफी महंगा भी होता है. इसलिए इसकी बर्बादी किसानों के लिए नुकसानदेह होती है. इसी परेशानी को समझते हुए कंपनी किसानों को ट्रे में बीज लगा कर उसका पौध तैयार करने का प्रशिक्षण देती है. किसानों को इसके लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है कि मिट्टी की बीमारी पौधों को नहीं लगे. मिट्टी से पौधों को निकालने में उसकी कोमल जड़ों को नुकसान पहुंचता है, जबकि ट्रे से निकालने पर उसकी जड़ों को नुकसान न्यूनतम होता है.

नेटाफेम से इरीगेशन सिस्टम लगवाने में प्रोजेक्ट लागत

आधा एकड़ 24,905 रुपये

एक एकड़ 45, 349 रुपये

एक हेक्टेयर 1.14 लाख रुपये

(नेटाफेम का इरीगेशन सिस्टम लगवाने के लिए चंदन साव से उनके नंबर – 9534097061 पर संपर्क करें.)

सफलता की कहानी
नेटाफेम की मदद से दूबराज बने सफल किसान
रांची के ओरमांझी के निकट दूबराज महतो ने छह एकड़ जमीन पर नेटाफेम की मदद से ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगवाया है. यह भूमि दूबराज की अपनी नहीं हैं. बल्कि उन्होंने इसे किराये पर ले रखा है. इसमें दो-ढाई एकड़ भूमि पहले टांड़ थी. दूबराज ने अपनी मेहनत से इसे खेती के लायक बनाया.ड्रिप इरीगेशन की व्यवस्था होने के बाद उन्होंने इस भूमि में टमाटर की खेती शुरू की. आज साल में डेढ़ से दो लाख रुपये वे टमाटर बेचकर शुद्ध मुनाफा कमाते हैं. उन्हें नेटाफेम के कृषि वैज्ञानिक ने खेती संबंधी सलाह भी दी. उन्हें बताया गया कि कौन-सी खाद कितनी मात्र में किस भूमि में देनी है. प्रति एकड़ भूमि पर उन्हें आठ टन जैविक खाद, 52 किलो नाइट्रोजन, 24 किलो फॉस्फोरस व अन्य पोषक तत्व देने के बारे में बताया गया. दूबराज नेटाफेम से काफी प्रभावित हैं. वे कहते हैं इसकी मदद से मेरी जिंदगी बदल गयी.

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