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प्रकृति के बीच प्रकृति सा जीवन

तेजी से पसर रहे इस आधुनिक युग के कई साइड-इफेक्ट्स हैं. छोटे रूप में यह हमारी जीवन शैली तथा बड़े रूप में पूरी दुनिया की पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) को प्रभावित कर रहे हैं. महाराष्ट्र के थाणो जिले में स्थित गोवर्धन इको विलेज (जीइवी) इसी समस्या से निबटने का एक सफल प्रयास है. पर्यावरण के अनुकूल तथा […]

तेजी से पसर रहे इस आधुनिक युग के कई साइड-इफेक्ट्स हैं. छोटे रूप में यह हमारी जीवन शैली तथा बड़े रूप में पूरी दुनिया की पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) को प्रभावित कर रहे हैं. महाराष्ट्र के थाणो जिले में स्थित गोवर्धन इको विलेज (जीइवी) इसी समस्या से निबटने का एक सफल प्रयास है.
पर्यावरण के अनुकूल तथा इसके साथ कदमताल करने वाला समुदाय आधारित एक मॉडल गांव. जीवन का एक संक्षिप्त, पुराना पर गूढ़ सिद्धांत है – सिंपल लिविंग एंड हाइ थिंकिंग (सादा जीवन, उच्च विचार). वैदिक काल में जीवन प्रकृति की सेवा पर आधारित था न कि इसके शोषण पर. यह लोगों के एक दूसरे तथा प्रकृति के साथ भी जीवन जीने का बुनियादी नियम व भाव था. इसी मौलिक सिद्धांत पर आधारित जीइवी की स्थापना वर्ष 2003 में की गयी थी. द जर्नी होम के लेखक तथा भक्ति वेदांता स्वामी प्रभुपदा के शिष्य राधानाथ स्वामी के निर्देशन में उनकी सोच के अनुसार. मुंबई से 108 किमी दूर ठाणो जिले में करीब 70 एकड़ में फैले इस विलेज को धरती की विविधा के संतुलित व स्थायी विकास वाले इको-कम्यूनिटी के रूप में पुरस्कृत भी किया गया है.
जीइवी वैदिक व आधुनिक तकनीक के साहचर्य वाले शोध आधारित तथ्यों के प्रयोग व इसके सफल क्रियान्वयन का एक जीता-जागता उदाहरण है. इसका उद्देश्य समुदाय आधारित जैविक खेती व गो पालन का विकास है, जो सामाजिक, शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व पर्यावरण के अनुकूल जीवन की सतत राह दिखाता है. गोवर्धन इको विलेज में आपको वैदिक व आधुनिक, दोनों प्रयोगों का मिला-जुला अनुभव होगा.
संजय
पूरी दुनिया में यह दौर ग्रीन गैस, पर्यावरण व प्रदूषण रहित जीवन जैसे मुद्दों पर चर्चा का है. तेजी से होता शहरीकरण तथा इसी रफ्तार से कम होती धरती की हरियाली पर चिंता अब सार्वजनिक हो रही है. रासायनिक खाद व कीटनाशकों पर आधारित हमारी खेती से उपजे अनाज पोषण के साथ-साथ हमें बीमारियां भी परोस रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) तथा यूनाइटेड नेशंस इनवायरमेंटल प्रोग्राम (यूएनइपी) की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल करीब 30 लाख कृषि मजदूर कीटनाशकों में मौजूद जहर से प्रभावित होते हैं. वहीं इनमें से करीब 18 हजार की हर वर्ष मौत हो जाती है. हमारे लिए यह सब चिंता का विषय तो है, पर ज्यादातर मामलों में यह चिंतन निठल्ला ही साबित हो रहा है.
दरअसल बेहतर पर्यावरण, बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर जीवन व स्वास्थ्यकर भोजन की कामना तो हम सब करते हैं, पर इसके लिए जरूरी उपाय, प्रयास व श्रम हम सबसे नहीं होता. पर कुछ लोग हैं, जिन्होंने अपने गैर मामूली प्रयासों से ऐसी जीवन शैली अपनायी है, जिसे देख-सुन कर किसी को भी ईष्र्या हो. प्रकृति के बीच प्रकृति जैसा तथा पर्यावरण के अनुकूल जीवन.
महाराष्ट्र में मुंबई से करीब 108 किमी दूर ठाणो जिले में बसा गोवर्धन इको विलेज एक ऐसा ही प्रयास है. जैविक खेती के साथ-साथ पशु व गो रक्षा, हरित भवन, जल संरक्षण तथा कचरा प्रबंधन के अलावा शिक्षा, ग्रामीण विकास व वैकल्पिक ऊर्जा से परिपूर्ण एक आदर्श विलेज (गांव). यह इको विलेज 70 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है. दो एकड़ में तो सिर्फ गोवर्धन नर्सरी है, जहां दिन का राजा से लेकर रात की रानी सहित दुर्लभ वनस्पतियों की कुल पांच सौ प्रजातियां मौजूद हैं. झाड़ी व झुरमुट वाली, रोएं वाली, घर के अंदर लगाये जाने वाले पौधे (इनडोर प्लांट्स), घास की प्रजाति व अन्य मौसमी वनस्पति.
गोवर्धन इको विलेज जैविक खेती व जैविक खाद्य पदार्थो व प्राकृतिक जीवन शैली के लिए जाना जाता है. जैविक खेती व नर्सरी, पशु रक्षा, हरित भवन, जल छाजन व संरक्षण, वैकल्पिक ऊर्जा, प्रकृति के साथ सहजीवन का पुनर्चक्र, बायोटेक्नोलॉजी, ग्रामीण सशक्तीकरण, ग्रामीण शिक्षा, पारंपरिक कला व शिल्प तथा गृह उद्योग के जैसे विभिन्न रूपों में विलेज के कार्य सराहनीय व अनुकरणीय हैं.
हरित भवन तकनीक
गोवर्धन इको विलेज में निर्माण के लिए साधारण ईंट की जगह कीचड़, सीमेंट व स्टोन डस्ट से बनी ईंट का इस्तेमाल होता है. यह पारंपरिक ईंट से ज्यादा मजबूत होती है तथा इसे आठ तरह के शेप (आकार) में बनाया जा सकता है.
दरअसल विलेज की किसी भी निर्माण में इसके लिए उपलब्ध संसाधनों का न्यूनतम इस्तेमाल, कचरे के रूप में न्यूनतम सामग्री इकट्ठा होने तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ने देने का उद्देश्य होता है. निर्माण कार्य शुरू करने के लिए कुछ मापदंड (गृहा नॉर्म्स) तय हैं. गृहा यानी ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटैट असेसमेंट. जैसे निर्माण स्थल के आसपास मौजूद पेड़-पौधों का संरक्षण, निर्माण के लिए उचित समय (बरसात के बाद से बरसात के पहले तक) का निर्धारण, विलेज के कुछ चयनित भूमि पर ही निर्माण करना, जमीन की ऊपरी परत का संरक्षण तथा कचरे की रीसाइक्लिंग.
निर्माण कार्य तभी नॉर्म्स के तहत माना जाता है जब इससे भूमि संरक्षित व महफूज रहे, जमीन की उर्वरता प्रभावित न हो, वायु प्रदूषण घटता हो, पानी की खपत कम हो, भवन के अंदर भी पानी की खपत कम की जाये, डिजाइन ऐसा हो जिससे पारंपरिक ऊर्जा की मांग कम हो, भवन में गैर पारंपरिक ऊर्जा का इस्तेमाल हो, सॉयल बायोटेक्नोलॉजी (एसबीटी) तकनीक के इस्तेमाल से निकासी जल का फिर से उपयोग हो सके, निर्माण से कचरा कम हो, इकोसिस्टम प्रभावित न हो, पहुंच पथ व पगडंडी कम बनानी पड़े, निर्माण मजदूरों के स्वास्थ्य की रक्षा हो तथा प्रदूषण कम हो, निर्माण सामग्री का कम से कम इस्तेमाल हो तथा भवन के अंदरूनी हिस्से में प्लास्टिक और मेटल की जगह लकड़ी और ऑर्गैनिक चीजों का प्रयोग हो.
निर्माण के दौरान वृक्षों को कपड़े से घेर दिया जाता है. कार्बन फुट प्रिंट कम करने के लिए 90 फीसदी निर्माण सामग्री का स्रोत आसपास ही रखा जाता है. निर्माण की इजाजत उन्हीं चिह्न्ति स्थलों पर दी जाती है, जिसके पास ईंट का निर्माण होता है. इससे परिवहन खर्च भी कम होता है. विलेज के सभी भवन भूकंप रोधी बनाये जाते हैं. विलेज में किसान आवास, ऑडीटोरियम, मीटिंग रूम, प्रशिक्षण सभागार, सामुदायिक व निजी मकान व योगशाला सहित सभी तरह के भवन हरित भवन तकनीक या गृहा नॉर्म्स के अनुसार बने हैं. इनकी लागत सामान्य भवनों से कम है.
वैकल्पिक ऊर्जा
विलेज में ऊर्जा की जरूरत गैर पारंपरिक (रिन्यूएबल) ऊर्जा स्रोत व इस पर आधारित तरीके से पूरी की जाती है. ठाणो जिले के ग्रामीण अंचल में बसे इस गांव तक बिजली पहुंचाना महंगा भी है. वहीं बिजली आ जाने पर भी इसका बड़ा खर्च उठाना होगा. इसका समाधान बायो गैस व सौर ऊर्जा से निकाला गया. बायोगैस संयंत्र में जैव इंधन की तरह उपयोग होने वाले गोबर से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड भी उत्सजिर्त नहीं होता. अपने 30 किमी की परिधि में स्कूली बच्चों के लिए विलेज नि:शुल्क मिड डे मील की भी व्यवस्था करता है.
करीब 80 हजार बच्चों को यहां से भोजन उपलब्ध कराया जाता है. मिड-डे मील की दो बड़ी रसोई से हर रोज करीब डेढ़ टन सब्जी व बचे खाने का वेस्ट (कचरा) निकलता है. इनका इस्तेमाल भी जैव इंधन के रूप में होता है. बायोगैस के ईंधन का इस्तेमाल जेनरेटर चलाने के लिए किया जाता है, जिससे बिजली बनती है. बायोगैस में इस्तेमाल के बाद जैव ईंधन का बचा घोल खेतों के लिए बेहतर जैविक खाद होता है. विलेज में खुली जगहों पर, जहां सूर्य की रोशनी सालों भर उपलब्ध रहती है, सोलर पैनल लगाये गये हैं. विलेज में लगा पैनल दिन में (सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक) 30 किलोवाट बिजली पैदा करता है.
वहीं रात में इस सिस्टम से आठ घंटे के लिए तीन किलोवाट बिजली मिलती है. पानी गरम करने के लिए भी विलेज में पांच सौ लीटर क्षमता वाला सोलर हीटर लगा है. उधर तेल पेराई, स्प्रिंक्लर इरिगेशन (पानी के छिड़काव से सिंचाई) व आटा चक्की के लिए बुल ड्रिवेन मोटर (बैल से चलने वाले मोटर) का इस्तेमाल होता है. यानी पर्यावरण तथा वातावरण को प्रभावित किये बिना एक आदर्श जीवन शैली का नमूना है गोवर्धन इको विलेज.
किसका कैसा निर्माण
फाउंडेशन : गाढ़े-मजबूत कीचड़ के साथ पीसीसी, कीचड़ के मसाले (गारा) के साथ बोल्डर तथा कंक्रीट के छोटे पोल (टाई बीम की तरह) से. दीवार : खदान (क्रशर) से निकला डस्ट, चूना व सीमेंट से.
खिड़की-दरवाजा : रिसाइकल की गयी लकड़ी. प्लास्टर : सीमेंट प्लास्टर (बाथरूम में) तथा शेष फर्श गारे से. छत : मिट्टी के टाइल्स के साथ आर्क पैनल, लोहा व मैंगलोर टाइल्स से.
[गारा या मसाले (मोर्टार) में सीमेंट, कीचड़ व स्टोन डस्ट क्रमश: एक, एक व चार के अनुपात में होता है]
कचरा प्रबंधन
गांव-समाज के एकीकृत विकास वाले मॉडल गोवर्धन इको विलेज में कचरे का बेहतर प्रबंधन व रिसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) की जाती है. यानी किसी चीज का आउटपुट दूसरे के लिए इनपुट का काम करता है. इससे करीब 99 फीसदी कचरे का प्रबंधन इकोलॉजी के अनुकूल हो जाता है.
विलेज में पशुओं के गोबर सहित रसोई घर का वेस्ट बायोगैस संयंत्र में इस्तेमाल होता है. इससे निकली मिथेन गैस का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए होता है. मानव उपभोग से निकले कचरे का ट्रीटमेंट बायोटेक्नोलॉजी प्लांट में होता है.
निर्माण कार्यो से निकला कचरा जैसे सीमेंट का टूटा पोल व टूटी ईंट खेती के लिए ऊंचा फार्म बेड बनाने में काम आते हैं. उसी तरह कार्ड बोर्ड व कपड़े खेत में डीकंपोज (अपघटित) कर दिये जाते हैं. प्लास्टिक के थैले व सीमेंट के थैले कीचड़, खाद व खाद्य कचरा इन्हें खाद में तब्दील करने के लिए स्टोर करने के काम आते हैं. इनमें बढ़ते पौधे भी रखे जाते हैं. विलेज में लकड़ी से निकले डस्ट (लकड़ी की कुंदी) से अगरबत्ती तथा रसायन मुक्त मच्छर भगाने वाले रिपेलेंट्स बनते हैं.
गंदे पानी की सफाई
विलेज में कोई सिविल ड्रेनेज सिस्टम नहीं है इसलिए यहां सिवेज (गंदा पानी) की सफाई का प्लांट लगाया गया है. गंदा पानी एक टैंक [सॉयल बायो टेक्नोलॉजी (एसबीटी) कलेक्शन टैंक] में इकट्ठा होता है. इसको आइआइटी, मुंबई के बिप्लब पटनायक ने डिजाइन व डेवलप किया है. बगैर ज्यादा शोर किये चलने वाला यह संयंत्र पानी की सफाई सामान्य व जैविकी (बायोलॉजिकल) प्रक्रिया से करता है.
अभी यहां हर रोज 30 हजार लीटर गंदे पानी की सफाई हो रही है. सफाई के बाद पानी गंध रहित व साफ होता है, जिसका इस्तेमाल विलेज की नर्सरी, खेत व अन्य कार्यो में होता है. मछली पालन के लिए भी यह पानी अनुकूल है. नर्सरी से निकले फूल-पत्तों से विलेज को हर साल डेढ़ लाख रुपये की आय होती है. वहीं गंदे पानी की बेहतर निकासी, संग्रहण व सफाई से विलेज में मच्छरों को पनपने का मौका नहीं मिलता.
जल संरक्षण व संवर्धन
गोवर्धन इको विलेज में बढ़ती आबादी व पर्यटकों की संख्या में वृद्धि के कारण पानी की जरूरत प्रतिदिन करीब एक लाख लीटर हो गयी है. पहले पानी की जरूरत पास के वैतरणा नदी व भूगर्भ जल से पूरी की जाती थी. पर समय के साथ यह व्यवस्था नाकाफी लगने लगी. इसके बाद सतही जल छाजन, भूगर्भ जल स्तर की वृद्धि व पानी निकासी के उपयुक्त स्थल के लिए एक सर्वे किया गया.
इसमें विलेज की हाइड्रोलॉजिकल मैपिंग की गयी. भूगर्भ जल स्तर की जांच हुई तथा एक्विफर (जमीन के अंदर की चट्टानी दरार, जिसमें पानी होता है) की पहचान के लिए पंपिंग टेस्ट किये गये. इसकी रिपोर्ट के आधार पर पानी निकासी निचले इलाके में की जाने लगी, जहां कोई तालाब या नलकूप बनाना संभव था. सर्वे के आधार पर ही विलेज में करीब एक करोड़ लीटर पानी क्षमता वाला एक तालाब हाल ही में खोदा गया है.
इससे वर्तमान में विलेज की जरूरत पूरी हो रही है. वहीं मॉनसून तक तालाब में क्षमता भर पानी उपलब्ध हो जायेगा. चुकी पानी खेती व इससे जुड़ी अन्य गतिविधियों में अहम भूमिका अदा करता है. इसलिए विलेज में पानी की स्थायी उपलब्धता के लिए जल छाजन के तरीके अपनाये गये हैं. भूगर्भ जल स्तर में वृद्धि के लिए बरसात का पानी इकट्ठा किया जाता है. नये बने तालाब के चारों ओर हरियाली बढ़ रही है. खेती सहित अन्य जरूरत तालाब के पानी से पूरी हो रही है. भूगर्भ जल स्तर में भी वृद्धि हो रही है. इस पूरे प्रयास व इसकी सफलता के लिए गोवर्धन इको विलेज को स्कॉच अवार्ड मिला है.
गोवर्धन इको विलेज के सफल प्रयोग
गो व पशु रक्षा
गोवर्धन इको विलेज में गो रक्षा का मतलब गायों को सिर्फ वधशाला से बचाना नहीं, बल्कि उन्हें विशेष आदर व प्यार देना है, जिसकी वे हकदार हैं. यह उस सामाजिक-आर्थिक उपहार के प्रति आभार जताना भी है, जो गायों ने मानव समुदाय को दिया है. यह आम धारणा है कि गाय हमें सिर्फ दूध देती है.
दरअसल गो-पालन के कई फायदे हैं. ये मनुष्य का जीवन आसान बनाते हैं तथा इनसे हमारी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक व पर्यावरण की जरूरतें पूरी होती हैं. गोवर्धन इको विलेज में 65 गायें व कुछ सांढ़ की एक गोशाला है. इनसे दूध के अलावा गोबर व गो-मूत्र की प्राप्ति होती है. विलेज में गोबर व गो-मूत्र से कई औषधीय व प्रसाधन (कॉस्मेटिक्स) उत्पाद बनते हैं.
इनमें दिमागी तनाव, त्वचा रोग, उच्च रक्तचाप व लीवर की समस्या की दवा गोमूत्र घनवती, टूथ पाउडर, नहाने का साबुन अंगराग, अगरबत्ती, मच्छर भगाने वाला गोबर का केक, गैस्ट्रिक, अनपच व एसिडिटी में काम आने वाली दवा पंचामृत व बाम शामिल हैं. वहीं गोबर का इस्तेमाल बायो गैस में होता है तथा बायोगैस संयंत्र से निकले गोबर घोल (स्लरी) का इस्तेमाल जैविक खाद के रूप में प्रयोग में लाया जाता है. गोबर में बैक्टीरिया रोधी गुण होते हैं. विलेज में इनका इस्तेमाल चूने में मिला कर दीवारों की पुताई के लिए भी होता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल एंड सेज कॉलेज, ट्रॉय न्यूयार्क में हुए शोध से यह पता चला है कि गोबर में दिमाग को तरोताजा व जागृत करने वाला एक बैक्टीरियल एजेंट (माइक्रोबैक्टेरियम वैके) होता है. उधर बैल व सांढ़ का प्रयोग खेतों की जुताई, तेल पेराई व आटा मिल सहित सिंचाई के लिए पंप चलाने में होता है. इनके इस्तेमाल से ट्रैक्टर व महंगे ईंधन (पेट्रोल-डीजल) की बचत होती है.
जैविक खेती क्यों? क्योंकि इससे जहरीले कीटनाशक व खाद से मुक्त खाद्य उपलब्ध होता है. क्योंकि जैविक खेती से ग्रीन हाउस गैस का निर्माण बहुत कम होता है. इससे स्थानीय वनस्पतियों को नुकसान नहीं होता. यह मधुमक्खियों, पक्षियों व तितलियों सहित वन्यजीवन की भी रक्षा करता है. वहीं जैविक खेती से भूमि व मिट्टी संरक्षण भी होता है. यह भी प्रमाणित तथ्य है कि रासायनिक खाद वाली खेती न सिर्फ मिट्टी को जहरीली बना रही है, बल्कि इससे इसकी उर्वराशक्ति भी धीरे-धीरे क्षीण हो रही है.
यह देखा गया है कि पुन: भरपूर उर्वराशक्ति पाने के लिए खेती योग्य जमीन को कुछ वर्षो तक परती (खाली) छोड़ना पड़ता है.दरअसल पेड़-पौधे द्वारा रासायनिक खाद का शोषण सीधे कर लेने से मिट्टी का पोषण नहीं हो पाता. दूसरी ओर रसायन भू-गर्भ जल को भी प्रदूषित कर रहा है.
जैविक खेती इस पूरी समस्या का समाधान है. जैविक खेती ही जीइवी की गतिविधि के केंद्र में है. दूसरी गतिविधियां इसी के इर्द-गिर्द संचालित होती है. जैविक खेती मूल रूप से ऐसी पद्धति है, जिससे पर्यावरण व खेती में लगे लोगों को कोई नुकसान नहीं होता. इस पद्धति में जैविक पदार्थ जैसे जीवित या मृत पौधे, खर-पतवार तथा पशुओं के मल-मूत्र से मिट्टी की जरूरत पूरी की जाती है.
इससे मिट्टी को प्राकृतिक रूप से बैक्टीरिया, फंगस व अन्य माइक्रोऑर्गनिज्म (सूक्ष्म जीव) मिल जाते हैं. गोवर्धन इको विलेज में बायोगैस में इस्तेमाल गोबर संयंत्र से निकलने के बाद खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है. खेती के लिए यह सर्वोत्तम खाद है. इससे पेड़-पौधों को सभी प्राकृतिक गैस मिल जाती है, वहीं मिथेन जैसे ग्रीनहाउस गैस से पर्यावरण का बचाव भी हो जाता है. जैविक खाद से मिट्टी में आद्र्रता भी बनी रहती है.
जैविक कीटनाशक : अध्ययन बताता है कि पिछले 50 साल में खेती में कीटनाशकों का इस्तेमाल लगभग 10 गुना बढ़ा है. पर कीट से होने वाला फसल का नुकसान भी दो गुना हो गया है. इसका समाधान प्राकृतिक कीटनाशकों वाले इकोफ्रेंडली खेती में ही है. जीइवी में गो-मूत्र, नीम तेल व नीम के पत्ते का सत्व (एक्सट्रैक्ट) तथा मिर्च-लहसुन के सत्व सहित कई अन्य जैविक कीटनाशकों का ही प्रयोग होता है.
दसापर्णी हर जगह सुलभ 10 विभिन्न पेड़-पौधों के पत्ते के सत्व से बना एक सर्वोत्तम कीटनाशक है, जो बेहतर परिणाम देता है. इसमें नीम, अरंडी, शरीफा व पपीते के पत्ते आदि को पानी में मिला दिया जाता है. इस मिश्रण को करीब महीने भर किण्वन (फर्मेटेशन) के लिए छोड़ देने के बाद पानी को छान कर इसका इस्तेमाल छिड़काव के लिए होता है. यह मिश्रण पत्तों पर मौजूद सभी तरह के कीड़ों तथा वायरल इंफेक्शन में कारगर है.
धान सहित कुछ अन्य पौधों पर लगने वाले कीड़ों व इसके लारवा के लिए एक दूसरी विधि भी कारगर है. इसे रोप मेथड (रस्सी वाला तरीका) कहते हैं. इसमें एक रस्सी को दो लोग खेत के दोनों छोर पर पकड़ते हैं.
फिर इसे पौधों की ऊंचाई तक ला कर खेत की लंबाई में दौड़ते हैं. रस्सी से टकरा कर कीड़े व लार्वा नीचे पानी भरे खेत में गिर कर मर जाते हैं. गोवर्धन इको विलेज में कीड़े मारने के लिए लसलसे ट्रैप (फंदे) का भी इस्तेमाल होता है. उड़ते कीड़े इस पर चिपक जाते हैं.
धान की खेती : जीइवी में धान की खेती के लिए बिचड़ा एक स्थायी बने विशेष बेड (खेत के छोटे तैयार टुकड़े) में लगाया जाता है. जमीन से ऊंचा यह बेड 4×80 फीट का होता है. सबसे पहले मिट्टी की ऊपरी परत हटा दी जाती है.
फिर इस पर बायोगैस के इस्तेमाल के बाद बचा गोबर का घोल, ड्राइ बायो मास (सूखा जैव ईंधन) व ग्रीन बायो मास की परत दर परत डाली जाती है. इसके बाद एक-दो इंच तक मिट्टी की ऊपरी परत डाल दी जाती है. इस बेड को आद्र्र (गीला) रखा जाता है.
इससे मिट्टी में जैविक सड़न होती है. मिट्टी को गीला करने के लिए स्प्रिंक्लर सिस्टम (पानी की छिड़काव पद्धति) का उपयोग होता है. इस बेड की विशेषता यह होती है कि इस पर अंकुरन के लिए वायु का बेहतर संचार होता है. सब्जी व फलों के लिए बढ़िया तापमान मिलता है. बरसात के दिनों में बेड पर पानी नहीं ठहरता.
इससे पौधों के सड़ने की संभावना नहीं रहती. सब्जियों व फलों की खेती के लिए भी विलेज में ऐसे बेड का ही इस्तेमाल होता है. फर्क सिर्फ यह होता है कि सब्जियों व फलों के पौधे स्थायी तौर पर बेड पर ही लगाये जाते हैं. धान के बिचड़े की तरह इन्हें अन्यत्र नहीं लगाया जाता.
धान की अच्छी पैदावार : इस बेड पर अच्छी पैदावार वाले स्वस्थ बिचड़े तैयार होते हैं. अंकुरन के आठ दिन बाद बिचड़ों पर सात से 10 दिन पुराना गो मूत्र का छिड़काव किया जाता है. इससे पहले मूत्र में तीन से चार फीसदी पानी मिला दिया जाता है. गो-मूत्र का दूसरा छिड़काव 16 दिन के बाद होता है. यह विधि बिचड़े की वृद्धि व कीटनाशक में सहायक है.
धान के पौधों को खेत में लगाने के लिए भी रोप मेथड अपनाया जाता है. इसमें रस्सी को एक सीध में रख कर पौधे का रोपण किया जाता है. फिर रस्सी को एक निश्चित स्थान छोड़ कर अगली पंक्ति में रख कर धान का पौधा रोपा जाता है. जीइवी में 54 प्रकार के धान की खेती होती है. इनमें से तीन औषधीय गुण वाली प्रजातियां हैं. महदी से हड्डियों में फ्रैक्चर की तेज रिकवरी होती है. राजगुड़िया शारीरिक कमजोरी में लाभकारी है. वहीं गोविंद भोग सुगंधित चावल की वेरायटी है, जो विटामिन व हीमोग्लोबिन का बढ़िया स्रोत है.
एकीकृत विकास का मॉडल
गोवर्धन इको विलेज की जीवनशैली ईश्वर प्रदत्त प्रकृति के साथ इसका आदर करने वाली तो है ही, यह मनुष्य के एकीकृत विकास का भी एक बढ़िया मॉडल है. वर्ष 2003 में स्थापित इस विलेज में ग्रामीण सशक्तीकरण का काम वर्ष 2009 में आसपास के छह गांवों के कुल पांच सौ जनजातीय परिवारों के बीच शुरू किया गया था.
इन्हें जैविक खेती, खेती के लिए सर्वोत्तम बीज व जल संसाधन के विकास संबंधी प्रशिक्षण दिये जाते हैं. भूमिहीनों के लिए स्वरोजगार की व्यवस्था की जाती है. अखबारी कागज से थैला बनाना, समूह में सब्जियां लगाना तथा इसे स्थानीय बाजार में बेचने संबंधी प्रशिक्षण भी दिये जाते हैं. इस प्रयास से ग्रामीणों का जीवन स्तर ऊंचा हो रहा है.
गांव छोड़ रहे लोगों के मनोबल में वृद्धि होने से वे वापस गांव लौट रहे हैं. महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बना कर इनके बीच आय वृद्धि व प्रशिक्षण की गतिविधियां भी चलायी जा रही हैं. विलेज अपने लोगों के सशक्तीकरण, बच्चों की शिक्षा व व्यावसायिक शिक्षा सहित हस्त शिल्प के लिए कौशल विकास का भी काम करता है. यही नहीं, अपने कार्य अनुभव के आधार पर किसानों व मेहमानों के लिए समूह में प्रशिक्षण कार्यक्रम भी यहां आयोजित किये जाते हैं.
विलेज प्रबंधन गरीब व अनाथ बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय गुरुकुल का संचालन करता है. बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए पहले अन्यत्र चल रहे इस स्कूल को मनोरम दृश्य तथा बेहतर व स्वस्थकर वातावरण वाले विलेज में वर्ष 2005 में स्थानांतरित कर दिया गया. गुरुकुल में शिक्षा बहुआयामी होती है.
किताबी ज्ञान के साथ व्यावहारिक ज्ञान वाली. खेलकूद, तैराकी, व्यायाम तथा देशज कला-संस्कृति को भी उतना ही महत्व दिया जाता है. बच्चों को आध्यात्मिक यात्रएं भी करायी जाती हैं.
अन्य गतिविधि
रसायन मुक्त खेती पर शोध, चावल व सब्जियों की विभिन्न प्रजातियों का बीज कोष (सीड बैंक) का गठन तथा चावल की दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण.
दुनिया भर से आते हैं अतिथि
गोवर्धन इको विलेज में देश व दुनिया भर से अतिथि आते हैं. इस असाधारण गांव में घूमने, देखने व सीखने के लिए. युवाओं को हरियाली व जैविक जीवन शैली के प्रति प्रेरित करने के लिए विलेज ने कई शैक्षणिक संस्थानों के साथ समझौता किया है. युवा विद्यार्थी व विलेज प्रबंधन हरियाली व जैविक मुद्दों पर संयुक्त रूप से शोध भी करते हैं. गत एक वर्ष के दौरान विलेज में अब तक करीब 16 हजार विद्यार्थियों ने भ्रमण (इको टूर) किया है. यहां के सभागार में कचरा प्रबंधन, जीवन चक्र के मूल्यांकन व जल संरक्षण जैसे विकास के सतत मॉडल जैसे विषयों पर कार्यशाला व कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है.
गतिविधि
मेहमानों के लिए विलेज में इको मेला, गौ की देखभाल (काउ केयर), पेंटिंग, रोमांचक खेल, पर्वतारोहण तथा कीर्तन-भजन जैसे कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. बाल विकास व योग सहित जीवन शैली पर आधारित कुछ पुस्तकों का प्रकाशन भी विलेज ने किया है.
मिले हैं कई पुरस्कार
गोवर्धन इको विलेज को उसके प्रयास व उपलब्धि के लिए कई पुरस्कार व सम्मान मिले हैं. इनमें एशियन सस्टेनेब्लिटी लीडरशिप अवार्ड, बेस्ट ओवरऑल सस्टेनेबल परफॉर्मेस, रेनेसां अवार्ड, स्कॉच प्लैटिनम अवार्ड एंड ऑर्डर ऑफ मेरिट जैसे पुरस्कार शामिल हैं.

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