22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

‘कुजात गांधी’ का स्वप्न-शेष

राममनोहर लोहिया ने तीन तरह के गांधीवादियों में अंतर किया था. पहले ‘सरकारी गांधीवादी’, जो गांधी की माला जपकर सरकारी माल-मलाई खाने में जुट गये थे. दूसरे वे ‘मठाधीश गांधी’, जिन्होंने गांधी के विचारों को ज्यादा ईमानदारी से अपनाया, उनके आश्रम बनाये, लेकिन गांधी की विरासत को दंतहीन बना दिया, गांधी को महज एक संत […]

राममनोहर लोहिया ने तीन तरह के गांधीवादियों में अंतर किया था. पहले ‘सरकारी गांधीवादी’, जो गांधी की माला जपकर सरकारी माल-मलाई खाने में जुट गये थे. दूसरे वे ‘मठाधीश गांधी’, जिन्होंने गांधी के विचारों को ज्यादा ईमानदारी से अपनाया, उनके आश्रम बनाये, लेकिन गांधी की विरासत को दंतहीन बना दिया, गांधी को महज एक संत तक सीमित कर दिया. तीसरे ‘कुजात-गांधीवादी’ की श्रेणी में लोहिया खुद अपने आप को रखते थे. ये गांधी के सच्चे अनुयायी थे, जिन्हें गांधीवादियों के कुनबे ने बहिष्कृत कर दिया था.

योगेंद्र यादव

30 जनवरी को शहीद पार्क में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की मूर्ति के सामने खड़ा मैं शहीदों की विरासत के बारे में सोच रहा था. शहीदों की स्मृति अंगारे जैसी होती है जो सुलगती है, सुलगाती भी है. वक्त के साथ इन अंगारों पर राख की परतें जमती जाती हैं. फिर ऐसा वक्त आता है कि ये अंगारे निरापद हो जाते हैं. ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाते हैं, और अंतत: किसी नेता की जेब में फिट हो जाते हैं.

गांधी जी की स्मृति के साथ भी यही हुआ है. आज बापू का चेहरा करेंसी नोट पर है. अंगरेजों के जमाने में जो स्थान मॉल रोड का था, वो स्थान आज महात्मा गांधी रोड ने ले लिया है. हर सरकारी दफ्तर में गांधी जी की तसवीर तले ना जाने कितनी काली करतूतें होती रहती हैं. अब गांधी जी की ऐनक सरकार के स्वछता अभियान की शोभा बढ़ा रही है.

30 जनवरी 1948 को गोडसे ने गांधी जी के शरीर को खत्म कर दिया. लेकिन उससे वो नहीं हुआ जो गोडसे चाहता था. उलटे गांधी की आत्मा पूरे देश में रच-बस गयी. अचानक देश भर में होने वाले हिंदू-मुसलिम दंगे थम गये. कांग्रेस पार्टी और सरकार तो गांधी जी की माला जपती ही थी, कम्युनिस्टों और समाजवादियों जैसे आलोचकों पर भी गांधी विचार की अमिट छाप पड़ी.

आज गांधी का सगुण रूप सर्वव्यापी है. लेकिन उनकी आत्मा पर लगातार हमले हो रहे हैं. आज सर्व-धर्म समभाव की जगह जिसकी लाठी उसकी भैंस की बात चल रही है. ऐसी ऐसी चीजें, जिससे गांधी जैसे सनातनी हिंदू वैष्णव-जन की सनातनी परंपरा को हिंदुत्व के नाम पर तीर-तलवार पकड़ाये जा रहे हैं. दरिद्र-नारायण के आंख से आंसू पोंछने के बजाय आज के राजधर्म का मतलब चंचला लक्ष्मी की पूजा हो गया है. स्वराज की जगह आज हम खानदानीराज और तानाशाही की ओर बढ़ रहे हैं. कांग्रेस राज ने गांधी जी की आत्मा को दीमक की तरह चाट कर खोखला बना दिया था. अब उसपर अंतिम हमला बोलने की तैयारी चल रही है. यह हमला नाथूराम गोडसे की गोलियों से ज्यादा खतरनाक है.

ऐसे में गांधी की आत्मा को बचाने वालों का धर्म क्या होना चाहिए? सबसे पहले तो वे गांधी की पूजा-अर्चना बंद कर दें. आज के युवाओं को ऐसे तौर-तरीकों के प्रति अरु चि होती है. गांधी की छवि को बेचारगी और बेबसी में सीमित करने की कोशिश के कारण ही आज कुछ लोगों के लिए मजबूरी का नाम महात्मा गांधी हो गया है. गांधी के स्थूल प्रतीक, गांधी के नाम को निरापद बना दिया गया.

अगर गांधी समर्थक उनकी पूजा-अर्चना बंद कर देंगे तो उनकी नाहक और अनर्गल निंदा भी बंद हो जायेगी. पिछले कई दशकों में सगुण गांधी की सर्वव्यापकता से चिढ़कर वामपंथियों और अम्बेडकरवादियों ने गांधी जी पर तमाम तरह के आरोप लगाये. शायद सगुण गांधी के गुब्बारे को पंक्चर करना जरूरी भी था. लेकिन उसके चलते गांधी जी के खिलाफ तमाम तरह के दुष्प्रचार भी हुए. अगर पूजा-अर्चना बंद होगी तो दुष्प्रचार भी बंद होगा.

जो गांधी की विरासत को बचाना चाहते हैं उन्हें सगुण गांधी की बजाय निर्गुण गांधी की ओर मुड़ना होगा. मोहनदास करमचंद गांधी की आलोचना का साहस उठाना पड़ेगा, ताकि गांधी जी की आत्मा को बचाया जा सके. मोहनदास करमचंद गांधी वर्ण-व्यवस्था का समर्थन और छुआ-छूत के विरोध के बीच सामंजस्य नहीं बैठा पाये. इसलिए नयी पीढ़ी का दलित युवा ‘हरिजन’ शब्द सुनकर चिढ़ता है, गांधी से गुस्सा करता है. गांधी जी दरिद्र-नारायण को दरिद्रतम बनाये रखने वाली पूंजीवादी व्यवस्था की पूरी समझ नहीं बना पाये. गांधी के पास आधुनिक सभ्यता के विकल्प का सपना देखने का दुस्साहस तो था, लेकिन उस विकल्प का नक्शा नहीं था. अर्ध-नारीश्वर जैसे होने के बावजूद, गांधी नारी की व्यथा और आकांक्षाओं को समझ नहीं पाये. ऐसी आलोचनाओं को स्वीकार करके ही गांधी की विरासत को बचाया जा सकता है.

राममनोहर लोहिया ने तीन तरह के गांधीवादियों में अंतर किया था. पहले ‘सरकारी गांधीवादी’, जो गांधी की माला जपकर सरकारी माल-मलाई खाने में जुट गये थे. दूसरे वे ‘मठाधीश गांधी’, जिन्होंने गांधी के विचारों को ज्यादा ईमानदारी से अपनाया, उनके आश्रम बनाये, लेकिन गांधी की विरासत को दंतहीन बना दिया, गांधी को महज एक संत तक सीमित कर दिया. तीसरे ‘कुजात-गांधीवादी’ की श्रेणी में लोहिया खुद अपने आप को रखते थे. ये गांधी के सच्चे अनुयायी थे, जिन्हें गांधीवादियों के कुनबे ने बहिष्कृत कर दिया था.

आज गांधी की आत्मा को बचाने के लिए कुजात गांधीवादियों की इस परंपरा से जुड़ना होगा. गांधी को महज एक संत या दार्शनिक की जगह राजनेता के रूप में स्थापित करना होगा. अन्याय के विरु द्ध संघर्ष करने वाले गांधी को याद करना होगा. सांप्रदायिकता और उधार के सेक्युलिरज्म की जगह सर्व-धर्म समभाव की हमारी परंपराओं को स्थापित करना होगा. केंद्रीकृत सत्ता की जगह सत्ता को ग्राम-सभा और मोहल्ला-सभा तक ले जाने की तैयारी करनी होगी. विकास के नाम पर विनाश को रोकना होगा. विकास के ऐसे न्यायसंगत मॉडल तलाश करने होंगे, जहां प्रकृति के साथ संतुलन बनाया जा सके.

हाड़-मांस का मोहनदास करमचंद गांधी बीसवीं सदी में चल बसा था. इक्कीसवीं सदी में गांधी-विचार को बनाये रखने के लिए हमें गांधी के निर्गुण स्वरूप की रक्षा करनी होगी. उसके नये प्रतीक गढ़ने होंगे, गांधी जी के सपनों को सच करने के नये नक्शे गढ़ने होंगे. तभी गांधी-रूपी यह अंगारा सत्ताधीशों की जेब में छेद करके बाहर निकलेगा. तभी हमें भविष्य का रास्ता दिखेगा. भला हो गोडसे की मूर्ति लगाने वालों का जिनके बहाने इस अंगारे पर जमी राख हटाने का मौका तो मिला.

(लेखक आम आदमी पार्टी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता और पार्टी के राजनीतिक परामर्श परिषद के सदस्य हैं . फिलहाल विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) से छुट्टी पर हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें