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नये उद्यमों के लांचपैड

तमाम तरह की प्रतिस्पर्धा के बावजूद एक जैसे धंधे वाले लोग प्राय: एकसाथ ही रहना पसंद करते हैं. यही वजह है कि गांवों में मिट्टी के बरतन बनानेवालों, बांस के सामान बनानेवालों के घर और दुकानें एक साथ रहती हैं. शहरों में भी बरतन, किताब और कपड़ों की दुकानों की अलग-अलग गलियां मिल जाती हैं. […]

तमाम तरह की प्रतिस्पर्धा के बावजूद एक जैसे धंधे वाले लोग प्राय: एकसाथ ही रहना पसंद करते हैं. यही वजह है कि गांवों में मिट्टी के बरतन बनानेवालों, बांस के सामान बनानेवालों के घर और दुकानें एक साथ रहती हैं. शहरों में भी बरतन, किताब और कपड़ों की दुकानों की अलग-अलग गलियां मिल जाती हैं. इसी तरह, नव-उद्यमों के लिए देश के कुछ नये विकसित हो रहे इलाके उर्वर जमीन साबित हो रहे हैं, जहां बेहतर आधारभूत संरचनाओं और संसाधनों की उपलब्धता है.

सेंट्रल डेस्क

महाराष्ट्र में मुंबई से सटा पवई, कर्नाटक में बेंगलुरु से सटा कोरमंगला और देश की राजधानी दिल्ली से सटा ओखला, देश में नव-उद्यमों (स्टार्टअप) के नये केंद्र बन रहे हैं. अपेक्षाकृत सस्ती जमीन, आसपास इंजीनियरिंग कॉलेजों की मौजूदगी, बड़े शहरों तक आसान पहुंच और नेटवर्किग के लिए होटल और रेस्तरां जैसी सुविधाएं इन जगहों पर नये कारोबार के फलने-फूलने के लिए पुख्ता जमीन तैयार करती हैं.

दिल्ली में स्नैपडील, बेंगलुरु में फ्लिपकार्ट व मुंबई में टॉपर जैसे नव-उद्यमों की सफलता से उत्साहित और प्रेरित, इंजीनियरिंग कॉलेजों से निकले युवा इन्हीं की तर्ज पर अपना खुद का नया उद्यम शुरू करना चाहते हैं. यही वजह है कि इन शहरों के आसपास के इलाकों में नव-उद्यमों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. बेहतर आधारभूत संरचनाओं का विकास और पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धता ने कभी वीरान रहे इन क्षेत्रों को युवाओं की चहल-पहल का नया अड्डा बना दिया है, जहां न सिर्फ वे अपना कैरियर संवार रहे हैं, बल्कि देश की तरक्की में अपना योगदान भी दे रहे हैं.

बात करें मुंबई के बाहरी इलाके पवई की, तो यहां ‘क्रिस्पी गेम्स’ जैसे गेमिंग स्टार्टअप, ‘प्राइस बाबा’ जैसे प्रोडक्ट सर्च इंजिन और ‘नेक्सगियर’ जैसे हार्डवेयर बनानेवाले उद्यमों का बोलबाला है. इसके अलावा, ‘ओपनटेबल’, ‘विज रॉकेट’, ‘इंस्टामोजो’, ‘थिंकलैब्स’, ‘बेलिटा’, ‘पर्पल स्क्विरेल’, ‘टाइनी आउल’, ‘ऐनेलेक’, ‘मोफस्र्ट’ जैसे नव-उद्यम तेजी से अपनी जड़ें जमा रहे हैं. यहां गौर करनेवाली बात यह है कि पवई को नव-उद्यमों का लांचपैड बनाने में आइआइटी बॉम्बे का बड़ा योगदान है. उपरोक्त उद्यमों को शुरू करनेवाले अधिकतर युवा यहीं से निकले छात्र हैं. इस क्षेत्र के जानकारों का मानना है कि पवई में लगभग सौ नव-उद्यम फल-फूल रहे हैं. और इस जगह को ‘पवई वैली’ के नाम से जाना जाने लगा है. यही नहीं, अपने छात्रों में उद्यमिता की कला विकसित करने के उद्देश्य से आइआइटी बॉम्बे ‘साइन’ के नाम से एक कार्यक्रम भी चलाता है जिसकी मदद से ‘थिंकलैब्स’, ‘वेबारू’ और ‘सेडेमैक’ जैसे नये उद्यमों ने अपनी पहचान बढ़ायी है.

बेंगलुरु से सटे कोरमंगला में भी ‘हैकरअर्थ’, ‘फ्यूजनचार्ट्स’, ‘वकील सर्च’, ‘अल्मा मेटर’ जैसे नव-उद्यम फल-फूल रहे हैं. यहां बहुतायत में मौजूद रेस्तरां, कॉफी शॉप, बार और पब में नव-उद्यमियों का इतना ज्यादा काम हो जाता है, जितना उनके ऑफिस में नहीं हो पाता.

दिन हो या रात, यहां की कॉफी की दुकानें हर समय युवा उद्यमियों से भरी होती हैं जो कॉफी की चुस्की लेते हुए लैपटॉप खोले या तो अपना काम कर रहे होते हैं या अपने बिजनेस पार्टनर के साथ अपने काम और उसकी फीस की चर्चा करते नजर आते हैं. इन जगहों पर उन्हें बिजनेस पार्टनर भी मिल जाते हैं और कई बार तो निवेशक भी. यहां बेंगलुरु के अलावा कर्नाटक के अन्य जिलों के इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़नेवाले या पासआउट युवा नये काम की तलाश में भी पहुंचते हैं. इसके साथ ही अगर किसी नव-उद्यम को अपने काम से जुड़ी किसी सेवा की जरूरत पड़ी तो वह भी उसे आसपास में ही मिल जाती है. इसके अलावा, एचएसआर लेआउट, जयनगर, जेपी नगर और इंदिरानगर जैसे बेंगलुरु के ही अगल-बगल के क्षेत्र भी स्टार्टअप विलेज के रूप में खासा नाम कमा रहे हैं.

देश की राजधानी दिल्ली से जुड़े ओखला में कई नव-उद्यम चल रहे हैं. कई तो अपने-अपने क्षेत्रों में जाना-माना नाम भी बन चुके हैं. ‘लेंसकार्ट’, ‘यूनिकॉमर्स’, ‘मेरिटनेशन’, ‘अकोशा’, ‘मैपमायइंडिया’ जैसे नव-उद्यमों ने तेजी से पहचान पायी है. एशिया के सबसे बड़े आइटी हार्डवेयर बिक्री केंद्र नेहरू प्लेस से निकटता, आसपास टेक्सटाइल और रेडीमेड गारमेंट्स के कारखानों की मौजूदगी, इन नव-उद्यमों के पनपने के लिए खाद-पानी का काम करती है. साथ ही, दिल्ली के सभी हिस्सों से मेट्रो के जरिये इसका जुड़ाव और जरूरी आधारभूत संरचनाओं की उपलब्धता भी ऐसे कारक हैं जिनके बलबूते ओखला के नव-उद्यम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं.

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