– सतीश जायसवाल –
डुमरी : डुमरी प्रखंड का आदिवासी बहुल बिराजपुर गांव शिक्षा के क्षेत्र में आदर्श गांव बन गया है. शिक्षा के प्रति इस गांव के लोगों जैसा अनुराग गिरिडीह जिले के शायद ही किसी गांव में दिखेगा. यहां शत–प्रतिशत साक्षर हैं. अन्य कई मामलों में भी बिराजपुर गिरिडीह सहित अन्य कई जिले के गांवों के बीच अव्वल होगा.
इस गांव के ढाई दर्जन से अधिक लोग सरकारी सेवा में हैं. करीब एक दर्जन छात्र तकनीकी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. करीब एक हजार की आबादी वाले इस गांव में 80 प्रतिशत आदिवासी और शेष पिछड़ी जाति के लोग हैं.
40 वर्ष पूर्व की ललक का परिणाम
ठाकुरचक पंचायत में स्थित बिराजपुर गांव निवासी शिक्षक चरकू मांझी ने बताया कि करीब 40 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों में शिक्षा के प्रति ललक जगी. यहां के लोगों ने शिक्षा के महत्व को समझा और सरकार व जनप्रतिनिधियों की सहायता का भरोसा किये बिना गांव के भविष्य को नयी दिशा देने की पहल शुरू कर दी. गांव में बच्चों की पढ़ाई की शुरुआत पेड़ के नीचे से हुई और बरसात के मौसम में किसी ग्रामीण का घर पाठशाला बन जाता था.
कई विशेषताएं हैं बिराजपुर की
गांव में कोई अनामांकित बच्चा नहीं है. तीन वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे आंगनबाड़ी या स्कूल जाते हैं. यहां शत–प्रतिशत टीकाकरण होता है. यहां के युवा पलायन नहीं करते. शिक्षा ग्रामीणों की प्राथमिकता है. प्रत्येक घर में कम से कम मैट्रिक पास लोग मिल जायेंगे. गांव की लड़कियां भी कॉलेज की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं.
सफाई के प्रति सजग हैं ग्रामीण
सफाई के प्रति ग्रामीणों की ललक अन्य गांवों से इसे अलग करती है. सड़क पर कहीं न तो कूड़ा जमा होता है और न ही नाली का पानी बहता है. मिट्टी के घरों में भी सफाई देख आश्चर्य होता है. आदिवासी गांव होने के बाद भी हड़िया संस्कृति का यहां दर्शन नहीं होता है.