23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शिक्षकों से दूसरा काम लेना आरटीइ का उल्लंघन : शांता

मिड डे मिल योजना को सुचारू रूप से संचालित किये जाने में पंचायतों की भूमिका किस रूप में देखती हैं? अगर पंचायत को इस योजना के कार्यान्यवयन सौंप दिया जाये तो इससे बेहतर कुछ नहीं होगा. पंचायत अपने स्कूल की जरूरतों के मद्देनजर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध भूमि से न सिर्फ खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करा […]

मिड डे मिल योजना को सुचारू रूप से संचालित किये जाने में पंचायतों की भूमिका किस रूप में देखती हैं?

अगर पंचायत को इस योजना के कार्यान्यवयन सौंप दिया जाये तो इससे बेहतर कुछ नहीं होगा. पंचायत अपने स्कूल की जरूरतों के मद्देनजर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध भूमि से न सिर्फ खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करा सकता है, बल्कि लोगों की मांग के अनुरूप फसल, साग-सब्जी का उत्पादन कर बेहतर भोजन मुहैया करा सकता है.

हमें न तो डिब्बाबंद खाने की जरूरत है, और न ही किसी कंपनी को मिड डे मिल मुहैया कराने की जिम्मेवारी और इसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए आपाधापी मचाने की. हम जब माफिया और बिल्डर को जमीन दे सकते हैं तो आखिर क्यों अपने बच्चों को बेहतर भोजन देने के लिए सामुदायिक खेती शुरू नहीं कर सकते. यदि कुछेक एकड़ भूमि स्कूल के लिए अन्न उपजाने के नाम पर दे दिया जाये तो हमारी दिक्कतें दूर हो सकती हैं. हमें बेहतर भोजन भी मिलेगा और रोजगार भी. इस कार्य में महिला समूहों का उपयोग किया जा सकता है.

सरकार ने खाद्य सुरक्षा देने के लिए अध्यादेश पारित किया है. इसको किस रूप में देखती हैं?
खाद्य सुरक्षा के नाम पर हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाने की नीति पर आगे बढ रहे हैं. सिर्फ घोषणा कर देने से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होगा. यह तभी सुनिश्चित होगा जब हम किसानों की खुशहाली का ख्याल रखेंगे. आज किसान खेती किसानी छोड़कर किसी और पेशे को अपना रहा है. और जो लोग किसी तरह इस पेशे में बने हुए हैं, उन्हें भी कर्ज के बोझ की वजह से आत्महत्या करने की जरूरत पर रही है. ऐसे में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के दावे को आसानी से समझा जा सकता है.

हम खेती और किसानी के मजबूत करने के भरोसे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर रहे हैं. हम इस भरोसे ऐसा करने जा रहे हैं कि जरूरत पड़ी तो विदेशों से खाद्यान्न आयातित कर लेंगे. ये कंपनियां बीज मंहगी है, खाद्यान्न सड़ा हुआ है, भोजन में कीटनाशक है इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. बस उन्हें सिर्फ अपने मुनाफ से मतलब होगा.

बिहार
मे मिड डे मील के खाने से जिस तरह से बच्चों की मौत हुई है, उससे बच्चों की सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है?
निश्चित रूप से बिहार में जो कुछ हुआ वह बहुत ही गंभीर मामला है. यह एक तरह से मिड डे मिल खाकर मासूम बच्चों की बलि लेने जैसा है. हर मांबाप का अरमान होता है कि उसका बच्च स्कूल जाये पढे लिखे. बड़ा आदमी बने. कई मातापिता तो ऐसे भी हैं जिन्होंने खुद स्कूल नहीं देखा, मात्रएं नहीं सीखी, लेकिन इसके बावजूद वे हर तरह की तकलीफ सहकर अपने बच्चे को शिक्षा देना चाहते हैं. यह सोच ही अपने आप में बहुत बड़ी है. यह सिर्फ बिहार की ही बात नहीं है, सारे देश में ही ऐसा होता है. और वही बच्च जब स्कूल से वापस नहीं लौटता तो मांबाप की भावना को आसानी से समझा जासकता है.

लेकिन मिड डे मील तो केंद्र सरकार की योजना है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बच्चों के पोषण संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया था?
देखिए, मीड डे मिल योजना के कार्यान्यवयन को लेकर आज चाहे जो समस्या उठ रही हो, लेकिन इसके विषय में नकारात्मक सोच रखना बिल्कुल ही सही नहीं है. मिड डे मिल ने सिर्फ पूरी स्कूल व्यवस्था में बदलाव ला दिया है बल्कि इस योजना ने समाज को एकजुट करने में भी अहम भूमिका निभाई है. इस योजना के जरिए सरकारी स्कूल के बच्चों के पोषण संबंधी जरूरतें तो पूरी हो ही रही हैं, साथ ही साथ गांव के एकत्रीकरण में भी मददगार साबित होगा. यह सर्वविदित है कि जब यह योजना शुरू की गयी थी तो इसको लेकर सामाजिक स्तर पर काफी बखेड़ा खड़ा किया गया था. कहीं दलित कूक के हाथ का भोजन खाने से कुछ परिवार के बच्चे इंकार कर रहे थे, तो कहीं जातीगत आधार पर सवाल खड़े किये जा रहे थे. धीरेधीरे ये सब बाधाएं दूर हुई और लोगों ने मिल जुलकर इस योजना के महत्व को स्वीकार करते हुए अपनेअपने स्कूल में लागू किया. इतना ही नहीं सरकार के अलावा इस योजना को हर स्तर पर सहयोग किया गया. जहां प्लेट नहीं था वहां आम लोगों ने मिलकर जुटाया. कई जगहों पर तो रोटरी क्लब ने बर्तन दान किया. और आज यह योजना सुचारू रूप से चल रही है.

लेकिन जगह-जगह से इस योजना को बंद करने की आवाज उठ रही है? यहॉ तक कि बिहार के कुछ स्कूलों में शिक्षकों ने मिड डे मील के बहिष्कार का फैसला किया है?
किसी भी कीमत पर हमें यह ख्याल रखना है कि इस योजना को लेकर देश में नकारात्मक माहौल नहीं बने. इसे बंद करने की आवाजें जहॉ से भी उठ रही हैं उसे नजरअंदाज करना चाहिए. अगर किसी व्यवस्था में किसी तरह की खामी सामने आती है तो उसमें सुधार की बात करने के बजाय बंद करना समस्या से मुंह मोरने जैसा है. बिहार में घटी घटना हमारे लिए एक अलर्ट सिग्नल है. पहले भी इक्का दुक्का ऐसी घटनायें घटती रही हैं. लेकिन यह बड़ी घटना है. जिस तरह से राष्ट्रीय मीडिया ने इस मामले को विमर्श के लिए खड़ा किया है, निश्चित रूप से अब इस योजना में सुधार होगा. जहां तक मिड डे मिल में शिक्षकों की भागीदारी का सवाल है मैं भी मानती हूकि शिक्षको को शिक्षकेत्तर कार्य (केवल जनगणना को छोड़कर) अन्य कार्यो में नही लगाया जाना चाहिए. यह शिक्षा के अधिकार कानून के खिलाफ है. इसके लिए अलग से व्यवस्था बनायी जानी चाहिए. इतने बड़े पैमाने पर योजना को संचालित करने के लिए प्रशासनिक ढांचा खड़ा किये जाने की जरूरत है.

स्कूल में चलाये जा रहे मिड डे मिल योजना में पंचायतों की भूमिका को किस रूप में देखती हैं?
प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में गांव समाज के ही बच्चे पढने जाते हैं. यहां तक की स्कूल समितियों में ग्रामीणों को भी शामिल किया गया है. जब ग्रामीणों की भागीदारी पहले से ही स्कूली व्यवस्था में है, तो यही उचित होगा कि मिड डे मिल योजना की जिम्मेवारी भी पंचायतों को सौंपी जाये. व्यवस्था के केंद्रीकरण की बजाय विके न्द्रीकृत व्यवस्था बनाने से सिर्फ पारदर्शिता बढती है बल्कि यह सुचारू रूप से संचालित करने में मदद भी मिलता है. हमें तो डिब्बाबंद खाने की जरूरत है, और ही अन्य तरह के व्यवस्था की. पंचायत के देखरेख के अंतर्गत यह योजना संचालित हो निश्चित रूप से बेहतर तरीके से संचालित होगा. इसके साथ ही ग्राम पंचायत को सोशल ऑडिट की प्रक्रिया को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है.

बच्चों के सुरक्षा को लेकर समय-समय पर अलग-अलग मामले भी सामने आते रहते हैं. कभी बच्चे सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं, तो कभी स्कूलों में चलाये जाने वाले स्वास्थ्य कार्यक्रमों जैसे कि फॉलिक एसिड और आयरन की गोलियों से बच्चे के बीमार होने की बात सामने आरही है?
देखिए, बच्चों के सुरक्षा के लिए व्यापक स्तर पर चाइल्ड पॉलिसी और गाइडलांइस तय किये जाने की जरूरत है. सारे मामलों को ध्यान में रखते हुए अलगअलग विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया जाये. रोड सेफ्टी के लिए गाइड लांइस हो. यह भी देखा गया है कि बच्चों को स्कूल जाने या स्कूल से लौटते समय निजी वाहनों में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसको लेकर विस्तृत रूपरेखा तैयार हो. जहां तक फॉलिक एसिड और आयरन युक्त गोली का सवाल है, बढ़ते हुए बच्चों को यह दिया जाना बहुत ही जरूरी है. हां इसके संबंध में जो प्रिकासंस निर्धारित किये गये हैं, उनकी जानकारी भी बच्चों को दी जाये तो वे इसके साइड इफेक्ट से अवगत होंगे. लेकिन साथ ही मैं यह भी कहना चाहूंगी कि बच्चों के मसले पर पूरी राजनीति और पूरे समाज को एकजुटता का प्रदर्शन करना चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें