अनिल अंशुमन
राज्य में नया जनादेश आ चुका है़ निर्वाचित हुए जनप्रतिनिधि, शासन में काबिज गंठबंधन सरकार, उसके घटक दल और नेता से लेकर विपक्ष तक में अधिकांश वही माननीय हैं, जिनकी राज्य व जनता के प्रति गैर जिम्मेदार भूमिकाओं को देख कर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट कहा था-जरूरी हो गयी है नये चरित्र की प्रतिनिधि सभा के गठन की तैयारियां.
वैसे तो आज भी कई राजनेता व नामचीन व्यक्तित्व महेंद्र सिंह को सम्मान के साथ याद करते हुए उनसे जुड़े संस्मरण भी सुनाते हैं. ‘लेकिन क्यों 10 साल बीत जाने के बाद भी महेंद्र सिंह के असली हत्यारे नहीं पकड़े जा रहे’ के सवाल पर राज्य के राजनीतिक हलके में एक बड़ी चुप्पी है़
कहने को सीबीआइ जांच चल रही है, जो कब तक चलेगी, कहा नहीं जा सकता़ वैसे राजनीतिक हत्या कांडों के मामले में सीबीआइ जांच की अभी तक की छवि यही रही है कि मामले को लंबा खींच कर रफा-दफा कर दो़ इसलिए अबतक हुई जांच के निष्कर्षो-फैसलों में अधिकांश संदेहास्पद और विवादास्पद रहे हैं.
महेंद्र सिंह के मामले में सीबीआइ जांच शुरू से ही केंद्रित रखी गयी है कि गोली किसने चलायी, लेकिन गोली किसने चलवायी और इस कांड के साजिश में कौन-कौन हैं, इस सवाल को सिरे से गायब रखा जा रहा है़ यह पहला वाक्या है कि हत्या की प्राथमिकी में दर्ज अभियुक्त नामों से आज तक कोई सामान्य कानूनी पूछताछ तक नहीं की गयी है़
महेंद्र सिंह की हत्या के कारणों की सही जांच का सवाल इस प्रदेश के लोकतांत्रिक और जन राजनीति की परंपरा की हिफाजत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. लोगों ने महेंद्र सिंह को शोषित-पीड़ित जन समुदाय के हक के लिए सदैव जन विरोधी शासन सत्ता की लूट-झूठ और फूट की नीतियों तथा अन्याय की हर कार्रवाई का जोरदार भंडाफोड़ करते देखा है़
सदन से लेकर सड़क पर जनता पर होने वाले दमन-उत्पीड़न के खिलाफ बेखौफ लड़ते देखा है़ आज के दौर की राजनीति की मुख्यधारा है, जन राजनीति से नेता बन कर पांच सितारा दलाली की राजनीति में आगे बढ़ने की होड़़ इसके लिए अवसरवादी जोड़ तोड़-गंठजोड़ और इसे ही जनहित और राज्य के विकास के लिए बताने का शोऱ यही वजह है जंगल-जमीन बचाने और जय झारखंड का नारा लगाने वाले बहुसंख्य भूमि पुत्र नेताजी विधायक और मंत्री बन कर भ्रष्टाचार से रातों रात धनपति बनने में दूसरों से पीछे नहीं रह़े आलम यह है कि यह सब कुछ कोई छुपी बात नहीं रह गयी है.
जनता भी इसे देख रही है़ ऐसे में जन राजनीति को मुख्यधारा में स्थापित करने का सवाल सिर्फ राजनीतिक दलों और नेताओं के जिम्मे ही नहीं रह जाता, बल्कि इन्हें जीत दिलाने और टिकाने वाली जनता को भी अपनी जिम्मेवारी स्वीकारनी होगी़ आखिरकार इन्हीं के वोट और समर्थन से ही सारा खेल चल रहा है़ सब कुछ जानते समझते हुए भी ऐन चुनाव में लोगों के धार्मिक-जातीय और क्षेत्रीयता के आधार पर वाटों के ध्रुवीकरण की प्रक्रिया लगातार बढ़ती जा रही है़
यह अंततोगत्वा जनता के जन राजनीति की धार को ही नष्ट करता है़ इसलिए तो हर चुनाव के बाद चुने गये जनप्रतिनिधि मतदाताओं की कोई परवाह नहीं करते, क्योंकि वे भली-भांति जानते हैं कि वोट कैसे लिए जायेंगे.
महेंद्र सिंह के लिए जन राजनीति राज-समाज और जनता के वास्तविक विकास के लिए यथास्थिति में सच्चे बदलाव का सुविचारित माध्यम रही है.
वह जीवनपर्यत सक्रिय रहकर क्रांतिकारी वामपंथ की पताका लहराते रह़े यही वजह थी कि जन राजनीति की धारा को खत्म करने पर आमादा लूट-झूठ और फूट की ताकतों ने जन राजनीति की बुलंद आवाज को चुप कराने के लिए महागंठबंधनीय साजिश से महेंद्र सिंह की हत्या करवा दी़, लेकिन यह भी सच है कि जन राजनीति की धारा ऐतिहासिक काल से ही तमाम बाधाओं को लांघते हुए और विनाश की शक्तियों से टकराते हुए निरंतर गतिमान है़ आदि विद्रोही स्पार्टाकस से शुरू हुई यह धारा आज भी जनता के सपनों-संघर्षो में जीवित है, जिसकी अनुगूंज को महेंद्र सिंह ने कुछ यूं गुंजाया.
विद्रोही स्पार्टाकस / बोलता है आसमान पर धावा / फिर मारा जाता है / सभ्य लोगों द्वारा/ फिर दिख रहा है / बसंत में/ टेसुओं की ओट/ गर्भस्थ स्पार्टाकस.
(लेखक जन संस्कृति मंच से संबद्ध हैं.)