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24 साल से बांध कर रख रहीं बेटे को

हर मां की ममता का स्वरूप उसका पुत्र होता है. उसी ममता से विवश एक मां ने पिछले 24 वर्षो से जानवर की तरह रस्सी से हाथ-पैर बांध कर अपने पुत्र को रखा है. अपने जिगर के टुकड़े को इस हाल से निकालने के लिए उस मां ने अपनी सारी संपत्ति बेच दी. लाखों का […]

हर मां की ममता का स्वरूप उसका पुत्र होता है. उसी ममता से विवश एक मां ने पिछले 24 वर्षो से जानवर की तरह रस्सी से हाथ-पैर बांध कर अपने पुत्र को रखा है. अपने जिगर के टुकड़े को इस हाल से निकालने के लिए उस मां ने अपनी सारी संपत्ति बेच दी.
लाखों का कर्ज लिया, मगर मां की ममता आज तक आजाद नहीं हो पायी. इस पीड़ित पुत्र के मां-बाप की इस दर्दनाक पीड़ा को सहन करने की सारी हिम्मत समाप्त हो रही है.
हाजीपुर : तीन वर्ष की आयु में अपना मानसिक संतुलन खो देने वाला मुकेश आज एक जानवर की जिंदगी जीने को मजबूर है. उसे करीब ढाई दशक से हाथ-पैर बांध कर रखा जा रहा है. इस युवक को उसके माता पिता शहर के तमाम बड़े डॉक्टरों से इलाज करा कर थक गये. मगर उसकी स्थिति सही नहीं हो पायी.
धीरे-धीरे हालात इतने बिगड़ गये कि अब तो ठीक होने की पूरी उम्मीद ही समाप्त हो चुकी है. पीड़ित परिवार के पास इलाज के लिए अब पैसा तक नहीं है. किसी तरह मजदूरी कर सभी पेट पालते हैं.
कैसे हुआ यह हाल : हाजीपुर सदर थाना क्षेत्र के चक चंद्रालय गांव निवासी राजेंद्र चौधरी का 27 वर्षीय पुत्र मुकेश जब तीन वर्ष का था, तो उसे बुखार हुआ. करीब महीने भर बाद जब बुखार ठीक नहीं हुआ तो उसे हाजीपुर सदर अस्पताल में भरती कराया गया, यहां से उसे पटना रेफर कर दिया गया था.
काफी दिनों तक पीएमसीएच में रखा गया. परंतु उसकी तबीयत में सुधार नहीं हो पाया. इलाज के दौरान ही अचानक एक रात मुकेश जोर से चिल्ला उठा. उसके बाद इस पीड़ित की दिमागी हालात खराब हो गयी, जो आज तक ठीक नहीं हो सकी.
इलाज को बेची सारी संपत्ति : पीड़ित पुत्र के इलाज के लिए मां मीना देवी ने अपने गहने बेच दिये. पिता राजेंद्र चौधरी ने तमाम जमीन बेच कर उसके इलाज में पैसे लगा दिये. उसके बाद करीब पांच लाख रुपये कर्ज भी लेना पड़ा. फिर भी मुकेश की मानसिक हालात नहीं सुधर सकी. पटना, हाजीपुर, छपरा, दिल्ली, मुजफ्फरपुर, रांची और अन्य कई शहरों के सरकारी एवं प्राइवेट अस्पतालों में इसका इलाज कराया गया, लेकिन हालत जस-की-तस रह गयी.
बीमारी के साथ बेटी ब्याहने की फिक्र : मीना देवी व राजेंद्र चौधरी को न सिर्फ पुत्र के इलाज की चिंता थी, बल्कि दो बेटियों के हाथ पीले करने का भी चिंता थी. किसी तरह पैसे का प्रबंध कर चंदा एवं रेखा की शादी की. इस परिवार पर आर्थिक कर्ज इतना बढ़ गया कि परिवार का भरण-पोषण करने की खातिर एक फूटी कौड़ी नहीं रही. नतीजतन पूरा परिवार मजदूरी करने लगा.
हाथ-पैर बांध कर रखने की मजबूरी : पिछले 24 वर्षो से मानसिक बीमार बेटे मुकेश को रस्सी से हाथ-पैर बांध कर रखने को अपनी मजबूरी बताते हैं उसके माता-पिता. उनका कहना है कि उस पर हमेशा निगाह रखनी पड़ता है. अपने हाथों से ही खाना-पानी देकर उसकी सारी नित्य क्रिया करानी पड़ती है. खेतों में मजदूरी करने जाने के लिए उसे सुरक्षित रखना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में खाट पर ही रस्सी से हाथ-पैर बांध कर रख दिया जाता है, ताकि वह इधर-उधर भटक कर कहीं चला न जाये.
क्या कहते हैं पीड़ित के पिता : मैं बहुत मजबूर हो गया हूं. किसी तरह का कोई सरकारी लाभ नहीं मिलता है. विकलांगता प्रमाणपत्र तो है, मगर उचित सहायता नहीं मिल रही है. पंचायत स्तर पर भी कोई लाभ नहीं दिया जाता है. कई बार प्रखंड से लेकर जिला मुख्यालय तक दौड़े, लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ा.
राजेंद्र चौधरी
क्या कहती है पीड़ित की मां
जिस बच्चे को कलेजे से लगा कर पाला, उसकी यह दशा देखी नहीं जाती. भगवान हम लोगों को किस किये की सजा दे रहे हैं, समझ में नहीं आ रहा है. मरते दम तक अपने कलेजे के टुकड़े की सेवा करती रहूंगी. कहीं से कुछ मदद नहीं मिल रही. सब कुछ भगवान पर छोड़ चुकी हूं.
मीना देवी
हाजीपुर में नही है इलाज की व्यवस्था : जिले के सदर अस्पताल में मानसिक विक्षिप्त रोगियों के इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. इस तरह के बीमार लोगों को यहां से कहीं अलग रेफर कर दिया जाता है. इसके कारण वैशाली जिले में सैकड़ों मानसिक विक्षिप्त रोगी इलाज के अभाव में आज भी इनसानी जिंदगी जीने को तरस रहे हैं.
क्या कहते हैं कि सीएस
सदर अस्पताल में मानसिक रोगियों का इलाज नहीं होता है. यहां से हम लोग बीमार लोगों को कोईलवर रेफर कर देते हैं. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सरकार सदर अस्पताल में मानसिक रोगियों के इलाज करने की व्यवस्था क रेगी.
डॉ.रामाशीष कुमार,सिविल सजर्न
क्या कहते हैं अधिकारी
मानसिक विक्षिप्त रोगियों को कल्याण विभाग कोष से प्रतिमाह चार सौ रुपये दिये जाते है. इसके लिए विकलांगता प्रमाणपत्र का होना जरूरी है. हर उम्र के लोगों को यह सहायता राशि मिलती है.
शिव कुमार सिन्हा, सहायक निदेशक, सामाजिक सुरक्षा कोषांग

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