दक्षा वैदकर
प्रत्येक गुरु सामनेवाले को अपने तरीके से शिक्षा प्रदान करता है. कोई सरल तरीके से तो कोई कठिन तरीके से. ऐसे ही एक यहूदी संत सिम्शा बुनेन अपने ढंग से लोगों को शिक्षित करने के लिए विख्यात थे.
उनके पड़ोस में एक दुराचारी व्यक्ति रहता था. यह सब देख कर संत को बहुत दुख हुआ. संत ने सोचा कि इसे कुछ अलग तरीके से ही सुधारा जा सकता है. संत ने उसके बारे में सारी जानकारी प्राप्त कर ली. संत को पता चला कि वह दुराचारी व्यक्ति शतरंज का शौकीन था. जब सिम्शा को उसके शतरंज का शौकीन होने का पता चला, तो एक दिन उन्होंने उसे शतरंज खेलने के लिए बुलाया.
संत देखना चाहते थे कि वह किस तरह खेलता है. खेल के दौरान सिम्शा ने जान-बुझ कर गलत चाल चली. जब वह व्यक्ति उनके मोहरे मारने लगा, तो माफ कीजिए कह कर वे मोहरे वापस लेने लगे. उस आदमी ने कोई आपत्ति नहीं की और चाल वापस लेने दी. थोड़ी देर बाद बुनेन ने पुन: गलत चाल चली और माफी मांगते हुए अपनी चाल वापस लेनी चाही, लेकिन इस बार वह व्यक्ति नाराज हो गया और बोला, ‘मैंने एक बार मोहरा वापस लेने क्या दिया, आप तो बार-बार चाल वापस लेने को कहते हैं.
मैं ऐसा नहीं करने दूंगा.’ तब सिम्शा ने हंस कर उससे कहा, ‘भाई, तुम खेल में मेरी दो गलत चालों को नजरअंदाज करने को राजी नहीं हो, लेकिन अपनी जिंदगी में गलत चालें चलकर चाहते हो कि ईश्वर उन्हें हमेशा नजरअंदाज करता रहे. लेकिन ध्यान रखो कि गलत चालों का अंजाम कभी अच्छा नहीं होता. जिस तरह मेरे द्वारा गलत चाल चलने पर मैं शतरंज में बुरी तरह से हार सकता था, वैसे ही तुम भी जिंदगी के शतरंज में खराब चालें चल कर हारने वाले हो. इस बात को समझो कि यदि हमें दुनिया में रहना है, तो बुरे कर्मो का त्याग कर स्वयं को अच्छे कामों में ही लगाना होगा.’
शुरू में तो उस व्यक्ति ने संत की बातों पर गौर नहीं किया, लेकिन जब वह अपने घर गया तो रात को सोते समय उसे संत की बातें याद आयी. उसे महसूस हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है. दूसरे ही दिन उसने संत से माफी मांगी और दीक्षा ली.
बात पते की..
– आपकी एक गलत चाल, एक गलत कर्म आपको आगे चल कर बुरा परिणाम दे सकता है. इसलिए हर कदम सोच-समझ कर रखें.
– अपने कर्मो पर गौर करें. देखें कि कहीं हम जाने-अनजाने में किसी का दिल तो नहीं दुखा रहे? कोई पाप तो नहीं कर रहे? खुद को तुरंत सुधारें.