सिंदरी: सिंदरी स्थित एसके फोर 86 में रहने वाले विनोद श्रीवास्तव (60) की जिंदगी ढाई वर्ष पूर्व आज जैसी नहीं थी. वह खुद का टेंपो चलाता था. इतनी कमाई हो जाती कि पूरे परिवार का पेट भर सके और जरूरत की अन्य चीजें उपलब्ध हो सके. सात पुत्रियों का पिता विनोद तीन की शादी कर चुका था. चार अन्य के लिए भी उसके जेहन में चिंता सालती रहती थी. इसी बीच उसके जीवन में ऐसा भी एक दिन आया, जिसने आगे की राह मुश्किल कर दी.
विनोद की तबीयत खराब रहने लगी. उसे पक्षाघात हुआ. टेंपो बेच कर उससे मिले पैसे अपने इलाज पर फूंक दिये. थोड़ा-बहुत ठीक हुआ, तो हाथ-पांव में सूजन हो गया. पैर के घाव ने असर दिखाया. पति की लाचारी में साथ देने के बदले उसकी जीवनसंगिनी अपनी सबसे छोटी बच्ची को लेकर हमेशा के लिए उसे छोड़कर चली गयी. अभी वह भद्रा, पश्चिम बंगाल में रहती है.
बेटियों का कमाना रास नहीं आया
विनोद श्रीवास्तव कहते हैं, ‘बेटी मधु 3300 रुपया प्रतिमाह भेजती है. इस पैसे से मेरा इलाज व खानपान चलता है. मेरी बेटियां ही मेरा सहारा हैं. बेटी ज्योति साथ में रहती है. वही सेवा-सत्कार करती है. दवा देती है. मैं तो लाचार हूं. बेटी को नौकरी करनी ही पड़ेगी, चाहे उसे नौकरानी का काम क्यों न करना पड़े. उनका कमाना कुछ लोगों को रास नहीं आया. मेरे ऊपर लांछन लगा दिया. मुङो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. ’
बेटियों ने निभाया बेटे का फर्ज
विपरीत परिस्थितियां मनुष्य को बहुत कुछ अनपेक्षित करने को विवश कर देती हैं. विनोद को बेटा नहीं है, सात बेटियां ही हैं. पत्नी चली गयी. आजीविका पर बनी तो उसे फैसला लेना पड़ा, जिसके बारे में कल्पना तक नहीं की थी- बेटियों को चाकरी पर लगाना. उसके पास शोभा, मधु व ज्योति नाम की बेटियों रह गयी थीं. इनमें से मधु और शोभा को घरेलू कार्य के लिए धनबाद भेज दिया, जबकि ज्योति को अपने पास रख लिया. धनबाद गयी दो बेटियों ने बेटे का फर्ज निभाना शुरू किया. जो पैसे कमातीं, उसे पिता के पास भेज देतीं.