ऐसे समय में जब भारत में सरोगेसी (किराये की कोख) का उद्योग बिना किसी विनियमन के फल-फूल रहा हो, सरोगेट मां ( किराये पर अपना कोख देने वाली महिला ) और सरोगेट बच्चे(किराये की कोख से पैदा हुआ बच्चा )के हितों की रक्षा करने वाले कानूनी प्रावधानों की कमी के कारण अमूमन गरीब पृष्ठभूमि की इन महिलाओं का शोषण होने के साथ-साथ मेडिकल दिशानिर्देशों का भी उल्लंघन हो रहा है.
सेंटर फॉर सोशल रिसर्च (सीएसआर) नाम के एक गैर-सरकारी संगठन की निदेशक रंजना कुमारी ने आज बताया, ‘‘सरोगेसी के वाणिज्यिकरण के कारण अक्सर सरोगेट मां और गर्भ में पल रहे बच्चे के कष्ट की अनदेखी कर दी जाती है. मौजूदा सरोगसी व्यवस्था की निगरानी और इसके विनियमन के लिए एक ठोस कानूनी ढांचे की जरुरत है ताकि सरोगेट मां और बच्चे के हितों की रक्षा हो सके.’’
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से समर्थित एक अध्ययन की रिपोर्ट(2011-2012) जारी करते हुए रंजना ने कहा कि सरोगेट मां बनने वाली महिलाओं को भुगतान करने की अभी कोई रुपरेखा तैयार नहीं है. यह अध्ययन दिल्ली और मुंबई में किया गया था.दिल्ली में 46 फीसदी और मुंबई में 44 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने किराये पर अपनी कोख देने के लिए तीन लाख रुपए से लेकर 3.99 लाख रुपए लिए. रंजना ने कहा, ‘‘किराये पर अपना कोख देने वाली महिला, बच्चे के इच्छुक दंपति और इसमें शामिल फिजिशयन के बीच जो लिखित करार होता है उसकी एक प्रति सरोगेट मां को नहीं दी जाती जिसकी वजह से वे करार के प्रावधानों के बारे में नहीं जान पातीं.’’
उन्होंने बताया, ‘‘यहीं नहीं, सफलता की अधिक दर सुनिश्चित करने के लिए कुछ सरोगेट मां को तो उनकी जानकारी के बिना गर्भधारण करा दिया जाता है. अस्वस्थ गर्भ के मामले में गर्भ खत्म करने के लिए डॉक्टर गर्भपात की गोलियां देते हैं और किराये पर अपना कोख देने वाली महिला सोचती है कि अचानक उसका गर्भपात हो गया होगा.’’रंजना ने कहा कि सरकार को ऐसी सरोगेसी क्लिनिकों पर नजर रखनी चाहिए. किराये की कोख से बच्चा हासिल करने के इच्छुक माता-पिता ज्यादातर पश्चिमी देशों के अप्रवासी भारतीय होते हैं. पश्चिमी देशों में सरोगेसी गैर-कानूनी है.