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नदी की धारा भी कमजोर पड़ी भुटकू के जुनून के आगे

भागलपुर: एक दशरथ मांझी थे, जिनकी हाड़तोड़ मेहनत के आगे पहाड़ भी नतमस्तक हो गया था. उन्होंने पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बना दिया था और पूरे समाज के लिए नजीर बन गये. दूसरा इसी बिहार के 67 वर्षीय भुटकू मंडल हैं, जिनकी 25 वर्ष की मेहनत के आगे नदी की धारा को भी […]

भागलपुर: एक दशरथ मांझी थे, जिनकी हाड़तोड़ मेहनत के आगे पहाड़ भी नतमस्तक हो गया था. उन्होंने पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बना दिया था और पूरे समाज के लिए नजीर बन गये. दूसरा इसी बिहार के 67 वर्षीय भुटकू मंडल हैं, जिनकी 25 वर्ष की मेहनत के आगे नदी की धारा को भी कमजोर होना पड़ा है.

उन्होंने अपनी कठोर मेहनत से भागलपुर के जमुनिया नदी पर पत्थर, ईंट, बालू, मिट्टी और बड़ा पाइप डाल कर पुल बना दिया है. इस नदी के गहरे पानी व कीचड़ से कभी हर दिन सैकड़ों किसानों को पैदल पार कर अपनी खेतों पर जाना पड़ता था. आज वे अपने छोटे वाहन भी आसानी से पार कर सकते हैं. फिलहाल पुल को अंतिम रूप देने की तैयारी में श्री मंडल जुटे हुए हैं. उनकी मेहनत देख अब युवा वर्ग के लोग भी हाथ बंटाने लगे हैं.

इसलिए अड़े जिद पर

नाथनगर प्रखंड के बुद्धूचक के रहनेवाले भुटकू मंडल बताते हैं, मैं हर दिन नदी पार कर अपने खेत पर जाता था. मेरे साथ-साथ सैकड़ों किसान नदी पार कर खेत पर काम करने जाते रहे हैं. किसानों को पीठ पर खाद, बीज भरे बोरे लाद कर नदी पार उतरना पड़ता था. इसी तरह अनाज भरे सैकड़ों बोरे पीठ व सिर पर ढोकर घर लाना पड़ता था. इस कारण लोग ज्यादा अनाज घर ला भी नहीं पाते थे. खेत पर काम करनेवाले किसानों को खाना-पानी पहुंचाने के लिए घर की महिलाओं को नदी पार करने में परेशानी उठानी पड़ती थी. यह सब मुझसे देखा नहीं जाता था. लगभग 25 वर्ष पहले एक साथी (अब जीवित नहीं) ने सुझाव दिया कि इस पर क्यों नहीं एक पुल बना दिया जाये. बेशक यह कठिन काम था, लेकिन पुल बनाने में जुट गया.

बहता है ईंट, तो लगता है शरीर का अंग कट गया

साहेबगंज-चंपानगर मुख्य मार्ग से लगभग दो किलोमीटर दूर बना यह पुल दियारे के बीच में है. श्री मंडल ने बताया कि पहले नदी पर हर साल मिट्टी डाल कर पुल बनाता था और बरसात के मौसम में वह बह जाता था. लगातार 24 साल तक ऐसा ही होता रहा. नाथनगर के अंचलाधिकारी से तीन बार पुल निर्माण कराने की फरियाद की, लेकिन उन्होंने कोई मदद नहीं की. फिर लगा कि ऐसे काम नहीं चलेगा और एक वर्ष पूर्व से हर दिन सिर पर पत्थर लाद कर लाता और यहां गिरा देता था. ईंट-पत्थरों को बैलेंस करने के लिए बीच-बीच में बालू भरी बोरियां रखने लगा. इसी बीच ईंट-भट्ठावाले ने केवल मजदूरी लेकर दो ट्रेलर ईंट पहुंचा दी. अब यह पैदल पार करने, साइकिल-मोटरसाइकिल पार करने लायक बन गया है. उन्होंने बताया कि एक ईंट भी बह जाती है, तो लगता है

मोहनपुर के नाजो मंडल ने बताया कि 25 साल से हर दिन पुल तैयार करने में भुटकू मंडल जुटे रहते हैं. उनकी मेहनत पर हमलोगों को नाज है. सरकार थोड़ी मदद कर दे, तो अच्छा रहेगा.

मोहनपुर के विनोद कुमार ने बताया कि पुल को बनाने में भुटकू मंडल जैसे बुजुर्ग की मेहनत का कोई जोड़ नहीं है. अब हम युवा भी इनके इस नेक काम में हाथ बंटाते हैं.

जान रहेगी तो डालते रहेंगे पत्थर : भुटकू

जिस नदी के गहरे पानी व कीचड़ से हर दिन पैदल गुजरते थे सैकड़ों किसान, आज वाहन भी होते हैं पार

67 वर्षीय भुटकू मंडल की मेहनत ने अब युवाओं का भी खींच लिया है ध्यान

इसी पुल के कारण जिंदा हैं, जब तक

18 गांवों के लोगों को हुआ लाभ

नदी के उत्तर बसे : मोहनपुर दियारा, फरदपुर दियारा, कंपनीबाग दियारा, लोदीपुर दियारा, सुंगठिया दियारा, बैरिया, बिंद टोली दियारा, चौवनियां दियारा, शंकरपुर दियारा.

नदी के दक्षिण बसे : कंपनीबाग, साहेबगंज, लालूचक, दिलदारपुर, मोहनपुर, बिंदटोली, करारी, बुद्धूचक, करेला.

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