दक्षा वैदकर
एक राजा को अपने दरबार के किसी उत्तरदायित्व पद के लिए योग्य और विश्वसनीय व्यक्ति की तलाश थी. उसने अपने आसपास के युवकों को परखना शुरू किया, लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाया. तभी एक महात्मा का पदार्पण हुआ, जो इसी तरह यदा-कदा अतिथि बन कर सम्मानित हुआ करते थे. युवा राजा ने वयोवृद्ध संन्यासी के सम्मुख मन की बात प्रकट की- ‘मैं तय नहीं कर पा रहा हूं. अनेक लोगों पर मैंने विचार किया. अब मेरी दृष्टि में दो है.
इन्हीं दोनों में से एक को रखना चाहता हूं. कौन हैं ये दोनों?- संन्यासी ने पूछा. राजा ने कहा- ‘एक तो राज परिवार से ही संबंधित है, पर दूसरा बाहर का है. उसका पिता पहले हमारा सेवक हुआ करता था, उसका देहांत हो गया है. उसका यह बेटा पढ़ा-लिखा सुयोग्य है. दूसरी ओर, राज परिवार से संबंधित युवक की योग्यता मामूली है’. स्वामी जी ने पूछा- आपका मन किसके पक्ष में है? महाराज ने उत्तर दिया- मेरे मन में द्वंद्व है. स्वामीजी ने पूछा- किस बात को लेकर? महाराज ने उत्तर दिया- राज परिवार का रिश्तेदार कम योग्य होने पर भी अपना है. महाराज की बात काट कर स्वामीजी बोले- राजन, रोग शरीर में उपजता है, तो वह भी अपना ही होता है, पर उसका उपचार जंगलों और पहाड़ों पर उगने वाली जड़ी-बूटियों से किया जाता है. ये चीजें अपनी नहीं होकर भी हितकर होती हैं. राजा की आंखों के आगे से धुंध छंट गयी. उसने निष्पक्ष हो कर सही आदमी को चुन लिया. महाराज ने अपने सेवक के पुत्र को चुना.
दोस्तों, कई बार हम अपनों को आगे बढ़ाने के लिए सुयोग्य लोगों को मौका नहीं देते. इस तरह हम उनके साथ तो अन्याय करते ही हैं, साथ ही उन अपनों के साथ भी करते हैं, जिन्हें हमने आगे बढ़ाया. जब हम कम योग्यता वाले अपनों को बिना किसी संघर्ष के आगे बढ़ा देते हैं, तो उनका विकास अपने आप रुक जाता है. राजकपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर इस बात को जानते थे. यही वजह थी कि इतने बड़े एक्टर होने के बावजूद उन्होंने राज कपूर से कहा कि तुम स्पॉट बॉय से कैरियर की शुरुआत करो, ताकि तुम संघर्ष समझ सको. daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in
बात पते की..
जब आप योग्य व्यक्ति को मौका न देकर अयोग्य व्यक्ति को देते हैं, तो इसे आपके आसपास के लोग भी नोटिस करते हैं. आपकी छवि बिगड़ती है.
जब तक कोई इनसान संघर्ष नहीं करता, वह आगे नहीं बढ़ सकता. अपनों की भलाई चाहते हैं, तो उन्हें आसानी से मौका न दें. मेहनत करने दें.
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