नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को ऑल इंडिया रेडियो पर अपने ‘मन की बात’ में नशे को समाज एवं देश को बरबाद करने का कारक बताया. कहा, ‘नशे में डूबे नौजवानों को दो-चार घंटे की नशे की लत में शायद एक अलग जिंदगी जीने का अहसास होता होगा. लेकिन, आपने कभी सोचा है कि जिन पैसों से आप ड्रग्स खरीदते हैं, वे पैसे कहां जाते हैं? कल्पना कीजिए, यही ड्रग्स के पैसे आतंकवादियों के पास जाते होंगे, जिससे वे शस्त्र खरीद कर हमारे जवानों के सीने में गोलियां दागते होंगे. आप आतंकवादियों, ड्रग माफिया को मदद करनेवाले इस कारोबार को कैसे मदद कर सकते हैं.’
पीएम ने सोशल मीडिया पर ‘ड्रग्स फ्री इंडिया’ हैशटैग के साथ आंदोलन चलाने की अपील की. कहा कि वह कला, खेल व अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों से जागरूकता फैलाने के लिए कहेंगे. ड्रग्स की बुराई से लड़नेवालों की मदद के लिए टोल फ्री हेल्पलाइन की स्थापना की जायेगी.
पीएम ने कहा, ‘नशा अंधेरी गली में ले जाता है. विनाश के मोड़ पर खड़ा कर देता है. बरबादी के मंजर के सिवा नशे में कुछ नहीं होता. जिनके जीवन में कोई ध्येय नहीं है, लक्ष्य नहीं है, एक वैक्यूम है. वहां ड्रग्स का प्रवेश सरल होता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि ड्रग्स से बचना है और अपने बच्चे को बचाना है, तो उसे ध्येयवादी बनाइये. कुछ करने के इरादेवाला, सपने देखनेवाला बनाइये. फिर बाकी चीजों की तरफ उनका मन ही नहीं लगेगा.’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमारे पूर्वजों ने कुछ बड़ी विद्वत्तापूर्ण बातें कही हैं. कहा जाता है कि ‘पांच वर्ष लौ लीजिए, दस लौ ताड़न देई, सुत ही सोलह वर्ष में मित्र सारिज गनि देई. अर्थात् बच्चों के प्रति पांच वर्ष की आयु तक माता-पिता प्रेम-दुलार का व्यवहार रखें. पुत्र 10 वर्ष का हो, तो उसके लिए अनुशासन का आग्रह होना चाहिए. कभी-कभी समझदार मां रूठ जाती हैं. एक दिन बच्चे से बात नहीं करतीं. बच्चों के लिए यह बड़ा दंड होता है. जब बच्चा 16 वर्ष का हो, तो उससे मित्रवत व्यवहार होना चाहिए, खुल कर बात होनी चाहिए.’
प्रधानमंत्री ने नशे को मनोवैज्ञानिक-सामाजिक-चिकित्सा समस्या बताया. कहा कि इस बुराई में फंसे बालक को दुत्कार देंगे, तो नशा करेगा. कुछ समस्याओं का समाधान मेडिकल से परे है. व्यक्ति को खुद, उसके परिवार, यार दोस्तों, समाज, सरकार और कानून सबको मिल कर इस दिशा में काम करना पड़ेगा. टुकड़ों में समस्या का समाधान नहीं होना है. कुछ लोगों के लिए यह ‘स्टाइल स्टेटमेंट’ है. सभी को चाहिए कि नशे का गौरव गान हो, तो तालियां बजाने के बजाय ‘नहीं’ कहने की हिम्मत करें. अनुचित करनेवालों को इस बारे में कहने की हिम्मत कीजिए.
मिस्टर दत्त की चिट्ठी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वह नशे में डूब गये थे. जेल भी गये. फिर उनके जीवन में बदलाव आया. जेल में पढ़ाई की. कई लोग ऐसे हैं, जो इसमें से बाहर आये हैं. हम बाहर आ सकते हैं. और आना भी चाहिए. उसके लिए हमारा प्रयास भी होना चाहिए.
अचानक नहीं आती बुरी आदत
प्रधानमंत्री ने कहा कि बच्चे में बुरी आदत अचानक नहीं आती. धीरे-धीरे शुरू होती है. जैसे-जैसे बुराई शुरू होती है, घर में उसके व्यवहार में बदलाव भी शुरू होता है. बदलाव को बारीकी से देखना चाहिए. ऐसा करेंगे, तो शुरू में ही बच्चे को बचा लेंगे. बच्चे के यार-दोस्तों के बारे में भी जानकारी रखें. सिर्फ प्रगति के बारे में ही बातों को सीमित नहीं रखें. अपने बच्चों को बचाने के लिए जो काम मां-बाप कर सकते हैं, दूसरा कोई नहीं कर सकता.’