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फेडरल सिस्टम में ही भविष्य

* कोई गुणात्मक बदलाव नहीं हुआ है नेपाली समाज में – नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप गिरि सांसद होने के साथ ही जाने-माने राजनीतिक चिंतक हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ‘अर्थशास्त्र’ में और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से ‘पॉलिटिक्स’ में एमए करनेवाले गिरि अपनी बेबाक व स्पष्ट राय के लिए प्रसिद्ध हैं.उनकी गिनती विद्वान नेताओं […]

* कोई गुणात्मक बदलाव नहीं हुआ है नेपाली समाज में
– नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप गिरि सांसद होने के साथ ही जाने-माने राजनीतिक चिंतक हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ‘अर्थशास्त्र’ में और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से ‘पॉलिटिक्स’ में एमए करनेवाले गिरि अपनी बेबाक व स्पष्ट राय के लिए प्रसिद्ध हैं.उनकी गिनती विद्वान नेताओं में होती है. नेपाल की आंतरिक स्थिति पर निराला ने उनसे बातचीत की है. पेश है यह साक्षात्कार. –

* प्र- नेपाल संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. इसके बारे में बताएं.
उत्तर: ‘संक्रमण’ एक अनोखा शब्द है. परिवर्तन तो होते ही रहते हैं. कोई परिवर्तन को परख पाता है, कोई परख नहीं पाता. परिवर्तन का शिकार आदमी ही उसे बेहतर तरीके से समझ सकता है. नेपाल में राजनीतिक परिवर्तन हुआ. एक जमाने से राजतंत्र था. उसके खात्मे को ही बड़े परिवर्तन के तौर पर बार-बार बताया जा रहा है. लेकिन किस राजतंत्र के खात्मे के, उसके, जिसके हाथ-पांव ढीले पड़ चुके थे. इसलिए, इस नये परिवर्तन से कोई गुणात्मक बदलाव समाज और अर्थतंत्र में नहीं है.

* प्र-राजतंत्र की समाप्ति के बाद नेपाल में एक नये किस्म के उभार की बात हुई. जो हाशिये का समाज था, उनमें राजनीतिक चेतना विकसित हुई, इसका असर तो होगा?
उत्तर: आप सब आल्टर्न सोसाइटी के उभार की बात कर रहे हैं. यह एक बड़ा बदलाव हुआ. मधेशी और जनजातियों ने अपने को राजनीतिक तौर पर बुलंद किया है. माओवादियों की ताकत जनजाति ही हैं. लेकिन इस उभार को एक मुकम्मल स्वरूप देना है. आपके यहां (भारत में) वीपी सिंह ने उन्हें एक राजनीतिक स्वर देने के साथ ठोस धरातल भी दिया.

नेपाल में भी वैसी व्यवस्था बनाने के लिए संविधान सभा को इन सवालों को फेस करना है. हमारा जो संविधान है, उसमें यह डाला गया है कि मधेशियों और जनजातियों को विशेष आरक्षण हो, लेकिन नेपाल की राजनीति में भी तो ब्राह्मणों का ही वर्चस्व है. मधेशियों में रामानंद ठाकुर, माओवादियों में प्रचंड, बाबूराव भट्टराई ब्राह्मण हैं. इस तरह देखें तो बुनियादी तौर पर सरकार के वैकल्पिक संरचना के बारे में हर तरह का अभाव है. माओवादियों से उम्मीद थी, लेकिन वे भी इस पर गंभीरता से चिंतन नहीं कर रहे.

* प्र-आपके यहां तो एक और प्रयोग हुआ. मुख्य न्यायाधीश को ही देश का प्रधान बना दिया गया.
उत्तर: हां, यह अद्भुत तो है ही. ऐसा सामान्यत: कहीं नहीं हुआ. एक बार बांग्लादेश में हुआ था. मैंने ही सबसे पहले मांग की थी कि नेपाल में नॉन पार्टी सरकार बने. हमारे यहां की व्यवस्था को समझना होगा. नेपाल में 24 चीफ जस्टिस हैं. हमलोगों ने कहा कि फॉर्मर सीजे को बना दीजिए. लेकिन हमारी एक न सुनी गयी. नेपाल में तो एक-एक कर संस्थाओं को खत्म किया जा रहा है. पहले गांव सभा को खत्म किया गया. फिर संसद को. अभी जो सीजे देश के प्रधान बने हैं, उन पर मुकदमा चल रहा है उसी कोर्ट में, जिसमें वह हैं. यह बात उठी तो कहा गया कि ठीक है, वह अपना केस नहीं देखेंगे. अब इस विडंबना और विरोधाभास को समझिए. हमने तो बहुत पहले ही कहा था कि संविधान सभा सरकार नहीं देगी, नया चुनाव कराया जाये.

* प्र-चुनाव की बात तो हो ही रही है, लेकिन बार-बार टाला भी जा रहा है.
उत्तर: चुनाव को लेकर कई तरह के पेच हैं. पहले कहा गया कि जून तक हर हाल में होंगे, फिर नवंबर कहा जाने लगा. दरअसल नेपाल में चुनाव कराने के पहले भी कई पेचीदगियां हैं. इलेक्शन को लेकर चार- पांच कानून बनाने हैं. पिछले कुछ माह से तो संविधान में सिर्फ बदलाव ही बदलाव चल रहे हैं. संविधान में ही लिखा गया था कि कोई सीजे प्रधान नहीं बन सकता, उसको बदला गया. हमारा पिछला संविधान बीस साल रहा लेकिन एक एमेंडमेंट नहीं हुआ. हालिया दिनों में तो संविधान का मजाक बना दिया गया है.

* प्र-नये माहौल में भारत से रिश्ते पर कैसा असर पड़ रहा है क्योंकि अब तो चीन का भी एक दबाव है.
उत्तर: चीन का कोई दबाव नहीं है. यह एक भारी भ्रम है हिंदुस्तान में. नेपाल तो भारत के सबसे करीब का देश है. तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है. नेपाल को भी भारत में मिलाया जा सकता था, लेकिन नहीं मिलाया गया. नेपाल इज ए नेशन स्टेट बाई डिफॉल्ट. लेकिन अब नेपाल एक देश है, तो उसका आप क्या कर लेंगे. हिंदुस्तान तो अभी तक सिक्किम और कश्मीर को ही नहीं पचा सका है, नेपाल का क्या कर लीजिएगा. हां, मैं यह कह सकता हूं कि नेपाल के साथ भारत के रिश्ते में सबसे ज्यादा बदलाव 1990 के बाद आना शुरू हुआ.

1990 के बाद हिंदुस्तान को विदेश नीति की समझ ही ज्यादा नहीं रही. आज हिंदुस्तान नेपाल में चाहे कि अकेले कुछ कर-करवा ले तो वह संभव नहीं, लेकिन फिर भी हिंदुस्तान का मन करता है कि वह वैसा ही करे. हिंदुस्तान कठिनाई में फंसा है. न उगल सकते हैं, न निगल सकते हैं. रही बात चीन की, तो उसकी कोई खास रुचि नेपाल में नहीं है, वह अब दुनिया को देख रहा है. चीन के मुंह में नेपाल डाल भी दीजिएगा तो उगल देगा. विदेशी नीति की हालत आपके यहां यह है कि आपने आजादी के बाद कुछ खास नहीं किया. कश्मीर ही देखिए. क्या किये. इतने वर्षों में या तो आपको आगे जाना चाहिए था या पीछे आना चाहिए था. या तो पाकिस्तान को खदेड़ देते या पीछे हट जाते. नेपाल में भारत क्या चाहता है,यह तो बताये.

* प्र- सीरियस प्रैक्टिस क्यों नहीं कर रहा भारत?
उत्तर: हिंदुस्तान नेपाल में कुछ नहीं कर रहा है, ऐसा नहीं कह सकते. हां, यह सच है कि इनविजनरी ब्यूरोक्रेट्स द्वारा चलाया जा रहा है. आपके यहां एक मशीनरी है रॉ. रॉ के बारे में कहा जाता है कि उसने बढ़िया काम किया, बांग्लादेश अलग करा दिया. रॉ नेपाल में भी है, लेकिन उसका तालमेल डिप्लोमेटिक फोर्स से नहीं है.

मैं आपको एक बात बताऊं. महाराज कर्ण सिंह को जानते होंगे. उनकी पत्नी नेपाल की थी. हमारा उनके यहां आना जाना जमाने से है. अब भी है. ऐसा सज्जन और विद्वान हमने राजपरिवार में नहीं देखा. उनका धर्म के प्रति, राजपरिवार के प्रति एक बीलिव है, वह अलग बात है. एक बार कर्ण सिंह से हमने कहा कि आप नेपाल से ताल्लुक रखते हैं, आप क्यों नहीं कुछ समझाते. उन्होंने विदेश मंत्री को फोन मिलाया. तब विदेश मंत्री नटवर सिंह थे. कर्ण सिंह ने नटवर सिंह से पूछा कि आप क्या कर रहे हैं नेपाल में? नटवर सिंह ने कहा कि आपको नेपाल का राजा बनाना चाह रहे हैं. कर्ण सिंह हतप्रभ. मुझे कर्ण सिंह ने यह बताया. यह माहौल और रवैया है नेपाल के प्रति आपके यहां. भारत ने 1950 में नेहरू के समय एक नीति बनवायी. वह पॉलिसी आज तक ठीक-बेठीक चल रहा है. अब बदले हालात में भारत के पास क्या पॉलिसी है.

* प्र-आप यह बतायें कि नेपाल में राजतंत्र का अंत हुआ तो शासन या डेमोक्रेसी का कौन-सा मॉडल अपनाना चाहेंगे. भारत या चीन का?
उत्तर: दोनों में से किसी का नहीं चाहेंगे. दोनों ही दुर्घटनाग्रस्त होंगे. इन दोनों से हटकर एक अलग सिस्टम चाहेंगे. मैंने यह प्रस्ताव खुद संविधान सभा में रखा है. मैं नेपाली कांग्रेस का सदस्य हूं, लेकिन मुझे यह अधिकार था कि अपनी पार्टी से अलग हटकर भी प्रस्ताव रख सकता हूं. हमारा यह प्रस्ताव जिंदा है.

* प्र-क्या है आपके प्रस्ताव में और कैसा मॉडल चाहते हैं?
उत्तर: फेडरल सिस्टम हो. कम से कम तीन स्तरीय हो. ग्राम सरकार, प्रांत सरकार और केंद्रीय सरकार. जिला सरकार हो तो बेहतर. आपके यहां समस्या है कि गांव के अधिकार केंद्र तय करती है. केंद्र ने राज्यों पर थोप दिया कि आप ही तय करो. हम ऐसा नहीं चाहेंगे. हम उलटा चाहेंगे. हम यह कहेंगे कि गांव तय करेंगे कि कितना राज्य को देना है और फिर राज्य तय करें कि कितना केंद्र को देना है. हमने कहा है कि निचली इकाई के पास तमाम ताकतें हों. ऐसा न हो कि सेज को केंद्र पास कर दे और फिर आकर गांव में आकर जमीन छीन ली जाए. गांव तय करेगा कि सेज बनेगा या नहीं. हमने अपने प्रस्ताव में साफ-साफ लिखा है कि जल जंगल जमीन पर गांव का ही अधिकार होगा.
(साक्षात्कारकर्ता समाचार पत्रिका ‘तहलका’ हिंदी से संबद्ध हैं.)

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