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बड़े नेताओं के विकेट गिराने में झोंक रहे ताकत

रांची: विधानसभा चुनाव में आर-पार की लड़ाई है. चुनावी रंजिश तीखा है. इस बार कोई किसी को माफ करने के मूड में नहीं है. प्रदेश के बड़े नेताओं के बीच ही लड़ाई तगड़ा है. इस बार चुनाव में कहीं भी फ्रेंडली वार नहीं है. प्रदेश स्तर के बड़े नेताओं को घेरने में दलों ने एड़ी-चोटी […]

रांची: विधानसभा चुनाव में आर-पार की लड़ाई है. चुनावी रंजिश तीखा है. इस बार कोई किसी को माफ करने के मूड में नहीं है. प्रदेश के बड़े नेताओं के बीच ही लड़ाई तगड़ा है. इस बार चुनाव में कहीं भी फ्रेंडली वार नहीं है. प्रदेश स्तर के बड़े नेताओं को घेरने में दलों ने एड़ी-चोटी एक कर दी है. किसी नेता को वॉक ओवर का चुनावी दृश्य नहीं है.

झामुमो और खुद हेमंत सोरेन ने सिल्ली में आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो के खिलाफ मोरचाबंदी की है. सुदेश को घेरने के लिए अमित महतो के सहारे फील्डिंग सेट की है. हेमंत खुद हर दिन चुनाव प्रचार के लिए जा रहे हैं. हर दिन झामुमो की सभाएं हो रही हैं. झामुमो ने हर दिन वहां अपने नेताओं को भेज रही है.

इधर बाबूलाल मरांडी राजधनवार और गिरिडीह में दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा ने इनके खिलाफ यहां चक्रव्यूह रचा है. प्रदेश के नेता रघुवर दास, रवींद्र राय, अजरुन मुंडा जैसे नेता दौरा कर रहे हैं. केंद्रीय नेताओं को प्रचार के लिए लगाया है. भाजपा ने बाबूलाल मरांडी की इन सीटों को साख की सीट बना ली है. बाबूलाल का खेल बिगाड़ कर भाजपा बड़ा राजनीतिक मैसेज देना चाहती है. उधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ भी दूसरे दलों ने रणनीति बनायी है. दुमका और बरहेट में पांचवें चरण में चुनाव होना है. हेमंत को घेरने भाजपा और झाविमो पहुंचेगा. भाजपा के बड़े नेता इन दोनों विधानसभा क्षेत्र में प्रचार के लिए जायेंगे. वहीं बाबूलाल मरांडी अपने चुनाव को निबट कर संताल कूच करेंगे. संताल परगना में झाविमो हवा का रुख बदलना चाहती है.

लड़ाई प्रदेश के नेतृत्व की

विधानसभा चुनाव के सहारे प्रदेश में नेतृत्व की लड़ाई है. बाबूलाल मरांडी, अजरुन मुंडा, रघुवर दास, हेमंत सोरेन और सुदेश महतो जैसे नेताओं के सामने दोहरी चुनौती है. पार्टी की साख के साथ-साथ अपनी सीट पर भी प्रतिष्ठा जुड़ी है. इनकी सीट पर पार्टियां समीकरण बनाने के लिए बेचैन हैं. समीकरण सटीक बैठा, तो इन सीटों से राजनीति का बड़ा उलटफेर हो सकता है.

बड़े नेताओं के खिलाफ वॉकओवर की थी परंपरा

पूर्व में विधानसभा चुनाव में ऐसे रंग नहीं थे. प्रदेश के बड़े नेताओं के सीट पर वॉकओवर मान कर विरोधी भी चलते थे. पूरे दमखम से विरोधी दल के प्रत्याशी चुनाव लड़ते नहीं दिखते थे. प्रदेश स्तर के नेताओं की राजनीतिक दखल में विरोधी की ताकत नहीं दिखती थी. लेकिन इस बार विरोधी दल पूरी गंभीरता से चुनाव लड़ रहे हैं. हर किसी का खूंटा उखाड़ने में जुटे हैं. चुनावी जंग में इस बार पुरानी मान्यता ध्वस्त है.

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