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बटिया के कुरावा पुजहर टोला में सुविधाओं का घोर अभाव

पुरुष करते हैं मजदूरी,औरत जंगल से लाती हैं लकडि़यांबदतर जिंदगी जीने की है मजबूरीफोटो,नं.- 6 (कुरावा गांव व वहां के लोग )प्रतिनिधि, सोनो बटिया का कुरावा पुजहर टोला में आज भी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. जंगल के तलहटी समीप बसे लगभग 20 झोपड़ीनुमा घरों का यह टोला में विकास की रोशनी नहीं दिखती. […]

पुरुष करते हैं मजदूरी,औरत जंगल से लाती हैं लकडि़यांबदतर जिंदगी जीने की है मजबूरीफोटो,नं.- 6 (कुरावा गांव व वहां के लोग )प्रतिनिधि, सोनो बटिया का कुरावा पुजहर टोला में आज भी मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. जंगल के तलहटी समीप बसे लगभग 20 झोपड़ीनुमा घरों का यह टोला में विकास की रोशनी नहीं दिखती. इस गांव के पुरुष आसपास मजदूरी करते हैं व पत्तल बनाते हैं तो औरत जंगल में लकडि़यां चुन कर बेचती है. इंदिरा आवास का लाभ मिला है. परंतु शायद ही कोई घर आवास के लायक हो. इस टोला तक आने के लिए पक्की सड़क तो दूर कच्ची सड़क भी नहीं है. जागरूकता का यह आलम है कि अधिकांश लोग शौचालय के बारे में भी नहीं जानते हैं. महिलाओं से लेकर बच्चे तक खुले में शौच करते है. गंदगी इनके जीवन का अंग बन गया है. पेयजल के लिए एकमात्र चापाकल है. बिजली का तार है परंतु ट्रांसफारमर नहीं है. 65 वर्षीय बदमिया देवी व विकलांग फुलवा देवी को सामाजिक पेंशन नहीं मिलता है. कलबतिया देवी,मंजू देवी,हुरो पुजहर,कारु पुजहर,बखोरी पुजहर आदि इस टोला के कई लोग बताते हैं कि उनके नसीब में विकास है ही नहीं. सिंचाई की व्यवस्था नहीं रहने से खेत बंजर हैं. जंगल से पत्ता चुनकर पत्तल बनाने,लकडि़यां बेचने व ईंट भट्ठा पर मजदूरी करना ही इनकी नियती बन गयी है. कुछ बच्चे समीप के प्राथमिक विद्यालय में नामांकित हैं. परंतु शिक्षा क्यों जरूरी है घर वालों को पता नहीं है. मध्याह्न भोजन व ड्रेस को वे विद्यालय का फायदा मानते हैं. लगभग 120 सदस्यों वाले इस टोला में लगभग 80 बच्चे व 40 बड़े लोग है. न तो यहां सामुदायिक भवन है और न ही रोजगार के साधन. मजदूरी के बाद शराब पीना उनका दैनिक कार्य बन गया है.

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