आज नौ सेना दिवस है, यानी आइएनएस खुकरी के शहीदों को सिर्फ नमन करने से बाहर निकलकर 1971 युद्ध में उन तमाम भारतीय नौ सैनिकों के जज्बे और जोश को याद करने का भी दिन है. यादें, जो भारतीय नौसेना के युद्धक इतिहास में अमिट और अमर हो गयी. छोड़ दी अपनी विरासत की गाथा आनेवाली पीढ़ी के लिए.
असंतोष का कारण बना 1971 का युद्ध दुनिया के नक्शे पर एक नये देश को जन्म दे गया. जिसकी कल्पना रणनीतिकारों ने शायद स्वपन में भी नहीं की होगी, क्योंकि यही हमारे संस्कार और संस्कृति की अवधारणा भी रही है. तीन दिसंबर की रात युद्ध शुरू हुए चंद घंटे ही बीते थे. पाकिस्तानी रणनीतिकारों ने अपने जहाजों को भारतीय जल सीमा में प्रवेश कर चौंकाने की हिमाकत की थी. तब आये हम हरकत में. नौसेना मुख्यालय ने पूर्वी कमान को आदेश दिया और कहा कि वक्त आ गया है अब पाकिस्तान को हमारी ताकत का परिचय दिया जाये और शुरू हो गया ऑपरेशन ट्राइडेंट.
फिर क्या था-आइएनएस राजपूत एवं आइएनएस अक्षय ने अपनी रणनीति के तहत आगे बढ़ना प्रारंभ कर दिया. विशाखापट्टनम की सुमद्री सीमा इसका गवाह बनने के लिए तैयार थी कि तभी अपनी रडार-सोनार पर दिखी एक पाकिस्तानी पनडुब्बी और फिर क्या अचानक गूंजी डेफ्थचाजर्र और तोप के गोले ने शुरू कर दिया अपना काम. साफ दिखने लगी समुद्री सीमा में घुस चुकी पाकिस्तानी पनडुब्बी पाकिस्तान नेवल सममेरीन गाजी. 1964 में अमेरिका से खरीदी गयी यह अति विश्वनीय पनडुब्बी हमारे सामने ही समुद्र की गर्त्त में धीरे-धीरे समाने लगी.
सामुद्रिक सीमा की किलेबंदी से हमारे नौ सैनिकों ने कई नावों एवं वाणिज्यिक जहाजों को अपने कब्जे में लिया. लेकिन पीएनएस हंगोर ने अपने प्रहार से आइएनएस खुकरी को डूबो दिया. जिसमें 18 अधिकारियों सहित लगभग 176 नौसैनिक सवार थे. कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्लगा के अदभूत शौर्य एवं साहस का परिचय आज भी अनुकरणीय एवं अतुलनीय है. जब वे जहाज के साथ ही समुद्र के आगोश में समा गये. वीर शीहदों को शत-शत नमन. पूर्व सैनिक सेवा परिषद उन वीरों की शहादत को जन मानस तक ले जाकर उन्हें अपना श्रद्धासुमन अर्पित करती है.
वरुण कुमार
पेटी ऑफिसर, नेवी