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कैसा रहा सार्क में मोदी का विकास मंत्र?

ज़ुबैर अहमद बीबीसी संवाददाता, दिल्ली दक्षिण एशियाई देशों के शिखर सम्मेलन में भारत के नरेंद्र मोदी ने जिस आत्मविश्वास के साथ इस पूरे क्षेत्र के विकास का एक ख़ाका खींचा, उसके बाद उनके विरोधियों को आलोचना करने का शायद ही कोई मौक़ा मिले. सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) देशों के शासनाध्यक्षों को मोदी ने […]

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दक्षिण एशियाई देशों के शिखर सम्मेलन में भारत के नरेंद्र मोदी ने जिस आत्मविश्वास के साथ इस पूरे क्षेत्र के विकास का एक ख़ाका खींचा, उसके बाद उनके विरोधियों को आलोचना करने का शायद ही कोई मौक़ा मिले.

सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) देशों के शासनाध्यक्षों को मोदी ने जिस तरह अपने अंदाज़ में ही फर्राटेदार अंग्रेज़ी में संबोधित किया, उससे उनका बढ़ा हुआ आत्मविश्वास ही दिखा.

उन्होंने कई संवदेनशील मुद्दों को संतुलित तरीके से उठाया.

उन्होंने मुंबई में हुए चरमपंथी हमले का ज़िक्र किया लेकिन उसमें तल्खी नहीं आने दी, शायद वो पाकिस्तान को संकेत देना चाह रहे थे.

ज़ुबैर अहमद का विश्लेषण

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कोई भी चर्चा हो उनके प्रशंसक और विरोधी अपनी राय पर अक्सर अड़े रहते हैं. उनके समर्थकों को उनमें कोई बुराई नज़र नहीं आती जबकि उनका विरोध करने वाले उनकी अच्छी बातों को भी स्वीकार नहीं करते हैं.

प्रधानमंत्री ने काठमांडू में आयोजित सार्क शिखर सम्मलेन में जो भाषण दिया उस पर भी उनके समर्थकों और विरोधियों की प्रतिक्रियाएं आशा के अनुरूप ही रहीं.

हम सब हिंदी में उनके भाषण के आदी हो चुके हैं, लेकिन अंग्रेजी में उन्हें सुनने और देखने का अवसर नहीं मिलता है.

बुधवार को सार्क शिखर सम्मलेन में वो अधिकतर अंग्रेजी में बोले और मेरे विचार में उनका अंग्रेजी का भाषण उतना ही प्रभावशाली था जितना हिंदी में होता है.

अंग्रेजी पर पकड़

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उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले आम राय यह थी कि उनकी अंग्रेजी कमज़ोर है, लेकिन सम्मलेन में उन्हें सुनकर ऐसा नहीं लगता.

बात केवल भाषा की ही नहीं है. हो सकता है उन्होंने टेलीप्रांप्टर के सहारे ये भाषण दिया हो, लेकिन प्रधानमंत्री ने जिन मुद्दों को उठाया और जितने विश्वास और आस्था से अपनी बातें रखीं वो सराहनीय हैं.

विकास नरेंद्र मोदी का मंत्र है. आज अपने इस मंत्र को उन्होंने सार्क के मंच पर भी रखा.

मोदी ने सार्क देशों के लिए पांच बिंदुओं वाला अपना विज़न सामने रखा.

उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में व्यापर, निवेश, सहायता, सहयोग और कनेक्टिविटी के ज़रिए लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना चाहिए ताकि इन देशों के आम लोगों की ज़िन्दगी बेहतर हो सके और ये क्षेत्र प्रगति की राह पर चल सके.

संपर्क बढ़ाने पर ज़ोर

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इस क्षेत्र के नेता बरसों से जानते हैं कि इन देशों में आना-जाना सिंगापुर और दुबई जाने से भी अधिक महंगा है. इन नेताओं ने अब तक इस तरफ विशेष ध्यान नहीं दिया था.

प्रधानमंत्री ने इस समस्या की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए कहा, "एक पंजाब से दूसरे पंजाब में सामान पहुंचने में कराची और दुबई से भी कई गुना समय और धन ख़र्च होता है. हमें व्यापार के सीधे रास्तों का इस्तेमाल करना चाहिए."

उन्होंने अपने शब्दों पर अमल करने की भी कोशिश की जब उन्होंने कहा कि भारत सार्क देशों के व्यपारियों को तीन से पांच साल तक का वीज़ा देने के लिए तैयार है. उन्होंने इन देशों के मरीज़ों और उनके सहयोगियों के लिए तत्काल वीज़ा देने का भी वादा किया.

प्रधानमंत्री मोदी ने सार्क देशों के बीच कनेक्टिविटी और बुनियादी ढाँचे को बेहतर करने पर ज़ोर देते हुए कहा कि अगर हम एक दूसरे के गांवों और शहरों को रोशन कर सकें तो पूरे क्षेत्र के लिए बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं

सुरक्षा चिंताएं

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प्रधानमंत्री ने आतंकवाद और सुरक्षा के प्रति चिंताओं का भी ज़िक्र किया, लेकिन इस अंदाज़ में कि किसी सदस्य देश को बुरा न लगे.

उन्होंने मुंबई हमले का जिक्र करते हुए पाकिस्तान की आलोचना किए बिना कहा कि ‘आतंकवाद की समस्या’ से एक साथ मुक़ाबला करने की ज़रूरत है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा," हमें एक दूसरे की सुरक्षा और लोगों के जीवन के प्रति संवेदनशील होना होगा. इस इलाक़े को प्रगति और समृद्धि की एक नई ऊँचाई तक ले जाना होगा.”

प्रधानमंत्री के आलोचक यह कह सकते हैं कि वो भाषण हमेशा अच्छा देते हैं, लेकिन अपने शब्दों पर अमल शायद नहीं करते.

उनके आज के भाषण को केवल वहां मौजूद नेता ही नहीं सुन रहे थे बल्कि उनके देशों के आम नागरिक भी उनकी बातें सुन रहे होंगे. आपसी सहयोग की पहल मोदी ने की है उनका साथ देना सार्क के सभी देशों की ज़िम्मेदारी होगी.

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