झारखंड में पहले चरण का चुनाव 25 नवंबर को होना है. 13 विधानसभा क्षेत्र में चुनाव होना है. वहीं जंगल-पहाड़ से घिरे पलामू, चतरा और दक्षिणी छोटानागपुर के इलाके में चुनाव चुनौती पूर्ण होगा. प्रशासन के साथ-साथ पार्टियों की भी परीक्षा है. प्रधानमंत्री मोदी को आगे कर भाजपा उतरी है. मोदी का जादू चलेगा या नहीं अभी साफ होना बाकी है.
कांग्रेस, झामुमो, झाविमो, राजद, बसपा, एनसीपी जैसी पार्टियां भाजपा का रास्ता रोकने के लिए तैयार हैं. हर सीट पर तीखा संघर्ष है. दिग्गजों की प्रतिष्ठा दावं पर है. प्रभात खबर के आनंद मोहन और मनोज सिंह की रिपोर्ट. एक-एक विधानसभा के बनते-बिगड़ते समीकरण का लेखा-जोखा.
चतरा
जातीय समीकरण बदल सकता है चुनावी रंग
इस बार चतरा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के जय प्रकाश भोक्ता और झारखंड विकास मोरचा के सत्यानंद भोक्ता की नजर ज्यादा से ज्यादा गंझू मतदाताओं को अपनी ओर करने की है. इसकी संख्या 50 हजार के करीब बतायी जाती है. दोनों इसी जाति से आते हैं. सत्यानंद भोक्ता यहां के पुराने विधायक रहे हैं. राज्य में कृषि मंत्री भी थे. इस कारण मतदाताओं तक उनकी सीधी पकड़ है. जय प्रकाश भोक्ता पिछली बार सिमरिया से विधायक थे. इस कारण चतरा में उनकी पकड़ वर्तमान विधायक राजद के जनार्दन पासवान और सत्यानंद की तरह नहीं है. लेकिन, उनकी मजबूती भाजपा का कैडर है. इसका पूरा सहयोग उनको मिल रहा है. पिछले दिनों हंटरगंज में राजद के लालू प्रसाद की सभा थी. इसका बाद मुसलिम और यादव मतदाताओं का रुख स्पष्ट नहीं दिख रहा है. इसको लेकर राजद के साथ झाविमो भी पसोपेश में है. झाविमो और भाजपा जनार्दन पासवान के कार्यकाल को सबसे खराब समय बताते हैं. वहीं राजद का दावा है कि जितना काम वर्षो में नहीं हुआ था, वह पांच साल में हुआ है.
गढ़वा
घमसान तगड़ा, जातीय समीकरण का भरोसा
गढ़वा विधानसभा में इस बार भी रोचक मुकाबला होने की उम्मीद है. राजद, झामुमो, भाजपा सहित सभी दलों के प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं. वैश्य वोट पर झारखंड विकास मोरचा के वीरेंद्र साव की नजर है. राजद प्रत्याशी तथा पार्टी अध्यक्ष गिरिनाथ सिंह के लिए यह प्रतिष्ठा की सीट है. झारखंड मुक्ति मोरचा के दमदार उम्मीदवार मिथिलेश ठाकुर बड़ी-बड़ी सभा कर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं. झारखंड विकास मोरचा से भाजपा का दामन थामने वाले सत्येंद्र तिवारी को पारंपरिक वोट के साथ-साथ ब्राrाण मतदाताओं से आसार है. गिरिनाथ सिंह पिछले चुनाव में करीब 12 हजार मतों से हारे थे. मिथिलेश ठाकुर के खड़े हो जाने से अल्पसंख्यक और सेकुलर मतों के विभाजन का फायदा भाजपा उठाना चाह रही है. सत्येंद्र तिवारी को मोदी लहर से भी बहुत उम्मीद लगी हुई है. गिरिनाथ सिंह अपने द्वारा पूर्व में किये गये कार्यो को भुनाने में लगे हैं.
डालटनगंज
हर कदम पर जोड़-तोड़ का खेल
डालटनगंज सीट से कई लोगों की प्रतिष्ठा जुड़ी है. हेमंत सरकार में मंत्री रहे और कांग्रेस प्रत्याशी केएन त्रिपाठी फिर से अपनी धाक जमाने के लिए मेहनत कर रहे हैं. मोदी लहर को काटने का प्रयास हो रहा है. जातीय गोलबंदी के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोट बैंक से समीकरण बनाना चाहते हैं. उधर भाजपा के प्रत्याशी मनोज सिंह को कमल खिलने का विश्वास है. मोदी के भरोसे यहां प्रत्याशी पसीना बहा रहे हैं. झाविमो के आलोक चौरसिया अपने पिता के बनाये मैदान में बैटिंग करने उतरे हैं. अनिल चौरसिया की मौत के बाद सहानुभूति वोट बटोरना चाहते हैं. इधर राजनीति के धाकड़ खिलाड़ी इंदर सिंह नामधारी ने अपनी जमीन की विरासत अपने बेटे दिलीप सिंह नाम सौंप दी है. नामधारी की छवि का लाभ दिलीप को मिल सकता है. झामुमो के उम्मीदवार संजीव तिवारी कोण बना रहे हैं.
हुसैनाबाद
जातीय समीकरण से हवा बदलने की जद्दोजहद
हुसैनाबाद विधानसभा क्षेत्र में चुनावी हवा का रुख भांपने आसान नहीं है. वर्तमान विधायक संजय प्रसाद यादव को पार्टी के पारंपरिक वोट बैंक पर भरोसा है. अल्पसंख्यक वोट पर निगाह है. पूर्व मंत्री और एनसीपी के विधायक रहे कमलेश सिंह अपने काम को भुनाने में लगे हैं. उन्हें भरोसा है कि दूसरों के वोट बैंक बिखरेंगे और इसी के बीच उनका रास्ता बन जायेगा. बसपा के कुशवाहा शिवपूजन मेहता समीकरण बनाने में जुटे हैं. पिछड़ों और खास वोट बैंक पर नजर गड़ाये हैं. भाजपा के प्रत्याशी कामेश्वर कुशवाहा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जादू पर भरोसा है. झामुमो के टिकट से पूर्व विधायक दशरथ सिंह माहौल को अपने पक्ष में करने में जुटे हैं. यहां निर्दलीय और दूसरे दावेदार भी पूरा दम लगा रहे हैं. मतदाताओं ने करवट ली, तो परिणाम चौंकानेवाला भी हो सकता है.
भवनाथपुर
दो युवाओं के संघर्ष में फंसा भवनाथपुर
भवनाथपुर विधानसभा क्षेत्र दो युवाओं के संघर्ष में फंसा हुआ है. इस मुकाबले को त्रिकोणीय करने की कोशिश में बसपा के शाहीद अंसारी लगे हुए हैं. पूर्व मंत्री भानु प्रताप शाही की एक-एक चाल को मात देने की कोशिश में राज परिवार के अनंत प्रताप देव लगे हुए हैं. भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं पर भानु और अनंत प्रताप देव दोनों की नजर है. टिकट नहीं मिलने से नाराज भाजपा किसान मोरचा के उपाध्यक्ष कन्हैया चौबे भानु के साथ हो लिए हैं. भानु को उम्मीद है कि श्री चौबे के साथ भाजपा के कार्यकर्ताओं का साथ भी मिलेगा. वहीं कांग्रेस से भाजपा में आनेवाले अनंत प्रताप देव की नजर वैश्य मतों पर भी है. वह उनसे पुराने संबंधों का फायदा उठाना चाहते हैं. बसपा प्रत्याशी शाहीद अंसारी जेल से ही चुनाव लड़ रहे हैं. श्री अंसारी को मुसलिम के साथ-साथ दलित मतदाताओं से उम्मीद है. पिछली बार श्री अंसारी की पत्नी माले की टिकट से चुनाव लड़ी थी. करीब 17 हजार मत मिले थे. अंसारी को चुनाव के दिन तक कहानी बदलने की उम्मीद है. झारखंड विकास मोरचा के प्रत्याशी सह पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी भी मैदान में डटे हुए हैं.
बिशुनपुर
हर मोरचे पर संघर्ष बड़ी मुश्किल डगर
बिशुनपुर में इस बार भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव झारखंड मुक्ति मोरचा के प्रत्याशी चमरा लिंडा की राह रोकने में लगे हुए हैं. वह चमरा लिंडा के पार्टी बदलने और क्षेत्र में विकास नहीं किये जाने को मुद्दा बना रहे हैं. वहीं चमरा की नजर पारंपरिक सरना वोटरों पर है. पिछली बार वह इनका एकमुश्त वोट लिंडा को मिला था. श्री लिंडा के इस वोट को काटने के लिए भाजपा ने घेराबंदी की है. भाजपा की घेराबंदी को अशोक उरांव कमजोर करने में लगे हुए हैं. अशोक उरांव आजसू के कैडर थे. वह यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे. आजसू ने समझौते के तहत यह सीट भाजपा के लिए छोड़ दी. इसके बाद श्री उरांव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में आ गये हैं. उनकी पत्नी जिला परिषद की अध्यक्ष है. इस कारण भाजपा को आजसू कैडर का पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है. इन सबके बीच कांग्रेस की जिला अध्यक्ष बॉबी भगत खड़ी हो गयी है. वह सबका राह रोक अपना राह बनाने में लगी हुई हैं. तेज तर्रार महिला नेता होने का फायदा बॉबी को मिल रहा है. कांग्रेस की भितरघात का नुकसान बॉबी को दिख रहा है.
गुमला
तीन कोण में फंसी सीट बाजी पलटने पर जोर
गुमला विधानसभा में संघर्ष तीखा है. यहां नये-नये चौंकाने वाले उम्मीदवार का अवतार हुआ. भाजपा ने सीटिंग विधायक का टिकट काट शिवशंकर उरांव को उम्मीदवार बनाया. भाजपा मोदी लहर पर सवार है. वहीं जेएमएम के भूषण तिर्की जमीन से जुड़ कर रहे. कांग्रेस ने पूर्व आइएएस विनोद किस्पोट्टा को उम्मीदवार बनाया. किस्पोट्टा यहां उपायुक्त भी रह चुके हैं. क्षेत्र जाना पहचाना है, लेकिन राजनीति के रास्ते संकरे हैं. यहां तीन कोण में सीट फंसी है. उम्मीदवार बदले जाने से भाजपा में विक्षुब्धों का गुट भी हावी है. राजनीति बयार को भांपना मुश्किल है. कमल खिलेगा या नहीं सवाल है. तीर-धनुष ने खेल में रोमांच पैदा किया है. कांग्रेस भी अपने परंपरागत वोट को समेटने की कोशिश में है. लेकिन झामुमो की सेंधमारी भी है. इधर झाविमो-तृणमूल गंठबंधन की सुशीला मिंज भी मेहनत कर रही हैं.
पांकी
वोट शिफ्ट कराने की रणनीति
पांकी विधानसभा में हर तरफ चुनावी रंजिश है. निर्दलीय विधायक विदेश सिंह ने पाला बदल लिया है. कांग्रेस के सहारे नये वोट बैंक में सेंधमारी करने की जुगत में हैं. अपने काम को भी भुना रहे हैं. भाजपा के अमित तिवारी ने विदेश सिंह से सीट छीनने के लिए पूरी ताकत लगायी. झामुमो ने पूर्व विधायक दिवंगत मधु सिंह के बेटे लाल सूरज को उम्मीदवार बनाया. वह अपने पिता की बनायी जमीन पर फसल उगाना चाहते हैं. झाविमो के मधुसूदन त्रिपाठी ने भी दावं लगाया है.
मनिका
राह में जंगल-देहात के उबड़-खाबड़ रास्ते
मनिका में चुनावी रास्ता किसी के लिए आसान नहीं है. जंगल-देहात के उबड़-खाबड़ रास्ते की तरह चुनावी राह भी मुश्किल है. कांग्रेस के मुनेश्वर उरांव जोर लगा रहे हैं. मुनेश्वर को आदिवासी वोट के साथ-साथ अल्पसंख्यक वोट पर भरोसा है, तो कांग्रेसी बागी और झामुमो के खेमा में शामिल शिल्पा कुमारी सेंधमारी में लगी है. झामुमो को अपने परंपरागत वोट बैंक का भी भरोसा है. इधर भाजपा के वर्तमान विधायक हरेकृष्ण सिंह फिर से किस्मत आजमाने उतरे हैं. मोदी के प्रचार अभियान के बाद उत्साहित भी है. भाजपा के अंदर टिकट के दावेदार भितरघात भी कर सकते हैं. सभी प्रत्याशियों के लिए रास्ता मुश्किल भरा है. बनते-बिगड़ते समीकरण ने प्रत्याशियों के होश उड़ा दिये हैं.
विश्रमपुर
समीकरण बनाने- बिगाड़ने का खेल
विश्रमपुर में अजय दुबे अपने पिता की प्रतिष्ठा के साथ मैदान में उतरे हैं. पिता चंद्रशेखर दुबे की छवि और अल्पसंख्यक मतदाताओं पर उनकी पकड़ का फायदा पुत्र अजय उठाना चाहते हैं. पिछली बार मात्र 25 हजार मत लाकर चंद्रशेखर दुबे जीते थे. इस बार राह बहुत आसान नहीं है. भाजपा के रामचंद्र चंद्रवंशी तथा झारखंड विकास मोरचा के राजन मेहता अजय के रथ को रोकने में लगे हैं. पूर्व में राजद से चुनाव लड़नेवाले श्री चंद्रवंशी की पिछड़ा वर्ग के वोटरों पर अच्छी पकड़ है. इसका फायदा वह उठाने में लगे हुए हैं. श्री चंद्रवंशी की छवि भी अच्छी है. झारखंड विकास मोरचा के राजन मेहता मुकाबले को कठिन करने में लगे हुए हैं. श्री मेहता को बाबूलाल मरांडी की छवि का फायदा मिल सकता है.