कांख में मोटी-मोटी फाइलें दबाये शिव नंदन सिंह देखने में किसी रिटायर शिक्षक जैसे लगते हैं, मगर बलकुंडा गांव के निवासी प्यार से और दूसरे लोग उन्हें व्यंग्य भाव से नेताजी पुकारते हैं.
शिव नंदन सिंह 1994 से बलकुंडा से 400 असहाय परिवारों के लिए बसेरे के इंतजाम में जुटे हैं. वे अफसरों के दरबार में हाजिरी लगाते हैं, प्रप्रतिनिधियों के बैठकखानों में गुहार लगाते हैं और हर महीने के चार-पांच दिन अदालत की पेशियों में गुम हो चुके अपने गांव के लिए ठौर दिये जाने की मांग करते हैं. 19 साल से वे लगातार इस लड़ाई को लड़ रहे हैं. सड़क पर रह रहे गांव के लोगों से मिलने वाला पांच-पांच रुपये का चंदा ही इस लड़ाई में उनकी पूंजी है. मगर 19 साल बाद भी कोसी और बागमगी नदी की धाराओं में दो-दो बार समा चुके उनके बलकुंडा गांव को ठौर नहीं मिला है.
पुष्यमित्र की पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें