अब नये संकल्प का समय आ गया है : गांव का पैसा गांव में. आने वाला समय गांवों की अर्थव्यवस्था की नयी चुनौतियों का होगा. अब तक ‘खेत की मिट्टी खेत में और गांव का पानी गांव में’ के नारे हम लगा रहे थे. अब एक कदम और बढना होगा. जिस तरह से बाजार हमारे गांवों की ओर बढ. रहा है, उस हिसाब से उसका लाभ लेने के लिए हमें खुद को तैयार करना होगा.
नहीं तो वही होगा, जो अब तक वर्षा के जल को लेकर होता आया है. राज्य का सालाना वर्षापात 1205 मिली मीटर है, लेकिन प्रबंधन के अभाव में गांव का पानी नदियों के रास्ते बाहर चला जाता है. साथ में खेतों की मिट्टी भी बहा ले जाता है. अब, गांव की सरहदों पर हम बाजार की आहट साफ-साफ सुन रहे हैं. बाजार इसलिए नहीं आ रहा है कि वह हमें समृद्ध करना चाहता है, बल्कि बाजार इसलिए आ रहा है कि उसे हमारी समृद्धि का अच्छी तरह पता चल गया है. वह हमारे पैसे का व्यापार करने का रहा है. बाजार आयेगा, तो रोजगार और पैसे की रोलिंग के अवसर बढेंगे. उसका लाभ अगर हमने उठाया, तो नयी क्रांति का दौर शुरू हो सकता है. पलायन की दिशा उलट सकती है. जो ग्रामीण मानव संसाधन और बौद्धिक संपदा शहरों, महानगरों और दूसरे राज्यों को पलायन कर रहे हैं, हम उन्हें वापस गांव ला सकते हैं. एक नये गांव की संरचना कर सकते हैं. यह बाजार तमाम बातों के बावजूद ग्रामीण श्रमजीवियों और संभावनाओं से भरे युवाओं के लिए बेहद अनुकूल हो सकता है.
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