देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल का आज जन्मदिन है. उनकी प्रशासनिक और नेतृत्व क्षमता जगजाहिर है. सरदार पटेल को वास्तव में नौकरशाहों के अधिकारों का मैग्नाकार्टा माना जाना चाहिए. जब संविधान सभा में पूरी कांग्रेस अंगरेजों की बनायी नौकरशाही के खिलाफ थी, तो सरदार ने अकेले खड़े होकर उनका साथ दिया और कहा कि ये भी हमारे अपने हैं. इनकी बदौलत ही बदलेगी देश की तकदीर. पेश है सरदार पटेल पर एक जीवंत लेख ..
डॉ हरि देसाई
दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन तक, प्रतिबद्ध नौकरशाहों एवं न्यायिक प्रक्रिया का विवाद केंदस्थ रहा है. प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों के प्रति नौकरशाह स्वाभाविक ढंग से वफादार रहे हैं. पंरपरागत भारतीय लोकतंत्र में, नेहरू, एवं सरदार के समय नौकरशाहों के तरीके संदर्भित किये जाते हैं. नौकरशाही के सदंर्भ में, सरदार पटेल की व्यावहारिक आवश्यक इच्छाएं समझकर अनुसरित करना, भारतीय प्रशासनिक एवं पुलिस सेवाओं के योगदान का माडल (ढंग) रहा है. उनके विचारों को प्रामाणिक ढंग से समझ कर व्याख्यायित करना भी अनिवार्य है. ब्रिटिश भारत में ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों को भारतीय सेवा (आइसीएस) में शामिल किया जाता था. उसी समय, ब्रिटिश पुलिस सेवाओं में भी भारतीय पुलिस (आइपी) प्रावधान था.
सरदार पटेल ने अक्तूबर 1946 में प्रांतीय प्रीमियर्स का सम्मेलन बुलाया, जिसे आज का मुख्यमंत्री सम्मेलन कह सकते हैं, जिसका उद्देश्य भारतीय प्रशासनिक और पुलिस सेवाओं का नाम भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा रखना था. बैठक का उद्देश्य ब्रिटिश ब्रिटिश भारत के भारतीय सिविल सेवा और भारतीय पुलिस सेवाओं में ब्रिटिशों के जाने के बाद की स्थिति पर विचार करना एवं रिक्त स्थानों की पूर्ति करना था. भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और भारतीय पुलिस सेवाओं पर स्वतंत्र ढंग से चर्चा करना था. हमें यह भी याद रखना होगा कि संघीय लोकसेवा आयोग (एफपीएससी) की नियुक्ति प्रक्रिया भारत में अंगरेजों के समय प्रारंभ हुई. प्रवर्तमान संघ लोकसेवा आयोग भारतीय प्रशासनिक एवं भारतीय पुलिस सेवाओं की नियुक्ति प्रक्रिया की व्यवस्था कर रही है. कांग्रेस और मुसलिम लीग की संयुक्त सरकार के दौरान सरदार साहब का विचार भारतीय प्रशासनिक एवं भारतीय पुलिस सेवाओं को प्रस्थापित करना था. दो देशों के अलगाव के बाद अंगरेज अधिकारी भारत छोड़ दिये और बहुसंख्यक मुसलिम अधिकारी पाकिस्तान चले गये.
अधिकारियों की कार्यदक्षता का गांभीर्य, सरदार पटेल ने उचित प्रावधानों को संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा की भी व्यवस्था की. विधान सभाओं में भी हर प्रकार की गहरायी से भारतीय सेवाओं पर विचार-विमर्श हुआ. ब्रिटिश शासन में उन आइसीएस और भारतीय पुलिस अधिकारियों ने कांग्रेस को काफी जलील किया.उन्होंने कांग्रेस के लोगों को जेल भेजा था.
फिर भी सरदार पटेल उनके योगदान की सराहना किये बिना नहीं रह पाये.स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्र-निष्ठा के बारे में लोगों को दो-टूक शब्दों में समझाया, लेकिन जो अधिकारी प्रशासनिक स्तर पर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में योगदान दे रहे थे, उनका पूरा सहयोग किया. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भारतीय सिविल सेवा (आइसीएस) के अधिकारियों के प्रति रोष था. कुछ बड़े नेताओं का विचार अधिकारियों को वित्तीय लाभ उपलब्ध कराने के विरोध में था. 10 अक्तूबर 1949 की संविधान सभा में, सरदार पटेल ने अंत्यंत व्यथित रूप में कहा ‘सदन के वरिष्ठ सदस्य एवं डिप्टी स्पीकर श्री अनंत स्वामी आयंगर ने प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के बारे में जो मत व्यक्त किया, उससे मैं काफी आहत हुआ हूं. इनके विचारों से ऐसा लगता है कि प्रशासनिक अधिकारी हमारे देश के दुश्मन हों, हमें जिन लोगों से काम लेना है उनके प्रति हम दुश्मन-सा भाव रखते हैं. इस प्रकार का हमारा बरताव देश की सेवा के बजाय कुसेवा होगा.’
संविधान सभ़ख की 10 अक्तूबर 1949 की बैठक में, अनुच्छेद 183ए की प्रक्रिया और कुछ प्रावधानों की कर्मठता और अधिकारियों की सुरक्षा अखिल भ़ारतीय सेवाओं, पर सरदार पटेल का वक्तव्य वास्तव में नौकरशाहों के अधिकारों का मैग्नाकार्टा माना जाना चाहिए. ‘यदि हम सक्षम अखिल भारतीय सेवा चाहते हैं तो, मैं आपको सलाह दूंगा कि सेवा अधिकारियों को मुख्यरूप से अपने विचार व्यक्त करने की आजादी होनी चाहिए. यदि आप प्रधानमंत्री हैं, तो आपका दायित्व बनता है कि आप अपने सचिव या मुख्य सचिव या अपने अधीनस्थों को किसी प्रकार के भय या लालच के बिना अपना मत व्यक्त करने का उचित वातावरण प्रदान करेंगे. किंतु आजकल तो मै इस प्रकार माहौल देख रहा हूं कि कुछेक प्रांत में सेवा अधिकारियों को कहा जाता है, ‘नहीं, आप तो सेवा अधिकारी हैं. आपको हमारे निर्देशों के केवल अनुपालन करना है.’ इस प्रकार तो संघीय ढांचा रहेगा नहीं, संयुक्त भारत टिकेगा नहीं, आपके पास मुक्त म से अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता वाली अखिल भारतीय सेवा यदि नहीं है और उन्हें सुरक्षा का भाव भी नहीं है, तो संघीय ढांचा नहीं रहेगा. वास्तव में संसदीय ढांचे के प्रति हम गौरवान्वित हैं, जहां पर उनके अधिकार सुरक्षित हैं. यदि इस रास्ते पर नहीं चल सकते हैं, तो प्रवर्तमान आदर्श संविधान का अनुपालन न करें. इसकी जगह पर कुछ और स्वीकार करें, कांग्रेस का संविधान या कोई अन्य संविधान या आरएसएस का संविधान, आपके जी में जो आये उसे लागू करिए. लेकिन हमारा आदर्श संविधान नहीं. संविधान तो देश को अखंड देखने वाला चक्राकार धुरी है. उसमें कई संवैधानिक अवरोध आयेंगे फिर भी हम संयुक्त रूप से निर्णय लेकर अपने आदर्श चक्राकार धुरी से इस देश को नियंत्रित करेंगे.’
संविधान को सर्वोत्तम सत्ता स्वीकार करके, सरदार पटेल ने नौकरशाहों को राष्ट्रीय हित का रक्षक बताया.सरदार ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को भ्रष्टाचार मुक्त भारत का प्रहरी करार दिया परंतु वे कभी भ्रष्ट अधिकारियों के पक्षधर नहीं थे. ‘मेरी राय में संसद के सभी सदस्यों को प्रशासनिक सेवाओं का समर्थन करना चाहिए. सेवारत कोई अधिकारी र्दुव्यवहार करता या कर्तव्य परायण नहीं है, तो उसे बरदाश्त नहीं किया जायेगा. ऐसी घटनाएं मेरे ध्यान में लायें, कोई लाट साहब हो तो भी मैं बख्शने वाला हूं. मगर अधीनस्थ अधिकारी अपेक्षित जिम्मेदारी निभाते हैं, तो उसकी सराहना भी करनी चाहिए. भूतकाल को भूल जाना चाहिए. कई वर्षो से हम ब्रिटिशरों से लड़ते रहे. मैं उनका कट्टर शत्रु रहा हूं और वे मुङो भी अपना कट्टर शत्रु मानते रहे हैं. फिर भी मैं आपके साथ मुक्त मन से बात करूं तो कह सकता हूं कि वे मुङो अभी अपना निष्ठावान मित्र मानते हैं.’
सरदार को राष्ट्र निर्माण में अधिकारियों के योगदान की क्षमता में पूरा भरोसा है. उसी प्रकार भारत में सम्मिलित देसी रजवाड़ों के योगदान में भी उन्हें श्रद्धा थी. सरदार उनकी राष्ट्रीय निष्ठा एवं स्वामिभक्ति का भली प्रकार आदर करते थे.
(लेखक सरदार पटेल जीवन कार्य-अध्ययन-शोध संस्थान (सेरलिप), एवं एच एम पटेल कैरियर डेवलपमेंट सेंटर, वल्लभ विद्यानगर के निदेशक हैं)