
मुश्किल हालात के बावजूद कश्मीर की कई लड़कियां अल्पाइन स्कीइंग जैसे ग़ैर पारंपरिक खेलों में कामयाबी की नई पताकाएं फहरा रही हैं.
सबीहा, ज़ैनब और शबिस्ता जैसी लड़कियों ने बर्फ़ पर फिसलते हुए कायमाबी की ये दास्तां लिखी है.
कश्मीर घाटी के टंगमर्ग गांव की रहने वाली सबीहा नबी छठी कक्षा से ही अल्पाइन स्नो स्कीइंग में दिलचस्पी ले रही हैं.
सबीहा ख़ुश हैं कि कश्मीर की लड़कियां खेल के मैदान में आगे आ रही हैं.
सोच बदली

सबीहा ने 2013 में राष्ट्रीय अल्पाइन स्कीइंग चैंपियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया था.
वह कहती हैं, "कश्मीर में पहले यह समझा जाता था कि खेल के मैदान में सिर्फ़ लड़के ही आ सकते हैं, लेकिन अब परंपरा टूट रही है. पहले समझा जाता था कि लड़कियों का खेल के मैदान में आना इस्लाम के ख़िलाफ़ है, लेकिन ये सोच अब बदल गई है".
सबीहा को 2013 में उत्तराखंड में राष्ट्रीय अल्पाइन चैंपियनशिप में जाने का मौक़ा मिला, जहां उन्होंने तीसरा स्थान हासिल किया.
सबीहा जम्मू-कश्मीर की पहली लड़की हैं जिन्होंने यह मेडल जीता है.
‘सरकार से शिकायत’
इससे पहले भी सबीहा राष्ट्रीय चैंपियनशिप में दो गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं. सबीहा को सरकार की तरफ़ से कोई मदद न मिलने की भी शिकायत है.
वह कहती हैं, "सरकारी स्तर पर हमें किसी भी तरह की मदद नहीं मिली. हम अमीर लोग नहीं हैं और इसके लिए ज़्यादा ख़र्च बर्दाश्त नहीं कर सकते."
बारहवीं में पढ़ रही सबीहा नबी को 2013 में अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबले में भाग लेने का मौक़ा भी मिला था, लेकिन पासपोर्ट नहीं होने की वजह से वह जा नहीं पाईं.

सबीहा को उम्मीद है कि एक दिन वह ओलंपिक खेलने ज़रूर जाएंगी.
सबीहा के पिता वन विभाग में एक छोटे पद पर काम करते हैं लेकिन वह अपनी बेटी को अल्पाइन स्कीइंग में ऊंचे मुक़ाम पर देखना चाहते हैं.
पिता से सीखे गुर
ग्यारहवीं क्लास की छात्रा ज़ैनब रशीद कश्मीर के बारामुला इलाक़े की स्कीइंग खिलाड़ी हैं.

ज़ैनब ने अब तक तीन राष्ट्रीय चैंपियनशिप में हिस्सा लिया और एक मेडल भी हासिल किया.
ज़ैनब ने अपने पिता से ही स्कीइंग के गुर सीखे हैं.
वह कहती हैं, "सरकार से किसी तरह की मदद न मिलना इस खेल में आने वालों को निराश करता है."
घाटी के टंगमर्ग गांव की ही 16 वर्षीया शबिस्ता शब्बीर ने अब तक कई तमग़े हासिल किए हैं.

शबिस्ता के पिता शबीर दर ख़ुद स्कीइंग इंस्ट्रक्टर हैं. उन्हें अपने पास स्कीइंग के आधुनिक उपकरण नहीं होने का मलाल है. इसका एहसास उन्हें राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते वक़्त होता है.
जम्मू-कश्मीर स्पोर्ट्स काउंसिल के कोच अब्दुल रशीद तंत्रय का कहना है कि कश्मीर की ये लड़कियां अंतरराष्ट्रीय स्तर की क़ाबिलियत रखती हैं, लेकिन सरकार साथ नहीं दे रही.
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