पुरबिया उस्ताद की याद में..
महेंदर मिसिर के बारे में कई किस्से मशहूर हैं. कहा जाता है कि अपने घर में ही नोट छापनेवाली मशीन रख लिये थे और नोट छाप कर आजादी की लड़ाई लड़ रहे सेनानियों को दिया करते थे. बाद में पकड़े गये. आजादी मिलने के एक साल पहले 26 अक्तूबर 1946 को ही वे दुनिया से विदा हो गये थे. बहरहाल, कई-कई किस्से जुड़े हैं मिसिरजी के जीवन से.
कहते हैं कि जब उन्हें जेल में डाला गया, तो बनारस से लेकर कलकत्ते तक से कई गायिकाएं और नर्तकियां अपनी पूरी कमाई लेकर पहुंच गयी थीं कि जमानत में जो चाहिए, जितना रोपया-पईसा, सब ले लीजिए लेकिन मिसिर बाबा को छोड़ दीजिए, यही तो हमारी गायकी और कला को खुराक देकर आगे बढ़ाने और रंग को और चटक करते रहनेवाले गुरु हैं. ऐसे ही तमाम किस्सों के जरिये मिसिरजी को याद कर सकते हैं.
निराला
आज महेंद्र मिसिर की पुण्यतिथि है. महेंदर मिसिर यानि पुरबी सम्राट. छपरा के मिसरवलिया गांव में जनमे जरूर लेकिन छपरा, मुजफ्फरपुर से लेकर बनारस, कलकत्ता, पटना नापते रहे. सम्राट की जगह उस्ताद शब्द उन पर ज्यादा फिट बैठता है.
दुनिया को प्रेम नगरिया बतानेवाले महेंदर मिसिर की पहचान कई रूपों में बनी, गीतकार के रूप में, देशप्रेमी के रूप में, गवैया के रूप में, बजवैया के रूप में, लेकिन वे किसी एक पहचान के साथ जिंदगी गुजारने को क्यों तैयार नहीं थे और किसकी तलाश में, किस चीज की तलाश में, यह भी साफ-साफ नहीं कहा जा सकता. महेंद्र मिसिर के बारे में कई-कई किस्से मशहूर हैं. कहा जाता है कि उन्होंने अपने घर में ही नोट छापनेवाली मशीन रख लिया था और नोट छाप कर आजादी की लड़ाई लड़ रहे सेनानियों को दिया करते थे. बाद में उन्हें पकड़ लिया गया. हालांकि, आजादी मिलने के एक साल पहले 26 अक्तूबर, 1946 को ही वे दुनिया से विदा हो गये थे.
बहरहाल, कई-कई किस्से जुड़े हैं मिसिरजी के जीवन से. कहते हैं कि जब उन्हें जेल में डाला गया तो बनारस से लेकर कलकत्ते तक से कई गायिकाएं और नर्तकियां अपनी पूरी कमाई लेकर पहुंच गयी थी कि जमानत में जो चाहिए, जितना रुपया-पईसा, सब ले लीजिए, लेकिन मिसिर बाबा को छोड़ दीजिए, यही तो हमारी गायकी और कला को खुराक देकर आगे बढ़ाने और रंग को और चटक करते रहनेवाले गुरू हैं. मिसिरजी से जुड़ा यह किस्सा भी बहुत मशहूर है कि मुजफ्फरपुर की रहनेवाली गायिका-तवायफ ढेलाबाई के प्रेम में गहराई से डूबे रहनेवाले प्रेमी थे. देवदास से भी ज्यादा उदास लेकिन उदास क्षणों में भी बिंदास ही बने रहे.
वे उत्कृष्ट कोटि के गीतकार थे. एक ऐसे गीतकार जो निजी तौर पर देशभक्तों को पैसे से मदद कर रहे थे, लेकिन देशभक्ति के गीत नहीं रच रहे थे, बल्किवे अपने गीतों के जरिये समाज को प्रेमी समाज, स्त्री मन को समझनेवाला और प्रेम के जरिये दुनिया को खूबसूरत बनानेवाला समाज बनाने में ऊर्जा लगा रहे थे. कह सकते हैं कि वे द्वंद्व में थे, लेकिन यह सतही व्याख्या की तरह होगी. महेंदर मिसिर के गीतों पर बात करते हैं. उन्होंने वर्षों पहले ऐसे गीत रचे, जिसे आज भी गाया जाये और सुना जाये तो लगेगा कि जैसे आज के लिए ही लिखे थे वे.
महेंदर मिसिर ने पुरबी लिखे, बिरह के छंद रचे, भजन लिखे, जेल में रहते हुए भोजपुरी गीतों की शक्ल में ढालकर रामायण लिखना शुरू किये और प्रेम गीतों को रचने में तो उनका कोई सानी ही नहीं था. उनके पुरबी भी बहुतेरों ने अंगुरी में डंसले बिया निगनिया हे.. सबसे मशहूर हुआ. आधी-आधी रितया के कुंहके कोयलिया.. आज भी श्रेष्ठतम पूर्वी गीतों में रखा जाता है. पटना से बैदा बुलाई द, नजरा गईली गोइयां.. वाला गीत शारदा सिन्हाजी की आवाज में लोकजुबान पर छाया रहनेवाला गीत बना. हमनी के रहब जानी, दुनो परानी.. गीत भी शारदाजी गायी और प्रेम-बिरह के सम्मिश्रण वाले इस गीत में आज भी उसी ताजगी का अहसास होगा. महेंदर मिसिर के गीतों के जो बोल हैं, एक-एक शब्द हैं, वे सीधे लोकमानस से संवाद करते हुए सीधे दिल की गहराइयों तक उतर जाते हैं.
उनके गीतों के बोल प्रेम और प्रेम के जरिये एक-दूसरे में खो जाने, समा जाने, एकाकार हो जाने तक श्रोताओं को ले जाते हैं लेकिन अगली ही पंक्ति में वाक्य सीधे दूसरे भाव के साथ बदलकर अचानक संभाल भी लेता है. मिसिर के गीत श्रोताओं को श्रोता ही बने रहने देता है, जिनमें उत्साह का संचार तो हो लेकिन उन्माद न फैलने लगे. वे निर्गुण भी लिखते हैं तो पहले लाईन में लिखते हैं-सखी हो प्रेम नगरिया हमरो छुटल जात बा, जियरा मोर डेरात बा न.. पूरी दुनिया को प्रेम नगरिया ही मानते थे.
(लेखक तहलका से संबद्ध हैं.)